देश – थकान, डर और जिम्मेदारियों का बोझ… फिर भी पूरे दिन साथ रखता है जोमैटो ब्वाय, ताकी ‘सार्थक’ बने 2 साल का बेटा- #INA

दो साल के बच्चे को संग रख जिम्मेदारियों का बोझ उठाता है ये पिता

एक माता-पिता के जीवन में सबसे खास क्षण वही होता है जब उनका बच्चा इस दुनिया में अपनी पहली सांस लेता है. फिर उसे पालना और एक बेहतर इंसान बनाने के लिए जद्दोजहद करना… माता-पिता एक बच्चे के लिए क्या कुछ नहीं करते. ये कहना बहुत आसान है कि बिना किसी की मदद या सहारे के एक इंसान अपना परिवार चला सकता है. लेकिन ऐसा हर बार होता नहीं. यूं तो अमुमन ये औरतों से एक्सपेक्ट किया जाता है कि वो घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाएं और सामंजस्य बनाते हुए बच्चे का भी सही तरीके से पालन पोषण करें, लेकिन कई बार कुछ ऐसे भी किस्से सामने आ जाते हैं जो इस परम्परा को तोड़ने का काम करते हैं. राजधानी दिल्ली की सड़कों पर रेंटल जोलो बाइक चलाने वाले 23 साल के सोनू की भी यही कहानी है.

सोनू दिल्ली की सड़कों पर जाड़ा, गर्मी, बरसात कुछ भी देखे बिना बाइक चलाते हैं. वह फूड एप कंपनियों के लिए फूड डिलिवरी करते हैं. लेकिन आप सोचेंगे इसमें क्या खास बात है… इसमें खास बात है सोनू के साथ चलने वाला उनका दो साल का मासूम बच्चा सार्थक. सार्थक की उम्र जरूर दो साल की है लेकिन इस छोटी सी उम्र में भी वह अपने पिता के साथ दिनभर में बाइक पर कई किलोमीटर का सफर तय करता है. दो साल का बच्चा हर दिन अपने पिता को उसके बेहतर भविष्य बनाने के लिए खपते देखता है. सोनू उसे साथ लेकर ही काम करते हैं.

कभी खुद सार्थक से थे सोनू

सार्थक की मां नैंसी फिलहाल गांव में हैं. वो वहां रहकर घर की देखभाल कर रही हैं. ये पहली बार नहीं है जब सोनू ने कोई जिम्मेदारी संभाली हो. उन्हें तो छोटी सी उम्र से ही जिम्मेदारियों को कंधे पर लेकर निभाने का हुनर आता है. टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर के मुताबिक, सोनू ने मात्र 6 साल की उम्र में ही घर का बीड़ा उठा लिया था. वह अपने परिवार का पोषण करने के लिए जिंदगी की धूप में तबसे तप रहे हैं जब से उन्हें जिम्मेदारी शब्द का मतलब भी नहीं पता था. सोनू बिहार के रहने वाले हैं. उन्होंने पढ़ाई और अपने काम को एक साथ संभालते हुए पूरे परिवार का भरण-पोषण किया. फिर उनकी जिंदगी में नैंसी आईं और सबकुछ बदल गया. सोनू और नैंसी के प्यार को घरवालों की सहमती नहीं मिली. फिर भी शादी के बंधन में बंधकर दोनों साल 2019 में दिल्ली आ पहुंचे.

ना पैसे थे ना ही रहने को ठिकाना

दिल्ली तो आ गए लेकिन बिना परिवार के साथ के गुजारा करना मुश्किल था. लेकिन हिम्मत सबसे ज्यादा तभी आती भी है जब इंसान के पास खोने को कुछ नहीं होता. सोनू और नैंसी के पास भी खोने के लिए कुछ नहीं था. उनके पास ना पैसे थे ना ही रहने को ठिकाना… था तो केवल एक दूसरे का साथ और एक बेहतर जिंदगी की उम्मीद. सोनू और नैंसी ने साथ मिलकर कई सारे अलग-अलग तरह के काम किए. सोनू ने पहले 200 रूपये में मजदूरी की फिर सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी भी की. लेकिन फिर जिन्दगी ने करवट ली और सार्थक का जन्म हुआ. सार्थक के दुनिया में आने से मानो सोनू-नैंसी की जिन्दगी ही बदल गई. इसके बाद सोनू ने फूड डिलिवरी का काम करने शुरू किया और साथ ही वह जोलो बाइक्स भी चलाने लगे. पूरे दिन कई किलोमीटर का सफर करके उनके हाथ केवल 500-600 रुपये लगते, लेकिन सार्थक की मासूम सी मुस्कुराहट देख मानो सोनू की सारी थकान ही उतर जाती है.

