यूपी- इलाहाबाद: हाईकोर्ट की जिला अदालतों को नसीहत, जमानत देते समय न लगाएं मुश्किल शर्तें – INA

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला अदालतों को जेल से रिहाई में बाधा डालने वाली मनमानी जमानत शर्तें न लगाने की नसीहत दी है. कोर्ट ने कहा कि ये ट्रायल कोर्ट की जिम्मेदारी है कि वो अभियुक्त को जमानत पर रिहा करने के लिए जमानतदार तय करते समय अभियुक्त की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर भी विचार करे.

हाईकोर्ट ने कहा कि शर्तें ऐसी न हो जिसका पालन न हो पाने की वजह से जमानत देने का उद्देश्य विफल हो जाए. कोर्ट का कहना है कि जो गरीब हैं या समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों से हैं, वो ऐसी जमानत शर्तों का पालन करने में सक्षम नहीं होते जिसके चलते वो रिहा नहीं हो पाते.

‘आरोपी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर हो विचार’

आगरा के अरमान की अर्जी की सुनवाई करते हुए जज अजय भनोट ने कहा कि ये ट्रायल कोर्ट की जिम्मेदारी है कि वो जमानतदार तय करते समय आरोपी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर विचार करे. कोर्ट ने ये टिप्पणी आगरा के अरमान को जमानत देते हुए की, जो 13 सितंबर 2020 से जेल में था. अरमान पर थाना, एत्मादपुर , आगरा में यूपी गैंगस्टर एक्ट लगा है. उसने जमानत के लिए हाईकोर्ट की शरण ली थी, क्योंकि उसके खिलाफ दर्ज कई मामलों में से एक में निचली अदालत ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी.

हाईकोर्ट ने आरोपी को दी जमानत

हाईकोर्ट ने ये देखते हुए अरमान को जमानत दे दी कि उसने अपना आपराधिक इतिहास बताया है, उसके भागने का खतरा नहीं है, इसके साथ ही उसने जांच और मुकदमे की कार्यवाई में सहयोग किया है. कोर्ट ने कहा कि अरमान के खिलाफ दर्ज अन्य आपराधिक मामलों में निचली अदालत द्वारा जमानत दिए जाने के बावजूद, जमानत पेश करने में असमर्थता के कारण आरोपी को जमानत पर रिहा नहीं किया गया.

आवेदक को कानूनी सहायता उपलब्ध कराने का निर्देश

कोर्ट ने आगरा जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) को ये सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि आवेदक को जमानत पर रिहाई के लिए जमानत राशि जमा करने और अन्य औपचारिकताएं पूरी करने के लिए उचित कानूनी सहायता उपलब्ध कराई जाए.


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