यूपी- अफ़जाल अंसारी का नशा, गांजा वैध किए जाने की मांग की – INA
एक वह जमाना था, जब नशे के विरोध में पूरी दुनिया एक थी और माना जा रहा था कि एक बार हत्यारे को भले छोड़ दिया जाए मगर नशे के तस्कर को जरूर फांसी दी जाए. ख़ूंखार अपराधी भी नशे की तस्करी को सबसे खराब पेशा मानते थे. मारियो पूजो के उपन्यास गॉड फादर में डॉन वीटो कोरलियॉन की हत्या इसलिए होती है क्योंकि वह ड्रग किंगपिन वर्जिल ‘द तुर्क’ सोलोज़ो से नशे की तस्करी के बाबत कोई समझौता नहीं करता. अभी हाल तक अमेरिका और यूरोपीय देशों में ड्रग तस्करी और इसका व्यापार एक घृणित अपराध था लेकिन अब जो बाइडेन भी गांजा की बिक्री खोलने के पक्षधर हैं. क्योंकि अधिकांश अमेरिकी इसकी मांग करते हैं. कनाडा में प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने गांजे पर से प्रतिबंध हटा लिया है. अपने देश में भी सपा सांसद अफजाल अंसारी ने गांजा की बिक्री पर प्रतिबंध हठाने की मांग की है. पर इसके लिए उन्होंने साधु-संतों को टारगेट किया है.
साधुओं को टारगेट करना ठीक नहीं
अफजाल अंसारी ने हाल ही में पत्रकारों के बीच गांजा को वैध किए जाने की मांग कर दी. उन्होंने कहा था कि गांजे को वैधता दी जानी चाहिए. लाखों लोग खुले आम गांजा पीते हैं. उन्होंने कहा कि धार्मिक आयोजन में गांजा खुले आम पिया जाता है. धार्मिक आयोजनों में गांजा भगवान का प्रसाद और बूटी कह कर पिया जाता है. अफजाल अंसारी के ऐसा कहने से साधु लोग भड़क गए. सांसद के विरोध में पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज कराई गई है. इसमें कोई शक नहीं कि कई सम्प्रदायों के साधु गांजा पीते हैं. ज़ाहिर है, यह गांजा चोरी-छुपे आता भी होगा. वैसे गांजा भांग का ही एक रूप है. भांग जैसे दिखते एक पौधे की जड़ों को सुखा कर गांजा बनता है. भांग खाना एक परंपरा है और होली में भांग पी जाती है. यहां तक कि महिलाएं भी भांग पी लेती हैं. इसलिए भांग और गांजे को साधुओं तक सीमित करने का अर्थ है. सांसद महोदय एक धर्म विशेष को लांछित कर रहे हैं.
बाइडेन ने गांजे पर अमेरिकी नीति पलटी थी
जो बाइडेन मारिजुआना नीति की फ़ेडरल रिव्यू शुरू करने वाले पहले राष्ट्रपति बने थे. साल 2022 में उन्होंने एक फ़ैसला किया था कि गांजा रखने या उसे पीने के आरोप में जिन्हें गिरफ़्तार किया गया था, उन्हें रिहा किया जाएगा. माना जा रहा है कि इस मुद्दे से जो बाइडेन को चुनाव में फायदा होगा. उन्होंने कहा कि सिर्फ गांजा पीने या रखने के आरोप में किसी को जेल में बंद करना सही नहीं है. गांजा रखने पर लोगों को जेल में डालने से कई जिंदगियां बर्बाद हुई हैं. गांजा रखने पर लगाए गए क्रिमिनल आरोपों के चलते लोगों को रोजगार, घर और पढ़ाई-लिखाई के मौके नहीं मिल पाते हैं. श्वेत और अश्वेत लोग बराबर मात्रा में गांजे का इस्तेमाल करते हैं, श्वेत लोगों के मुकाबले अश्वेत लोग इस मामले में ज्यादा गिरफ्तार किए जाते हैं और उन्हें ज्यादा सजा दी जाती है. एक रिसर्च के अनुसार 88 प्रतिशत अमेरिकियों का मानना है कि मारिजुआना चिकित्सा या मनोरंजक उपयोग के लिए वैध होना चाहिए. केवल 11 प्रतिशत ने कहा कि यह बिल्कुल भी वैध नहीं होना चाहिए.