जद्दोजहद में भी मुस्कुरा लेते हैं पिता-बेटे

नैंसी के गांव जाने के बाद सार्थक की पूरी जिम्मेदारी पिता सोनू पर आ गई. वह उसको खिलाते-पिलाते, नहलाते, कपड़े पहनाते… कभी उसके लिए घोड़ा बनते तो कभी उसकी ख्वाहिशों के लिए दिन-दिनभर शहर के चक्कर काटते. लेकिन सार्थक को घर में अकेला छोड़ना सोनू को गंवारा नहीं था. इसलिए सोनू ने अपने कलेजे के टुकड़े को अपने सीने से लगाकर रखने का फैसला लिया. वह उसे हर दिन अपने साथ काम पर लेकर जाते हैं. पूरा दिन दो साल का सार्थक पिता को जिंदगी के थपेड़े खाते देखता है और सीखता है जद्दोजहद में भी मुस्कुराना किसे कहते हैं.

दिन में 12 घंटे तक काम करते हैं सोनू

टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में पिता सोनू ने बताया कि वह चाहते हैं कि सार्थक खूब पढ़े और वह जल्द ही उसका स्कूल शुरू कर पाएं. सोनू चाहते हैं कि सार्थक स्कूल जाए और दोस्त बनाए. सीखे की जीवन को कैसे जिया जाता है. वो सपने देखे और उन्हें पूरा करने की हिम्मत करे. सोनू पूरे दिन में 12-13 घंटों तक काम करते हैं… लेकिन फुरसत में वो अपने बच्चे के साथ किसी फुटपाथ या फिर पार्क में बैठ जाते हैं और बस उस अबोध की मासूमियत को देखते हैं. उसकी बातें सुनते हैं, खेलते हैं. अपनी तकलीफों में उसकी मुस्कुराहट की वजह से अपने लिए थोड़ी सी हंसी वह भी कमा लेते हैं… और ये हंसी उनके पूरे दिन की महनत का सबसे बड़ा और कामयाब फल होती है. लेकिन, सोनू हर दिन जो सफर करते हैं… उन्हें इस बात का दुख भी रहता है कि वह केवल खुद ही ये थपेड़े नहीं झेलते बल्कि नन्हा सार्थक भी सब कुछ झेलता है.

थकान, डर और जिम्मेदारियों का बोझ

दिल्ली की भीषण सर्दी, गर्मी और बरसात में सोनू को सार्थक के साथ ही सफर करना पड़ता है. वह तो सब सह जाते हैं लेकिन बच्चे को भी ये सब सहना पड़ता है जो सोनू का कलेजा काटकर रख देता है. टीओआई से बात करते हुए सोनू ने बताया कि कई बार रात के वक्त उन्हें ऑर्डर के लिए काफी सुनसान रास्तों पर जाना पड़ता है. कई बार उनकी बाइक के पीछे आवारा कुत्ते पड़ जाते हैं… दिल्ली की सड़कों का ट्रैफिक और कई बार होने वाली सड़क दुर्घटनाएं उन्हें बहुत परेशान करती हैं. भीषण गर्मी, कड़कड़ाती हुई सर्दी या फिर गरजते बादल और मूसलाधार बारिश में भी सार्थक को उन्हें साथ ही रखना पड़ता है… लेकिन जिसके पिता इतने हिम्मती हों वह बच्चा भी तो हिम्मती ही होगा. सार्थक भी हर मुश्किल में पिता का साथ देता है और उसकी मुस्कुराहट यूंही बरकरार रहती है. सोनू कहते हैं कि उनकी पत्नी ने भी अपनी गर्भावस्ता के दौरान कई घरों का चोंका-बर्तन किया ताकी वो और सोनू घर चला सकें. वह खुद एक रोटी खाते हैं लेकिन सार्थक की हर ख्वाहिश पूरी करते हैं. शायद यही प्यार और समर्पण एक वजह है जिसकी वजह से थकान…डर और जिम्मेदारियों के बोझ के साथ भी सोनू मुस्कुरा लेते हैं क्योंकि उनके मुस्कुराने की वजह उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती है.

.

Copyright Disclaimer :- Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing., educational or personal use tips the balance in favor of fair use.

यह पोस्ट सबसे पहले टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम पर प्रकाशित हुआ , हमने टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम के सोंजन्य से आरएसएस फीड से इसको रिपब्लिश करा है, साथ में टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम का सोर्स लिंक दिया जा रहा है आप चाहें तो सोर्स लिंक से भी आर्टिकल पढ़ सकतें हैं
The post appeared first on टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम Source link

Back to top button