देश – दिल्ली में लॉकडाउन! क्या कोरोना की तरह यही बचा है पॉल्यूशन का सॉल्यूशन?- #INA

दिल्ली का प्रदूषण से हाल बेहाल

चेहरे पे सारे शहर के गर्द-ए-मलाल है
जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है

उलझन घुटन हिरास तपिश कर्ब इंतिशार
वो भीड़ है के साँस भी लेना मुहाल है

मशहूर शायर मलिकजादा मंजूर अहमद ने ये शेर लिखा तो होगा इश्क के किसी एहसास में, मगर शेर में जो दिल्ली का हाल बताया है, वो शहर की जहरीली आबो हवा का आईना है. दिल्ली की हवा इस कदर दमघोंटू हो चुकी है कि लोगों का सांस लेना तक दूभर हो गया है. दिल्ली की हवा में सांस लेना हर रोज करीब 30 से 40 सिगरेट पीने के बराबर है.

प्रदूषण का स्तर गंभीर श्रेणी से ख़तरनाक स्तर तक पहुंच चुका है. AQI का स्केल 400 के पार पहुंचने के बाद दिल्ली में ग्रैप-4 लागू करना पड़ा है. इसके तहत स्कूल बंद कर दिए गए हैं और लोगों को घरों के अंदर रहने की सलाह दी गई है. सर्दियों की शुरुआत के साथ दिल्ली में ऐसे हालात कई साल से बनते हैं. एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स के मुताबिक, प्रदूषण की वजह से दिल्ली के लोगों की उम्र में 10 साल की कमी आ रही है, बावजूद इसके कोई भी सरकार इसकी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं है.

तो इस हालत में क्या लॉकडाउन ही दिल्ली का प्रदूषण खत्म कर सकता है? ये सवाल इसलिए क्योंकि कोरोना काल में जब लॉकडाउन लगा था तो इसके तमाम दूसरे नुकसानों के बीच एक बात प्रकृति के लिए बहुत अच्छी हुई थी. हवा के साथ पूरे वातावरण में प्रदूषण ना के बराबर हो गया था. लॉकडाउन की वजह से सिर्फ वायु नहीं बल्कि जल और ध्वनि प्रदूषण में भारी कमी आई थी. लेकिन वो महामारी का संकट था, अभी ऐसे हालात में लॉकडाइन लागू करना आसान होगा? इस सवाल को हमने जानकारों से समझने की कोशिश की?

लॉकडाउन से प्रदूषण पर लगाम: समाधान या सिर्फ राहत?

लॉकडाउन के दौरान दिल्ली ने साफ हवा और नीले आसमान का नज़ारा देखा. उदाहरण के लिए, 2020 में लॉकडाउन के शुरुआती 21 दिनों में आनंद विहार में पीएम 2.5 का स्तर तीन सौ से गिरकर 101 तक आ गया. लेकिन सवाल उठता है कि क्या लॉकडाउन प्रदूषण रोकने का स्थायी उपाय हो सकता है?

उजाला सिग्नस ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के फाउंडर डॉ. शुचिन बजाज कहते हैं कि लॉकडाउन से प्रदूषण में अस्थायी गिरावट आ सकती है, लेकिन यह समाधान नहीं है, ऊपर से इसका सबसे बड़ा असर गरीबों पर पड़ता है, जैसा कि कोविड लॉकडाउन के दौरान देखा गया था. वह ब्रिटेन के ग्रेट स्मॉग (1950) का उदाहरण देते हैं, जहां प्रदूषण की वजह से 12,000 लोगों की जान गई, लेकिन लॉकडाउन नहीं लगाया गया. इसके बजाय ब्रिटिश सरकार ने ठोस कदम उठाए. उनका मानना है कि दिल्ली को भी प्रदूषण के खिलाफ ऐसा ही राजनीतिक संकल्प दिखाना होगा.

अमृतधारा हॉस्पिटल, करनाल के मेडिकल डायरेक्टर शमित गुप्ता भी शुचिन बजाज से सहमत है. उनका कहना है कि लॉकडाउन से भी पराली जलने जैसी समस्याएं खत्म नहीं होंगी, जो दिल्ली के प्रदूषण में लगभग 35% योगदान करती है. इसके अलावा, गाड़ियों से निकलने वाला धुआं, निर्माण कार्य, और स्थिर हवा जैसे कारक भी प्रदूषण बढ़ाते हैं.

