देश- 3 घंटे की मेहनत, बिहार में कमाया नाम; अब दूसरे राज्यों में भी झाडूबेचने की तैयारी में नालंदा की ये महिलाएं- #NA
नालंदा में झाड़ू का बिजनेस
बिहार के नालंदा की पहचान ऐतिहासिक रही है. इस जिले में जहां, एक तरफ प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की पहचान रही है. वहीं, दूसरी तरफ राजगीर और पावापुरी जैसे विश्वप्रसिद्ध पर्यटन स्थल भी, इस जिले की पहचान में शुमार हैं, लेकिन अब इस जिले की एक और पहचान बन रही है.दरअसल, नालंदा जिले में स्थित पावापुरी को पावा नाम से भी जाना जाता है. यहां से दो ऐतिहासिक शहर राजगीर और बोधगया दोनों की नजदीक हैं. पावापुरी पूरी दुनिया में जैन धर्म के मतावलंबियों के लिए पवित्र शहर है. यहीं पर भगवान महावीर को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी. यहां झील के बीच में बना जल मंदिर अत्यंत आकर्षक है.
नालंदा के ऐतिहासिक इतिहास को यहां की वैसी महिलाएं अपने बेहतर श्रम और कार्यकुशलता के दम पर और प्रकाशित कर रही हैं. यहां की महिलाओं की कार्यकुशलता और कुछ करने के नजरिये ने इस गांव को धीरे-धीरे अब एक नयी पहचान देनी शुरू कर दी है. पावापुरी यानि पावा गांव, जिसका अपना एक उन्नत और चमकीला इतिहास और वर्तमान की पहचान रही है. इस गांव की कुछ महिलाओं की अदम्य इच्छाशक्ति के दम पर अब यह झाडू वाले गांव की पहचान बनाने को अग्रसर है. दरअसल, इस गांव की कुछ महिलाओं ने अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए कुछ अलग करने की ठानी. इसमें कुछ लोगों का सहयोग और मार्गदर्शन मिला. फिर इसके बाद यह कारवां चल पड़ा.
दस महिलाओं ने शुरू किया काम
पावापुरी की दस महिलाओं संगीता देवी, चंचला कुमारी, मंजू देवी, शीला देवी, सारिका देवी, अंजनी देवी, कौशली देवी, सीमा देवी, कौसमी और कुसमी देवी. यह उन महिलाओं के नाम हैं, जिन्होंने झाड़ू बनाने की शुरूआत की और आज उनके पास इतने ऑर्डर हैं कि वह पूरी मेहनत से अपने ऑर्डर को पूरा करने में लगी हुई हैं. इन सभी महिलाओं को इकट्ठा करने में अहम भूमिका निभाने वाली संगीता देवी कहती हैं, अभी 10 महिलाएं झाड़ू बनाने के काम में लगी हुई हैं.
बड़ी संख्या में झाड़ू बिक चुकी हैं. अभी कच्चा माल मंगाया गया है. उसके आने के बाद फिर झाड़ू बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. हमारी झाड़ू की क्वालिटी को लेकर के इसकी जबरदस्त मांग है. आसपास के लोगों के अलावा शहरी इलाकों के दुकानों में भी इन झाड़ू की जबरदस्त मांग है.
बनाने के साथ बिक रही झाड़ू
इस काम को शुरू करने को लेकर इन महिलाओं के दल की प्रमुख संगीता देवी बताती है कि हालांकि, अभी इसे शुरू हुए ज्यादा दिन नहीं हुआ है. हां, इसकी तैयारी काफी दिनों से चल रही थी. अभी मुश्किल से एक डेढ़ महीने ही हुए हैं लेकिन, हमें उम्मीद नहीं थी कि इन एक डेढ़ महीने में ही हमारे काम को इतनी सराहना मिलेगी और हम लोग जो झाड़ू बना रहे हैं. उसकी इतनी डिमांड होगी.
तीन से चार घंटे का काम
संगीता बताती हैं कि सबसे खास बात यह है कि झाड़ू बनाने के लिए पूरे दिन का वक्त देना जरूरी नहीं होता है. इस काम में जुड़ी जो भी महिलाएं हैं, वह पूरे दिन में से अपना तीन से चार घंटे का वक्त निकालती हैं. और झाड़ू बनाने के काम में लग जाती हैं. अमूमन दोपहर में सारी महिलाएं इकट्ठा होकर के झाड़ू बनाने के काम में जुट जाती हैं.
