Maharashtra Election: शिवसेना Vs शिवसेना की सिधी टक्कर, संजय निरुपम और सुनील प्रभु का दिलचस्प मुकाबला #INA

उत्तर पश्चिम मुंबई के दिंडोशी विधान सभा क्षेत्र में इस बार का चुनाव बड़ा दिलचस्प होने जा रहा है. शिवसेना के इस गढ़ में उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे की पार्टी आमने सामने है. शिवसेना उद्धव  बाला साहेब ठाकरे ने जहां अपने दो बार के विधायक सुनील प्रभु को हेट्रिक बनाने का मौका दिया है  तो वहीं एकनाथ शिंदे ने यहां से उत्तर भारतीय चेहरा संजय निरुपम को मैदान में उतारा है. लेकिन   इन दोनों शिवसेना की लड़ाई में जानता किसके साथ है ये हमने जानने की कोशिश की.

महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव पर पूरे देश की नजर है. शिवसेना और एनसीपी के विभाजन के बाद ये पहला असेंबली इलेक्शन जिसमें हर पार्टी की साख दांव पर लगी है. एक तरफ महाविकास अघाड़ी लोकसभा चुनाव के बाद जोश से भरी है तो दूसरी तरफ महायुति अपनी गद्दी बचाने के लिए पूरा दम लगा रही है. 

प्रभु हैट्रिक बनाने के लिए दोबारा मैदान में हैं

महाराष्ट्र के 288 विधानसभा सीटों में से कुछ सीटें ऐसे हैं, जहां शिवसेना vs शिवसेना के बीच सीधा मुकाबला है और ऐसी ही एक सीट है. दिंडोशी विधानसभा की जहां एक तरफ उद्धव गुट से 2 बार के विधायक सुनील प्रभु हैट्रिक बनाने के लिए दोबारा मैदान में हैं तो वहीं एकनाथ शिंदे ने हाल ही में कांग्रेस छोड़कर शिंदे गुट में शामिल हुए उत्तर भारतीय चेहरा संजय निरुपम पर दांव लगाया है. लेकिन दिंडोशी की जनता किसके साथ खड़ी है ये भी देखना बड़ा दिलचस्प है.

जनता ने साल 2009 में कांग्रेस को जिताया था

मुंबई के दिंडोशी विधानसभा में वोटर्स की संख्या करीब 2 लाख 85 हजार से ज्यादा है. इस विधानसभा की बड़ी आबादी आज भी झुग्गी बस्तीयों में रहती है. यहां उत्तरभारतीय वोटर्स करीब 20 प्रतिशत हैं तो वहीं 12 प्रतिशत मुस्लिम वोट भी चुनाव के समीकरण को बदलने की ताकत रखते हैं. यहां की जनता ने साल 2009 में कांग्रेस को जिताया था तो वहीं 2014 के बाद से यहां शिवसेना के सुनील प्रभु विधायक हैं. स्थानीय लोगों की मानें तो सुनील प्रभु का पलड़ा यहां से भारी है. इसका सबसे बड़ा कारण है की वो यही के स्थानीय हैं जबकि संजय निरुपम को बाहर से लाए    गए हैं.

हालांकि कहा ये भी जा रहा है की इस बार का चुनाव किसी भी प्रत्याशी के लिए जीतना आसान नहीं होगा. वहीं संजय निरुपम ने भी यहां से जंग छेड़ दिया है और अपनी जीत को लेकर वो पूरी तरह से सुनिश्चित हैं. निरुपम की मानें तो इस क्षेत्र की जनता बदलाव चाहती है क्यूंकि यहां पिछले 10 सालों में जन सरोकार का कोई भी काम नहीं हुआ है.


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