देश – Tirupati Laddu Controversy: हिंदुओं की हुंकार! जानिए- क्यों उठा रहे 'सनातन धर्म रक्षण बोर्ड' की मांग? #INA
Tirupati Laddu Controversy: मौजूदा समय में हिंदू समाज मंदिरों के मैनेजमेंट के लिए ‘सनातन धर्म रक्षण बोर्ड’ की मांग कर रहा है. देश के मंदिरों और मठों को कानून के दायरे में लाकर इन पर शिंकजा कसने की साजिश की शुरुआत अंग्रेजों के वक्त में हुई थी. फूट-डालो और राज करो की नीति अमल में लाने वाले ब्रिटिशर्स को संपन्न और आत्म निर्भर मंदिर आंखों में चुभ रहे थे. कैसे रची कई मंदिर के संसाधन और दान पर कब्जे की साजिश. साथ ही ये भी जानिए हिंदू समाज क्यों ‘सनातन धर्म रक्षण बोर्ड’ की मांग उठा रहा है.
सनातन धर्म रक्षण बोर्ड की उठी मांग
तिरुपति मंदिर एक दिव्य स्थान है. मान्यता है कि यहां कलियुग में भगवान विष्णु निवास करते हैं. तिरुपति बालाजी या श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर, सनातन के सबसे महत्वपूर्ण पूजा स्थलों में से एक माना जाता है. हाल ही में सामने आया कि इस मंदिर के प्रसादम में जानवरों की चर्बी और फिश ऑयल का इस्तेमाल हुआ है. इससे सनातन आस्था पर चोट पहुंची और ये मांग उठी कि ‘सनातन धर्म रक्षण बोर्ड’ के जरिए देश के सारे हिंदू मंदिरों और मठों का संचालन सनातनी अपने हाथ में संभालें. विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के संयुक्त महामंत्री सुरेंद्र जैन का कहना है कि, ‘आप हमारी आस्थाओं की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं. मंदिरों की संपत्ति का दुरुपयोग हो रहा है. प्रसाद में मिलावट हो रही है, इसलिए हिंदू समाज इन मंदिरों का संचालन खुद करेगा.’
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तिरुपति मंदिर का संचालन कैसे?
तिरुपति मंदिर का संचालन एक बोर्ड के जरिए होता है, जिसके सर्वोच्च अधिकारी की नियुक्ती राज्य सरकार करती है. मतलब तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम बोर्ड पर राज्य सरकार का नियंत्रण है. तिरुपति मंदिर पर कंट्रोल की साजिश अंग्रेजों के जमाने से शुरू हो गई थी. इसके बाद पूरे देश के मंदिरों को कानून के दायरे में लाकर इन पर शिकंजा कसने की साजिश रची गई.अंग्रजों को संपन्न और आत्मनिर्भर मंदिर, आंखों में चुभ रहे थे.
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भारत में मंदिरों को जमीन दान देने का लिखित इतिहास है. इस भूमि का इस्तेमाल मंदिर प्रशासन उपज और गोपालन में करता था. दान की गई जमीनों पर उगी फसल और गोपालन से मिलने वाले दूध और घी से प्रसादम बनाए जाते थे, जिनमें शुद्धता और पवित्रता का ध्यान रखा जाता है. इसके साथ ही मंदिरों में दिए जाने वाले दान की रकम का इस्तेमाल मंदिरों की मरम्मत और श्रद्धालु की सुविधा के लिए खर्च किया जाता था.
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करोड़ों के चढ़ावे के बावजूद आस्था से खिलवाड़ क्यों? #TirupatiLaddu #TirumalaTemple #NewsUpdate #NewsNation pic.twitter.com/p4wWVIdCHE
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सनातन की पताका को संभाले ये मंदिर, हिंदुओं का धार्मिक और वैचारिक नेतृत्व कर रहे थे. लिहाजा फूट डालो और राज करो की नीति के तहत सबसे पहले मंदिरों पर चोट की गई. कहते हैं तिरुपति मंदिर के भवन का निर्माण 300 ईस्वी में शुरू हुआ था. इस बात के लिखित प्रमाण है कि 1843 से 1933 तक तिरुपति मंदिर का प्रशासन हाथीरामजी मठ के महंत देखा करते थे, लेकिन अभी मंदिर के प्रबंधन में मठ की भूमिका को बिल्कुल दरकिनार कर दिया गया है.
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1933 में तत्कालीन मद्रास सरकार ने इस मंदिर का प्रबंधन अपने हाथों में ले लिया और एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति ‘तिरुमाला-तिरुपति’ का निर्माण किया. इसके साथ ही धार्मिक बंदोबस्ती अधिनियम-1863, धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम-1890 और धर्मार्थ और धार्मिक ट्रस्ट अधिनियम 1920, बनाकर देश भर के हिंदू मंदिरों पर शिकंजा कस दिया. भारत पर शासन के दौरान अंग्रेज जहां एक तरफ मंदिरों की आत्मनिर्भरता पर चोट कर रहे थे, उन पर नियंत्रण की साजिश रच रहे थे, वहीं दूसरे धर्मों के उपासना गृह पर उन्होंने आंखें मूंद रखी थी. ये साजिश फूट डालो और राज करो की योजना का हिस्सा थी.
सरकारों के कंट्रोल में 4 लाख मंदिर
मौजूदा समय में देश के 9 लाख मंदिरों में से 4 लाख मंदिरों पर राज्य सरकारों का नियंत्रण है. मौजूदा समय में चर्च और मस्जिदों की सपत्ति पर कैथोलिक चर्च और वक्फ बोर्ड का नियंत्रण है, लेकिन हिंदू मंदिरों की संपत्ति राज्य सरकारों के नियंत्रण में है. चर्च और मस्जिदों के ट्रस्ट और बोर्ड में गैर धर्म के लोगों के शामिल होने पर पाबंदी है, लेकिन मंदिरों के ट्रस्ट और बोर्ड सदस्य के तौर पर गैर हिंदू भी पात्र हैं, जहां एक तरफ चर्च और मस्जिद में कर्मचारियों को रखने में धर्म को प्राथमिकता दी जाती है. वहीं मंदिरों में सभी धर्म के लोगों को रोजगार मिलता है.
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चर्च और मस्जिद दान में मिले पैसे का इस्तेमाल धर्म प्रचार करने, कॉन्वेंट स्कूल चलाने, और मदरसा निर्माण में खर्च करते हैं, लेकिन मंदिर में मिले दान का बड़ा हिस्सा राज्य सरकारों ले लेती हैं और फिर इनका इस्तेमाल कथित तौर पर मस्जिद और चर्च के विस्तार और रख रखाव पर खर्च करती है. तिरुपति लड्डू कांड के बाद मंदिर मैनेजमेंट को लेकर सनातनी मुखर हो रहे हैं और इस पर पूरा जोर लगा रहे हैं कि मंदिर और मठ राज्य सरकार के चंगुल से निकल जाए.
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