National-मिल्कीपुर में बीजेपी ने कैसे लिया अयोध्या की हार का बदला, अपनों ने भी नहीं दिया सपा का साथ, जानें परदे की पीछे की कहानी – #INA

Milkipur By-Election: पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को अयोध्या सीट से हार मिली थी। यह हार सभी के लिए काफी चौंकाने वाली थी, क्योंकि चुनाव के कुछ महीने पहले ही राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी। हर किसी को उम्मीद थी की भाजपा यहां से चुनाव जीत जाएगी। लेकिन अयोध्या के वोटर्स ने सबको चौंकाते हुए सपा सांसद अवधेश प्रसाद को अपना सांसद चुना। सांसद बनने से पहले अवधेश प्रसाद मिल्कीपुर सीट से विधायक थे। सांसद बनने के बाद मिल्कीपुर सीट खाली हो गई और यहां उपचुनाव हुआ।
अयोध्या के मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने सपा से बड़ा बदला लिया है। मिल्कीपुर उपचुनाव में भाजपा के प्रत्याशी चंद्रभानु पासवान जीत गए हैं। उन्होंने बड़े अंतर से सपा और अयोध्या सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को हराया है। इस उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार की हार में योगी आदित्यनाथ की मजबूत रणनीति जितनी अहम थी, उतनी ही यादव वोटरों की भूमिका भी रही।
मिल्कीपुर में 50-55 हजार तक यादव मतदाता
अयोध्या में हार के बाद बीजेपी ने मिल्कीपुर सीट पर पूरी ताकत झोंक दी थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने मंत्रिमंडल के साथ मिल्कीपुर में मजबूती से प्रचार किया। मिल्कीपुर में यादव मतदाताओं की संख्या यहां 50-55 हजार के आसपास मानी जाती है, इसलिए समाजवादी पार्टी इसे अपनी सुरक्षित सीट मानती रही थी। लेकिन इस बार यादव वोटर्स ने दिखा दिया कि वे सिर्फ सपा के मतदाता नहीं हैं, बल्कि वह अपना फैसला खुद ले सकते हैं।
अखिलेश यादव को भारी पड़ी यह भूल
अखिलेश यादव शायद यह भूल गए थे कि फैजाबाद इलाके में 1960 के दशक से मित्रसेन यादव का बड़ा प्रभाव रहा है। मिल्कीपुर सीट के आरक्षित होने से पहले वे 1989 तक वहां के विधायक रहे। बाद में बीकापुर से चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की। 1998 में सांसद बनने के बाद 2000 में उन्होंने फिर से फैजाबाद सीट पर जीत दर्ज की। उनकी ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि रामलहर के बावजूद उन्होंने विनय कटियार को भी हरा दिया था।
मित्रसेन यादव और उनके परिवार की अनदेखी अखिलेश यादव को भारी पड़ी। इलाके के ज्यादातर यादव वोटर्स समाजवादी पार्टी बनने के पहले से ही मित्रसेन यादव के परिवार से जुड़े हुए थे, लेकिन समाजवादी पार्टी ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया। मित्रसेन यादव के बाद उनके बेटे अरविंदसेन यादव और आनंदसेन यादव ने उनकी राजनीतिक विरासत संभाली। कहा जाता है कि अखिलेश यादव द्वारा अवधेश प्रसाद को बढ़ावा देने से मित्रसेन परिवार नाराज था। इस परिवार का यादव समुदाय पर गहरा प्रभाव रहा है और उनकी नाराजगी ने यादव मतदाताओं को समाजवादी पार्टी से दूर कर दिया।
मिल्कीपुर सीट पर भाजपा के जीतने की वजह
News18 से बात करते हुए फैजाबाद के वरिष्ठ पत्रकार वीएन दास ने बताया, “मित्रसेन यादव की वजह से यह सीट समाजवादी पार्टी का गढ़ रही है, जबकि बीजेपी यहां सिर्फ दो बार ही जीत सकी थी। मित्रसेन यादव पहले कम्युनिस्ट पार्टी में भी थे और तब भी चुनाव जीतते रहे।” दास ने आगे कहा, “अयोध्या में हार के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मिल्कीपुर को प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया था। उन्होंने कई मंत्रियों को मैदान में उतारा और इलाके में विकास कार्य तेज कर दिए।”
दास ने बताया, “राम मंदिर बनने के बाद अयोध्या में बीजेपी की हार से आस्थावान लोगों को काफी झटका लगा था। समाजवादी पार्टी ने उपचुनाव में “मथुरा ना काशी, मिल्कीपुर में अजीत पासी” का नारा दिया, लेकिन इससे हिंदू मतदाता सपा के खिलाफ और एकजुट हो गए। इस सारी वजहों से बीजेपी उम्मीदवार चंद्रभानु पासवान की जीत की बड़ी वजह बनी।”
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