यूपी- IAS मनोज कुमार सिंह के UP के मुख्य सचिव बनाए जाने के पीछे की क्या है Inside story? – INA
सात साल में ये पहली बार हैं जब सीएम योगी ने अपने गुड बुक में शामिल किसी आईएएस को प्रदेश का मुख्य सचिव बनाया हैं. 1988 बैच के आईएएस मनोज कुमार सिंह न सिर्फ सीएम के सबसे भरोसेमंद आईएएस अधिकारी हैं बल्कि सूबे के आईएएस लॉबी में तेज तर्रार अधिकारियों में इनका नाम शुमार होता हैं. मनोज कुमार सिंह का कार्यकाल जुलाई 2025 में समाप्त होगा. मनोज कुमार ने रविवार को दुर्गा शंकर मिश्र के स्थान पर मुख्य सचिव का कार्यभार ग्रहण भी कर लिया है.
मनोज कुमार सिंह अभी तक मुख्य सचिव के बाद ब्यूरोक्रेसी की नंबर दो की कुर्सी कृषि उत्पादन आयुक्त (एपीसी) के पद तैनात थे. इसके अलावा इन्फ्रास्ट्रक्चर और औद्योगिक विकास आयुक्त, पंचायती राज विभाग, सीईओ यूपीडा, उद्यानिकी (हॉर्टिकल्चर) और खाद्य प्रसंस्करण सहित कई विभागों की जिम्मेदारी भी संभाल रहे थे. वहीं ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट-2023 में 40 लाख करोड़ रुपए के निवेश करार में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
सीएम योगी को केंद्र से सामंजस्य बिठाना पड़ता था
नए चीफ सेक्रेटरी का नाम तय होने के साथ केंद्र की तरफ से सूबे में ये राजनीतिक संदेश भी दे दिया गया है कि यूपी की कमान सीएम योगी के हाथ में है और उनके नेतृत्व में ही पार्टी और संगठन दोनों काम करेंगे. पिछले सात सालों में राजीव कुमार, अनूप चंद्र पांडेय, राजेन्द कुमार तिवारी से लेकर दुर्गा शंकर मिश्रा तक प्रदेश के चीफ सेक्रेटरी तय करने में केंद्र की चलती थी और सीएम योगी को उनके साथ सामंजस्य बिठाना पड़ता था. ये पहला मौका है जब सीएस सीएम की पसंद का होगा और उनकी नियुक्ति में केंद्र का किसी तरह का कोई हस्तक्षेप नहीं दिखा.
उत्तर प्रदेश में लोकसभा के चुनाव परिणाम बीजेपी और केंद्र सरकार के लिए चिंता का सबब बना हुआ हैं. पार्टी को जहां सबसे बेहतर करने की उम्मीद थी पार्टी को सबसे बड़ा धक्का वहीं से लगा. चुनाव परिणाम के विश्लेषण के बाद ये बातें सामने आई कि सरकार और संगठन में तालमेल का अभाव और सत्ता के कई केंद्र बन जाने की वजह से चुनाव में पार्टी की किरकिरी हुई. पार्टी ने इससे सबक लेते हुए दुर्गा शंकर मिश्रा को चौथी बार सेवा विस्तार देने से मना कर दिया और सीएम को सीएस चुनने के लिए फ्री हैंड दे दिया.
पहली बार जातीय संतुलन बनाने की कोशिश नहीं हुई
ये बीजेपी की कार्य संस्कृति के ठीक उलट है कि मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव दोनों एक ही जाति से हैं. बीजेपी के शासन में ये सम्भवतः पहली बार है कि सरकार के दोनों महत्वपूर्ण पदों पर सीएम और सीएस में जातीय संतुलन बनाने की कोशिश नहीं हुई है. विश्लेषक इसके पीछे सीएम को निर्णय लेने की आजादी देने की है जो लोकसभा चुनाव में नहीं दिखी थी. केंद्र चाहता है कि उत्तर प्रदेश में पार्टी फिर से मजबूत हो और इसके लिए एक सशक्त लीडरशिप की आवश्यकता है.
नए मुख्य सचिव के सामने क्या है चुनौती?
नए मुख्य सचिव के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी कि प्रदेश के बाबुओं को जनोन्मुखी (जनता को केन्द्र बिन्दु बनाकर काम करना) बनाया जाय और सरकार की नीतियां जमीनी स्तर पर दिखाई दे. लोकसभा चुनाव के परिणाम में ये तथ्य भी निकल कर आया कि कुछ अधिकारियों की मनमानी ने पार्टी की लुटिया डुबोने का काम किया हैं. फिलहाल अपने पसंद के नए मुख्य सचिव बना लेने के बाद सीएम योगी के सामने सबसे बड़ा लक्ष्य यूपी के दस सीटों पर होने वाले उपचुनाव हैं जो सीएम की लोकप्रियता का लिटमस टेस्ट माना जा रहा हैं.
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