खबर शहर , UP: कभी बामसेफ था बसपा की परछाई, अब वजूद बचाने को आ रहा याद, कई संगठन होने से ऊहापोह – INA
दलित कर्मचारियों को एकजुट करने के लिए वर्ष 1978 में बामसेफ (बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज इंप्लाई फेडरेशन) की स्थापना का मकसद राजनीति में आना नहीं था, लेकिन बदलते दौर में यह संगठन अब बसपा का वजूद बचाने की मजबूरी बन गया है। बसपा को यूपी समेत कई प्रदेशों में दलित वोट बैंक पर पकड़ कमजोर पड़ती देख बामसेफ की याद आई है। इसलिए अब इसका पुनर्गठन करने की जरूरत महसूस की जा रही है।
पार्टी के कुछ पदाधिकारी बामसेफ का हर जिले में संगठन होने का दावा करते हैं तो कुछ इसके वजूद पर ही सवाल उठा रहे हैं। पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के मुताबिक बसपा में बामसेफ का अब कोई अस्तित्व नहीं है। कुछ सरकारी अधिकारी और कर्मचारी जरूर सहयोग करते रहते हैं। ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि दशकों बाद इसका पुनर्गठन कैसे होगा। तमाम नेता पहले बामसेफ से जुड़े थे जिन्हें कांशीराम ने साथ लेकर बसपा की स्थापना की थी।
शुरुआती दौर में दिल्ली, पंजाब, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, हरियाणा और यूपी में पैर जमाने वाले गैर राजनीतिक संगठन बामसेफ का सियासी चेहरा बसपा बनी तो इसे बिसरा दिया गया। वर्तमान में बामसेफ कई धड़ों में बंटा है। बसपा जिस बामसेफ को अपना बताती है, उसका कोई संगठन ही नहीं है। इसे कभी पंजीकृत भी नहीं कराया गया। वहीं, वामन मेश्राम के पंजीकृत बामसेफ संगठन का कई राज्यों में विस्तार हो चुका है। यह संगठन कांशीराम को तो आज भी अपना नेता मानता है, लेकिन अन्य बसपा नेताओं को नहीं।
जाटव वोट बैंक की लड़ाई
लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं दलित चिंतक रविकांत के मुताबिक बामसेफ का दोबारा पुनर्गठन करने की बसपा की कवायद सिर्फ जाटव वोट बैंक पर कब्जा बरकरार रखना है। बसपा का संगठन पूरी तरह से खात्मे की ओर है। उसके जाटव वोट पर भी आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) का दखल बढ़ता जा रहा है। आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर का सांसद बनना बसपा के लिए खतरे की घंटी बन चुका है। बसपा ने बीते दशकों में बामसेफ की सुध तक नहीं ली जिससे जमीनी स्तर पर संगठन विस्तार का काम बंद हो गया। इसमें शिक्षित एवं समर्पित लोग थे, जिनकी बातों को समाज मानता था। अब यह तबका बसपा की जगह दूसरे विकल्प तलाश रहा है।
कांशीराम संस्थापकों में थे शामिल
बामसेफ की स्थापना राजस्थान के दीना भाना और महाराष्ट्र के डीके खापर्डे ने की थी। इसके बाद पंजाब के कांशीराम भी इस मुहिम में शामिल हो गए। इसका उद्देश्य दलित कर्मचारियों और अधिकारियों के हक के लिए काम करना था। इससे तमाम दलित अधिकारी एवं कर्मचारी जुड़े थे। बसपा की स्थापना के बाद कांशीराम ने इसे मजबूत नहीं किया। इसका पंजीकरण कराने से भी इन्कार कर दिया। इससे देश भर में इसी नाम से कई संगठन बन गए।
जातियों को जोड़ने का काम कर रहे
बामसेफ का एक और संगठन संविधान का प्रचार-प्रसार और जातियों को जोड़ने की मुहिम चलाता है, जो पूरी तरह गैर राजनीतिक है। इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष छत्तीसगढ़ के सरकारी अभियंता आरएल ध्रुव हैं। इसमें अधिकतर सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारी शामिल हैं। इसके राष्ट्रीय महासचिव रमाशंकर ने बताया कि बसपा जिस बामसेफ को अपना शैडो संगठन बताता है उसका कोई मुखिया नहीं है, सिर्फ विधानसभा स्तर पर कुछ लोग जुड़े हैं।