देश- जिस मराठा आरक्षण ने उड़ाई थी CM शिंदे की नींद, बिगाड़ा था BJP का खेल, उस पर चुनाव में सब चुप क्यों?- #NA

महाराष्ट्र चुनाव में मराठा आरक्षण पर सभी दलों ने साधी चुप्पी.

महाराष्ट्र की सियासत की दशा और दिशा मराठा समुदाय ही तय करते रहे हैं. 2023 से महाराष्ट्र की राजनीति मराठा समुदाय के गुस्से, हताशा और आरक्षण की मांग के इर्द-गिर्द घूमती रही है. मराठा आरक्षण आंदोलन को धार देकर मनोज जरांगे ने सीएम एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस की नींद हराम कर दी थी और लोकसभा चुनाव में बीजेपी-शिवसेना-एनसीपी का सियासी गेम बिगाड़ दिया था. इसके बावजूद विधानसभा चुनाव के दौरान मराठा आरक्षण की आवाज सुनाई नहीं दे रही है, न ही महाविकास अघाड़ी और न ही महायुति कुछ बोल रही है.

मराठा आरक्षण आंदोलन का गढ़ रहे जालना में चुनाव प्रचार के दौरान राजनेताओं ने इस मुद्दे से दूरी बनाते हुए महिला-केंद्रित कल्याण योजनाओं पर ही अपना ध्यान केंद्रित किया. बीजेपी के अगुवाई वाले महायुति गठबंधन के नेता जहां लाडली बहिन योजना का जिक्र करते हुए नजर आए तो महाविकास अघाड़ी (एमवीए) के नेता भी सत्ता में आने पर महालक्ष्मी योजना के तहत महिलाओं को हर महीने 3 हजार रुपये देने का बखान करते दिखे. ऐसे में सवाल उठता है आखिर क्या वजह है कि दोनों ही गठबंधनों ने मराठा आरक्षण के मुद्दे पर चुप्पी अख्तियार कर रखी है.

शिंदे सरकार ने पारित किया था विधेयक

महाराष्ट्र में मराठा समुदाय लंबे समय से आरक्षण की मांग कर रहे हैं, लेकिन उसे अमलीजामा अभी तक नहीं पहनाया जा सका है. मराठा समाज के युवाओं को लगता है कि आरक्षण न मिलने से शिक्षा और नौकरी में पिछड़ते जा रहे हैं. इसके चलते मराठा समुदाय की 21 साल की दीपा भोसले खुदकुशी कर चुकी हैं. इसके बाद आरक्षण के मुद्दे को ऐसी हवा मिली कि पूरे महाराष्ट्र को अपने सियासी जद में ले लिया. मनोज जरांगे इस मांग को लेकर धरने पर बैठ गए. मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र का इलाका मराठा आरक्षण का केंद्र बन गया.

मराठा आंदोलन के चलते शिंदे सरकार ने मराठा समुदाय को 10 फीसदी आरक्षण प्रदान करने वाला विधेयक पारित किया था. मनोज जरांगे ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के तहत मराठा कोटा की मांग के लिए जालना में भूख हड़ताल कर दी. इसके चलते शिंदे सरकार ने मराठा समुदाय को कुनबी जाति के तहत आरक्षण देने का रास्ता निकाला, लेकिन ओबीसी समुदाय की नाराजगी के चलते अधर में लटक गया.

पूरी नहीं हो सकीआरक्षण की मांग

शिंदे यह भरोसा देते रहे कि मराठा आरक्षण के चलते ओबीसी के कोटे पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन मराठा बनाम ओबीसी और धनगर बनाम आदिवासी नैरेटिव हो जाने के चलते आरक्षण की मांग पूरी नहीं हो सकी. 2024 के लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र के मराठा बेल्ट माने जाने वाले मराठवाड़ा और पश्चिम महाराष्ट्र में बीजेपी का पूरी तरह से सफाया हो गया था.

मराठवाड़ा इलाके की आठ लोकसभा सीटों में से बीजेपी एक भी सीट नहीं जीत सकी और पश्चिम महाराष्ट्र में बीजेपी का खाता नहीं खुला. मराठा आरक्षण आंदोलन के चलते बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा था तो कांग्रेस-शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार की एनसीपी को सियासी फायदा मिला था. इसके बावजूद न ही महायुति और न ही महाविकास अघाड़ी मराठा आरक्षण के मुद्दे पर विधानसभा चुनाव प्रचार में बोल रही है.

