Delhi-Ncr दिल्ली चुनाव में राम, रावण और मारीच… इंद्रप्रस्थ के मैदान में रामायण पर महाभारत क्यों?- #INA
राम, रावण पर आप-बीजेपी में घमासान
इसे इत्तेफाक कहें या कुछ और कि 22 जनवरी को अयोध्या के श्रीराम मंदिर की स्थापना की पहली वर्षगांठ से ठीक एक दिन पहले दिल्ली के चुनावी मैदान में राम, रावण और रामायण के मुद्दे पर घमासान मच गया. दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के एक बयान पर जैसे महाभारत का युद्ध छिड़ गया. चुनावी रैली के दौरान दिया गया उनका यह बयान सीताहरण के दौरान रावण के वेष बदलने के प्रसंग पर आधारित था. लेकिन उनके बयान पर बीजेपी एक बार फिर अरविंद केजरीवाल को चुनावी हिंदू कहने से नहीं चूकी. बीजेपी नेता जब बारी-बारी से हमलावर हुए और निशाना साधना शुरू किया तो आप नेताओं ने इस विरोध को बीजेपी के रावण प्रेम से जोड़ दिया. कुल मिलाकर दोनों पक्षों की ओर से खुद को सबसे बड़ा राम भक्त बताने की होड़ मच गई. इंद्रप्रस्थ के मैदान में रामायण पर महाभारत शुरू हो गया. 5 फरवरी को होने वाले मतदान तक फिलहाल ये महाभारत थमता नहीं दिख रहा है.
दिल्ली में जैसे-जैसे मतदान के दिन नजदीक आ रहे हैं, सियासी संघर्ष और भी भीषण होता जा रहा है. बीजेपी आम आदमी पार्टी की सत्ता को उखाड़ने के लिए कोई भी मौका नहीं छोड़ना चाहती है. शराब घोटाला, शीश महल, सीएजी रिपोर्ट, अस्पताल घोटाला और अब सोने का रावण का मुद्दा बीजेपी के लिए सबसे अहम हो गया है. बीजेपी के वरिष्ठ नेता और दिल्ली की मौजूदा चुनावी गहमागहमी से दूर रहने वाले डॉ. हर्षवर्धन ने सोशल मीडिया पर सबसे पहले उछाला. उन्होंने भी केजरीवाल को चुनावी हिंदू कहा. वहीं राज्यसभा सांसद स्वाती मालीवाल ने भी अरविंद केजरीवाल को घेरा. बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर और पार्टी के दिल्ली अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने तो केजरीवाल का अधूरा रामायण ज्ञान कहकर तीखा हमला किया. बीजेपी ने तंज कसा कि हनुमान भक्त का ये कैसा रामायण ज्ञान?
दिल्ली में सोने की लंका का मुद्दा गरम
दिल्ली के चुनावी मैदान में धर्म, मंदिर, राम, रावण, मारीच या सोने की लंका का मुद्दा यूं ही नहीं उछला है. मौके की नजाकत को देखते हुए बीजेपी ने यह कहकर भी तंज कसा कि अरविंद केजरीवाल का सोने से विशेष लगाव जगजाहिर है. बीजेपी का इशारा कथित शीशमहल की ओर था. करोड़ों के खर्च से बने शीशमहल को लेकर बीजेपी और कांग्रेस लंबे समय से आप पर हमले करती रही है. बीजेपी ने बड़ी ही चतुराई के साथ सोने के मृग वाले केजरीवाल के बयान से इससे जोड़ दिया.
आपको बता दें कि आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल लंबे समय से खुद को हनुमान भक्त भी बताते रहे हैं. वो हनुमान मंदिर में जाते हैं, पूजा करते हैं, आरती उतारते हैं और हनुमान चालीसा पढ़ते हैं. खुद को दिल्ली के धार्मिक स्थलों का रक्षक भी बताते हैं. यही वजह है कि उन्होंने पिछले दिनों दिल्ली के मंदिरों और गुरुद्वारों के पुजारी और ग्रंथियों के लिए हर महीने 18,000 रुपये देने का ऐलान किया. कोई हैरत नहीं कि केजरीवाल की ओर से इस योजना के ऐलान के बाद दिल्ली में बड़े पैमाने पर पुजारियों और ग्रंथियों का समर्थन भी मिला.
इस योजना के ऐलान के साथ ही आम आदमी पार्टी, सीएम आतिशी समेत अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया भी बीजेपी के निशाने पर आ गए. बीजेपी नेता मसलन अनुराग ठाकुर, वीरेंद्र सचदेवा, रमेश बिधूड़ी, मनोज तिवारी, परवेश वर्मा और बांसुरी स्वराज आदि ने इसे चुनावी हिंदू से जोड़ दिया. उन्होंने सवाल उठाया आम आदमी पार्टी ने इस योजना को पहले क्यों नहीं ऐलान किया, ऐन चुनाव से पहले क्यों घोषणा की. बीजेपी ही नहीं बल्कि कांग्रेस की ओर से भी संदीप दीक्षित ने निशाना साधा. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने इमामों को सैलरी नहीं मिलने का भी मुद्दा उठाया. निशाना साधा कि जो दिल्ली के इमामों को सैलरी नहीं दे पा रहा है, वह पुजारी और ग्रंथियों को वेतन कहां से देगा.
हिंदू वोट बैंक के ध्रुवीकरण का मसला अहम
दरअसल आम आदमी पार्टी दिल्ली में ध्रुवीकरण नहीं होने देना चाहती और बीजेपी उस हरेक मुद्दे को छोड़ना नहीं चाहती, जिससे केजरीवाल को चुनावी हिंदू कहकर घेरा न सके. बीजेपी अरविंद केजरीवाल के पिछले साल 22 जनवरी को अयोध्या राम मंदिर में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जाने पर भी निशाना साध चुकी है. हालांकि अगले महीने ही अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान ने सपरिवार अयोध्या जाकर राम लला का दर्शन और पूजन किया. दिल्ली में भी अरविंद केजरीवाल लगातार खुद को हनुमान भक्त की तरह प्रस्तुत करते रहे हैं. लेकिन बीजेपी अरविंद केजरीवाल को महज चुनावी हिंदू ही मानती है.
जाहिर है पूरा मामला वोट बैंक से जुड़ा है. अरविंद केजरीवाल एक तरफ बहुसंख्यक हिंदू और मंदिर-पुजारी के बहाने सवर्ण समाज को भी अपने पाले में रखना चाहते हैं तो ग्रंथी सम्मान के एलान से सिख समाज का समर्थन मजबूत बनाना चाहते हैं. वहीं राजधानी के जेजे कॉलोनी और झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले गरीब, दलित वर्ग के मतदाताओं को भी एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं. दूसरी तरफ बीजेपी के निशाने पर आप सरकार की फ्री की योजनाएं तो रही हैं लेकिन पार्टी फ्री योजनाएं लागू करने की बात भी कहती है. केजरीवाल अपने कोर वोटर्स को खिसकने नहीं देना चाहते जबकि बीजेपी आप के कोर वोटर्स में सेंध लगाकर सत्ता हासिल करना चाहती है. मुफ्त की जन कल्याण की योजनाओं का सहारा केवल आप ही नहीं बल्कि बीजेपी और कांग्रेस भी ले रही है.
दिल्ली चुनाव में राम, रावण और मारीच… इंद्रप्रस्थ के मैदान में रामायण पर महाभारत क्यों?
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