खबर शहर , विश्व गैंडा दिवस: रूसी विमान से दुधवा भेजे गए थे राजू, बांके और सावित्री गैंडे; पुर्नवास के लिए मिला वासस्थल – INA

लखीमपुरी स्थित दुधवा नेशनल पार्क में 46 गैंडे अपने परिवार के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। लेकिन, कभी उनके पुर्नावास के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने काफी मशक्कत की थी। अमर उजाला के आर्काइव में वर्ष 29 जून 1985 के छपे संस्करण में दुधवा नेशनल पार्क (उत्तर प्रदेश) में असम के वनों से वर्ष 1984 में एक सींग वाले राजू, बांके और मादा सावित्री को रूसी विमान से दिल्ली भिजवाया। वहां से ट्रक के जरिए स्वच्छंद विचरण के लिए छोड़ दिया गया था। बाद में उनके लिए वर्ष 1985 में ही नेपाल के वनों से चार मादा गैंडे दुधवा भेजे गए थे।

नाक पर सींग भारी-भरकम शरीर से लटकती मोटी खाल वाले गैंडे अब दुर्लभ जंतु की सूची में आ गया है। पूरे विश्व में गैंडों की घटती संख्या को देखते हुए उनके संरक्षण और सुरक्षा के लिए 22 सितंबर को विश्व गैंडा दिवस मनाया जाता है। लगभग 186 वर्ष पहले दुधवा के जंगलों में गैंडों का बसेरा था। 


रिटायर्ड राष्ट्रीय चंबल सैंक्चुअरी प्रोजेक्ट के प्रभागीय वन अधिकारी आनंद कुमार बताते हैं कि वर्ष 1994 में दुधवा में रेंजर के पद पर तैनात थी उसके बाद एसडीओ भी रह चुका हूं। कई वर्षों तक उन गैंडों की सेवा की है। इस प्रोजेक्ट के लिए गैंडों के पुर्नावास के लिए दुधवा इसलिए चुना गया था। क्योंकि दुधवा में ही वह वातारण था, जहां वह असम के गैंडे जीवित रह सकते थे। 
 


दुधवा में ही वह जलवायु और वासस्थल गैंडों के लिए मिला था। इस प्रोजेक्ट की जरूरत भी इसलिए पड़ी थी कि असम चीन के पास था। चीन ने यदि कभी हमला कर दिया या ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ गई तो भारत की यह दुर्लभ प्रजाति खत्म न हो जाए। इस कारण तब भारतीय वन जीव परिषद की तत्कालीन अध्यक्षा इंदिरा गांधी ने 1 अप्रैल 1984 में गैंडा पुनर्वास योजना बनाई थी। 
 


तब असम से एक सींग वाले दो व्यस्क नर और एक अवयस्क मादा को छुड़वाया था। बाद में राजू गैंडे को बांके गैंडे ने मार दिया था और नेपाल से मंगवाई गई चार मादा गैंडे में से एक मादा गैंडा मर गई थी। बचे हुए गैंडों के पुर्नावास के लिए मैंने कई प्रयास किए थे। वहां गैंडों के पुर्नावास के लिए दूसरे फेज-2 भी तैयार मेरे द्वारा कराया गया था। आज हंसी खुशी के साथ उन गैंडों की नई पीढि़यां अपने कुनबे के साथ रह रहे हैं।
 


नेपाल की चार मादा गैंडों के बदले 16 हाथी दिए थे

दुधवा में गैंड़ों का कुनवा बढ़ाने के लिए नेपाल से उनकी दुल्हनें मंगवाई गई थी। नेपाल से स्वयंवरा, नारायणी, राप्ती और हिमरानी को मंगवाया गया था। इसके बदले में भारत ने 16 हाथी (5 नर और 11 मादाएं) अंत: प्रजनन के प्रयोग के लिए नेपाल को दिए जाने की बात कही गई थी।


मोहन जोदड़ों और हड़प्पा की खुदाई में मिल चुके हैं अवशेष

अमर उजाला के 1 अक्तूबर 1994 में छपे संस्करण में गैंडे के इतिहास का जिक्र किया गया है कि मोहन जोदड़ों और हड़प्पा की खुदाई में भी गैंडे के अवशेष मिले थे। जंतु-विज्ञान विशेषज्ञों ने बताया कि पांच हजार वर्ष पूर्व तक गैंडे सिंधु घाटी में पाए जाते थे। सिंध घाटी से लेकर गंगा-जमुना घाटी तक संपूर्ण उत्तर भारत में इस प्रजाति की संख्या बहुतायत बताई थी।
 


बाबरनामा में गैंडों के शिकार का जिक्र

16वीं शताब्दी के प्रारंभ में खैबर दर्रे से असम तक हिमालय की तलहटी में गैंडा पाए जाने के प्रमाण बाबरनामा में मिलने का भी उल्लेख किया गया है। बाबरनामा में पेशावर के निकट वर्ष 1519 में बाबर ने भी गैंडे का शिकार किया था।

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Credit By Amar Ujala

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