यह जानना होगा कि किस शहर में कौन सा क्षेत्र मतलब ट्रांसपोर्ट, पावर, निर्माण इत्यादि कितना प्रदूषण फैला रहा है. जब तक इन बारीकियों को ध्यान में रखकर लक्ष्य तय नहीं होंगे तब तक हवा को सांस लेने लायक नहीं बनाया जा सकता.

समाधान क्या हो सकते हैं?

डॉ. बजाज और डॉ. गुप्ता का मानना है कि समस्या का समाधान व्यापक और ठोस कदमों से ही संभव है.

सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा

पब्लिक ट्रांसपोर्ट के बुनियादी ढांचे में सुधार करना होगा. बेहतर और सुलभ परिवहन से निजी वाहनों का इस्तेमाल कम होगा, जिससे वायु प्रदूषण में कमी आएगी. प्रदूषण फैलाने वालों के लिए सख्त जुर्माने और दंड का प्रावधान होना चाहिए.

पराली जलाने पर रोक

सरकार किसानों को पराली जलाने के लिए मजबूर होने से रोक सकती है. इसके लिए पराली खरीदने या अन्य विकल्प देने जैसे कदम उठाए जा सकते हैं.

इलेक्ट्रिक वाहनों पर जोर

इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना होगा ताकि लोग पेट्रोल-डीजल के वाहनों का इस्तेमाल कम करें. जनता को प्रदूषण से होने वाले स्वास्थ्य खतरों और पर्यावरण के महत्व के बारे में जागरूक करना होगा.

राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत

डॉ. बजाज कहते हैं कि दिल्ली लंदन की तरह प्रदूषण पर जीत हासिल कर सकती है, लेकिन इसके लिए राजनीतिक संकल्प और गंभीर प्रयासों की आवश्यकता है. वायु प्रदूषण को चुनावी मुद्दा बनाना होगा, ताकि इसे प्राथमिकता दी जा सके. जब तक सरकार, जनता, और विशेषज्ञ मिलकर ठोस कदम नहीं उठाएंगे, तब तक यह समस्या बनी रहेगी.

शुचिन बजाज ने चीन की राजधानी बीजिंग का उदहारण दिया. उन्होंने कहा कि करीब 10 साल पहले चीन के बीजिंग में AQI का लेवल 100 के पार चला गया था. मगर चीन ने साल 2013 में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए बड़ी योजना बनाई और साल 2022 आते-आते बीजिंग का AQI 30 पर आ गया. शुचिन बजाज कहते हैं कि जब अपना पड़ोसी देश AQI सुधार सकता है तो भारत क्यों नहीं?

दिल्ली को अगर साफ हवा चाहिए तो इसके लिए लंबा सफर तय करना है. लॉकडाउन केवल एक अस्थायी समाधान हो सकता है मगर असली समाधान तो टिकाऊ कदमों से ही संभव है.

कितना ख़तरनाक है ये प्रदूषण

लैंसेट न्यूरोलॉजी जर्नल में पब्लिश एक हालिया ग्लोबल स्टडी के मुताबिक, वायु प्रदूषण सबराकनॉइड हैमरेज यानी SAH की बड़ी वजह है. ये एक तरह का ब्रेनस्ट्रोक है. इसमें पता चला है कि साल 2021 में सबराकनॉइड हैमरेज के कारण होने वाली लगभग 14% मौतों और विकलांगता के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार है.

डॉक्टर शमित गुप्ता कहते हैं कि एयर पॉल्यूशन से हमारी सेहत पर कई प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं. प्रदूषण में सांस लेने से फेफड़े कमजोर हो जाते हैं. फेफड़ों में प्रदूषण जमने लगता है, जिससे वो सिकुड़ने लगते हैं. प्रदूषित हवा में PM 2.5 पार्टिकल्स होते हैं. जब ये पार्टिकल्स सांस के जरिए शरीर में घुसते हैं तो ऑक्सीजन के साथ हर अंग में पहुंच जाते हैं.

फिर ये हर अंग को नुकसान पहुंचाते हैं और कैंसर फैलाने की कोशिश करते हैं. दिल की बीमारियों का रिस्क बढ़ाते हैं. जैसे दिल का दौरा पड़ना, दिल का कमजोर हो जाना. लिवर और किडनी पर भी प्रदूषित हवा का असर पड़ता है. लिहाजा लोगों की उम्र कम होती चली जाती है.

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