संगीता बताती है किं हमारी झाड़ू की क्वालिटी को लेकर के लोग दुकानों में इतनी डिमांड है कि हमारे झाड़ू नालंदा, बिहार शरीफ, पावापुरी, राजगीर, गिरियक जैसे इलाकों में ही खपत हो जा रही है. अब दूसरे जिलों में नवादा, औरंगाबाद, जहानाबाद से भी हमारे पास झाड़ू की आपूर्ति की मांग सामने आ रही है. अभी हम उसकी आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं. हमारी कोशिश है कि इन जिलों के अलावा राज्य के दूसरे जिलों में भी हम अपने झाड़ू को भेज सकें.
पहले जताया शक, अब सराहना
संगीता कहती हैं, इस पूरे काम को करने में बहुत अच्छा लग रहा है. ऐसा महसूस हो रहा है कि अपने दम पर हम लोग कुछ कर पाएंगे. जब हम लोगों ने काम शुरू किया था तब कुछ लोगों ने हमारी कार्य क्षमता पर संदेह किया था. कुछ लोगों ने यहां तक कहा था कि झाड़ू जैसी चीज हर दिन बिक्री के लिए नहीं होती है. इसकी बिक्री कई-कई दिनों पर होती है. लेकिन, मेरा कहना था कि झाड़ू हर घर के लिए जरूरी है. हर घर में इसका उपयोग होता है.
अब जुड़ रहे और लोग
संगीता बताती है कि हमने शुरुआत इन 10 महिलाओं के साथ ही की थी लेकिन, अब यह कारवां बढ़ता जा रहा है. हर रोज हमारे पास कुछ लोग आ रहे हैं जो झाड़ू बनाने की इस काम में जुड़ना चाहते हैं. हम लोग अब अपनी टीम को बढ़ाने के लिए सोच रहे हैं. हमारी टीम में आने वाले दिनों में और भी महिलाएं शामिल होंगी. संगीता यह भी कहती है कि अभी झाड़ू की बिक्री से हमारी कमाई ठीक-ठाक हो जा रही है. लेकिन हमारा ध्यान अभी अपनी कमाई पर नहीं है. हम अभी अपने इस बिजनेस को केवल आगे और बड़े स्तर पर करने के लिए सोच रहे हैं.
हमने केवल 11 हजार में इसकी शुरुआत की थी. हमें उम्मीद नहीं थी कि हमें मार्केट से इतना बढ़िया रिस्पॉन्स मिलेगा. अभी मार्केट से जो भी पैसे हमारे पास आ रहे हैं, हम सारा पैसा अपने बिजनेस को बढ़ाने में लगा दे रहे हैं.
कुछ ले जाते हैं, कुछ को पहुंचाना होता है
संगीता बताती हैं, कच्चा माल को पटना से मंगाया जाता है. जब झाड़ू बनकर के तैयार हो जाता है तो कुछ दुकानदार खुद ही इसे खरीदने के लिए पहुंच जाते हैं. जो नहीं आ पाते हैं उनको झाड़ू बनाकर के हम लोग खुद ही पहुंचा देते हैं. इसके लिए हम लोग अपने स्तर पर ही सप्लाई करते हैं. सारे दुकानदार होलसेल दर पर झाड़ू को खरीद लेते हैं.
संगीता कहती हैं, अब यह सुनकर अच्छा लगता है कि लोग हमारे काम की तारीफ करते हैं और झाड़ू वाले गांव के नाम से भी हमें जानते हैं. कई बार लोग हम लोग को झाड़ू बनाने वाली महिलाओं के नाम से भी बुलाते हैं. हमें ऐसा महसूस हो रहा है कि हम कुछ महिलाओं ने मिलकर के एक बड़े काम की नींव रख दी है.
बंटा हुआ है सबका काम
संगीता जानकारी देती है कि इन 10 महिलाओं ने झाड़ू बनाने की प्रक्रिया को आपस में ही बांट रखा है. किसी महिला के जिम्मे मशीन चलाने का काम है तो किसी के जिम्मे झाड़ू के रॉ मटेरियल में आने वाले तिनके को एकत्र करके आकार और मोटाई के हिसाब से बंडल बनाने का काम होता है. किसी महिला का काम इन तिनके को मशीन में डालकर के घूमने का होता है. संगीता कहती हैं, झाड़ू हम सभी के घर में इस्तेमाल होता है. मेरे घर में भी इस्तेमाल होता है, लेकिन उम्मीद नहीं थी कि कभी मैं भी इसी झाड़ू को बनाऊंगी और इससे पहचान बनेगी.
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