नशे की मादकता
सिखों को छोड़ कर किसी भी धर्म में नशे पर पूर्ण प्रतिबंध की बात नहीं है. सिखों के यहाँ इसलिए क्योंकि सिख धर्म के प्रवर्तक बाबा नानक एक किसान जाति से थे और वह देख रहे थे कि भांग-तम्बाकू और शराब की गिरफ़्त में आकर कैसे किसान बर्बाद हो रहा है. बाबा नानक ने समाज में व्याप्त कुरीतियों का विरोध किया और एक ऐसा संप्रदाय बनाया जो इन कुरीतियों से दूर हो. यह बात अलग है कि सिख शराब भी पीते हैं और नॉन वेज भी खाते हैं. इस्लाम में शराब हराम है लेकिन बहुत से इस्लाम के अनुयायी शराब पीते हैं. इसीलिए नशे को किसी धर्म से जोड़ना ग़लत है. भांग हो या गांजा अथवा अफ़ीम, सभी के औषधीय प्रयोग भी हैं. इनका अधिक मात्रा में सेवन ही मनुष्य को नशेड़ी बनाता है. क्योंकि इन सब में एक ऐसा तत्त्व मौजूद है, जिसके शरीर में पहुंचते ही व्यक्ति पर मादकता हावी हो जाती है.
अंग्रेजों ने नशे को व्यापार बनाया
अंग्रेजों के आने के पहले अपने देश में भांग, गांजा, अफीम हो या शराब आदि किसी पर प्रतिबंध नहीं था. क्योंकि तब इसका व्यापार नहीं होता था. शराब निकालने की कला लोगों को पता थी. इसी तरह भांग का पौधा कहीं भी नमी पा कर उग आता था. किसान अपने खेतों में थोड़ी बहुत अफ़ीम उगा लेता था. भांग को हिंदुओं में शिव जी का प्रिय माना गया है. भांग लेने के बाद आदमी मीठा खूब खाता है, परंतु मथुरा में पण्डे भांग भी खूब खाते हैं और मिठाई तथा पूरी-कचौड़ी भी. उनका कहना है कि भांग लेने की कला आनी चाहिए. यानी किस मात्रा में लेनी चाहिए. अधिक ली तो गड़बड़ कर जाएगी और कम ली तो कुछ असर ही नहीं होगा. चरक संहिता में भांग और अफ़ीम के तमाम औषधीय प्रयोग बताए गए हैं. अलबत्ता गांजे का प्रयोग सिर्फ नशे के लिए होता है.
भांग के कई फ़ायदे
लखनऊ में आयुर्वेद के जाने-माने चिकित्सक डॉक्टर प्रदीप चौधरी का कहना है, कि भांग शरीर की अग्नि को तेज करती है. जिन लोगों को क़ब्ज़ अथवा अपच की शिकायत रहती है, उनके लिए भांग रामबाण औषधि है. शराब पीने के पूर्व लोग शौच को जाते हैं ताकि शराब पीने के बाद कब्ज न हो जाए लेकिन भांग पीने के बाद शौच के लिए जाना पड़ता है. इसके लिए एक निश्चित मात्रा में भांग लेने से अपच और अम्लीयता (Acidity) के लिए लाभकारी है. इसी तरह अफ़ीम के जरिए कई बीमारियों का इलाज होता है. ख़ासकर आज के भागमभाग की ज़िंदगी में अफ़ीम एक तो मनुष्य के मस्तिष्क को स्थिर करता है. आदमी का दिमाग़ बहुत चंचल होता है. एक साथ वह कई चीजों पर ध्यान केंद्रित करता है. नतीजा यह होता है कि जो सामने है उसे वह भूल जाता है.