जरांगे ने भी अख्तियार की खामोशी

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान पांच दिन बाद ठप हो जाएगा. महायुति और महाविकास अघाड़ी दोनों ही गठबंधन के दिग्गज नेताओं ने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक रखी है, लेकिन मराठा आरक्षण पर कुछ भी नहीं बोलते नजर आए. मराठा आंदोलन के चेहरे मनोज जरांगे ने चुनाव में पहले उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया, लेकिन नामांकन वापसी के अंतिम दिन अपने कदम वापस खींच लिए. जरांगे भी खामोशी अख्तियार किए हैं तो नेता भी चुप हैं. यह जरांगे की रणनीति का हिस्सा भी माना जा रहा है, लेकिन सियासी दलों की खामोशी अलग ही सियासत बयां कर रही है.

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने जलाना में अभी तक दो चुनावी रैलियों को संबोधित किया, जहां पर उन्होंने महाविकास अघाड़ी और उद्धव ठाकरे की आलोचना की, लेकिन वे मराठा या ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर टिप्पणी करने से बचते नजर आए. मुख्यमंत्री ने लाडली बहना योजना का जिक्र जरूर किया. जालना लोकसभा सीट से हार का सामना करने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री रावसाहेब दानवे अपने बेटे संतोष दानवे के लिए प्रचार करते वक्त आरक्षण के मुद्दे से बचते हुए नजर आए.

राहुल गांधी भी मराठा आरक्षण पर चुप

कांग्रेस की महाराष्ट्र इकाई के प्रमुख नाना पटोले ने जालना में एक रैली के दौरान आरक्षण के मुद्दे पर बात करने से परहेज किया. पटोले ने रैली में महायुति सरकार और उसकी कल्याणकारी योजनाओं पर निशाना साधा. नाना पटोले महालक्ष्मी योजना सहित एमवीए की कल्याणकारी योजना की बात करते नजर आए. एनसीपी (एस) शरद पवार भी जलाना में जनसभा को संबोधित करते हुए जातिगत जनगणना और आरक्षण की लिमिट को बढ़ाने की मांग को उठाया, लेकिन मराठा आरक्षण के मुद्दे का जिक्र करने से परहेज किया.

शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अपने प्रचार अभियान के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की आलोचना की थी, लेकिन उन्होंने भी आरक्षण के मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की. उद्धव ने अपने अभियान में मराठा आरक्षण के बजाय एमवीए की कल्याणकारी योजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया. राहुल गांधी भी जातिगत जनगणना कराने और आरक्षण लिमिट को खत्म करने की मांग जरूर कर रहे हैं, लेकिन मराठा आरक्षण पर चुप हैं.

ओबीसी वोटों के छिटकने का खतरा

महाराष्ट्र की सियासत मराठा आरक्षण आंदोलन के चलते सबसे ज्यादा असुरक्षित ओबीसी समाज ही महसूस कर रहा है. ओबीसी नहीं चाहता है कि उसके कोटे का आरक्षण मराठों को दिया जाए. इसके चलते ही ओबीसी और मराठा एक दूसरे के विरोधी हो गए हैं. महाराष्ट्र के गांव-गांव में ओबीसी और मराठा के बीच गहरी खाईं पैदा हो गई है.

मराठा समुदाय और ओबीसी समाज ने एक-दूसरे की दुकानों से सामान लेना तक बंद कर दिया था. इसके चलते ही ओबीसी के कद्दावर नेता छग्गन भुजबल ने शरद पवार से मुलाकात कर मराठा और ओबीसी के बीच बढ़ती दूरी को पाटने की कवायद करने के लिए गुहार लगाई थी. महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में सियासी दल इस बात के डर से मराठा आरक्षण का मुद्दा नहीं उठा रहे हैं, क्योंकि उन्हें ओबीसी वोटों के छिटकने का खतरा दिख रहा है. राज्य में करीब 52 फीसदी ओबीसी वोटर हैं जबकि मराठा समुदाय की आबादी 28 फीसदी के करीब है. इसीलिए राजनीतिक दल मराठा आरक्षण का मुद्दा उठाने से बच रहे हैं.

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