आयुर्वेद में भांग के औषधीय गुण
डॉक्टर प्रदीप चौधरी ने बताया कि प्रसिद्ध आयुर्वेदिक ग्रंथ भाव प्रकाश में साफ लिखा हुआ है-
भङ्गा गञ्जा मातुलानी मादिनी विजया जया ॥
भङ्गा कफ हरी तिक्ता ग्राहिणी पाचनी लघुः ।
तीक्ष्णोष्णा पित्तला मोहमदवाग्वह्निवर्द्धिनी ॥
अर्थात् भङ्गा, गञ्ज, मातुलानी, मादिनी, विजया और जया ये सब भांग के पर्यायवाची नाम हैं. भांग-कफ को दूर करने वाली, तिक्तरस युक्त, ग्राही, पाचक, लघु, तीक्ष्ण, उष्णवीर्य, पित्तकारक तथा मोह, मद, वाणी और जठराग्नि को बढ़ाने वाली होती है.
अफीम का उपयोग भी कम खतरनाक
अफ़ीम के बारे में अथाहिफेनकम (अफ़ीम) तस्य नामगुणानाह में लिखा गया है, पोस्ता के फल के दूध से अफ़ीम बनती है. अतः इसे खसफलक्षीर भी कहते हैं. खसफलक्षीर, आफूक और अहिफेनकम नाम अफ़ीम के है. अफ़ीम रक्तादि धातुओं की शोषक, ग्राही, कफनाशक और वातरक्तकारक होती है. तसठ पोस्ता के फल के छिलके के जितने भी गुण हैं, वह इसमें रहते हैं. भाव प्रकाश में स्पष्ट लिखा है कि अल्प मात्रा में अफ़ीम का उपयोग उत्तेजक औषधि के रूप में बहुत अच्छा होता है. डर लगना, उदासीनता, चिंतायुक्त वृत्ति, खेदयुक्त वृत्ति, थोड़े से क्रोध से हाथ-पैर कांपने लगना, थकावट और वृद्धावस्था में जीवन से निराश होना, ऐसी परिस्थितियों में अफ़ीम के उपयोग से बहुत लाभ पहुंचता है. नींद लाने के लिए भी इसका इस्तेमाल होता है.
चरक संहिता में शराब
इसी तरह शराब, मद्य या मदिरा के भी ढेरों उपयोग चरक संहिता में बताए गए हैं. अधिकांश आयुर्वेदिक आसव में शराब का उपयोग होता है. चरक संहिता के अनुसार सुरा या शराब उग्र नशा करने वाला वातनाशक और मुख को प्रिय होता है. इस संहिता में बताया गया है, सुरासवस्तीव्रमदो वातघ्नो वदानप्रिय:, छेदी मध्वासवस्तिक्षणों मैरेयो माधुरो ग़ुरु: चरक संहिता में तो महुए, चावल, गन्ने और गुड़ से बनी शराब के तमाम औषधीय उपयोग बताए गए हैं लेकिन गांजा के बारे में किसी भी आयुर्वेदिक ग्रंथ में कुछ नहीं लिखा है. यह एक विशुद्ध नशा है. इसके पौधे का वानस्पतिक नाम कैनाबिस सैटिवा (Cannabis sativa) है. यह भांग (Cannabis indica) की जाति का ही एक पौधा है. देखने में भांग जैसा लगता है लेकिन इसमें भांग की तरह फूल नहीं लगते.
सांसद के सांप्रदायिक विचार
दरअसल प्रकृति में मिलने वाला हर पौधा अपनी उपयोगिता रखता है. लेकिन यह उपयोगिता एक सीमा तक ही है. किसी भी चीज़ का बहुत अधिक सेवन नुकसान पहुंचाएगा. साधु-संत जो गांजा पीते हैं, वह समाज की मुख्य धारा में नहीं हैं. हिंदुओं के बहुत सारे संप्रदायों में खान-पान के संदर्भ में भिन्न विचार हैं. किंतु इस आधार पर किसी धर्म के साधुओं की निंदा एक तरह से सांप्रदायिक विचार हैं. अफ़जाल अंसारी ने गांजा पर प्रतिबंध हटाने के लिए जो विचार रखे उन्हें सही नहीं ठहराया जा सकता. यूं तो कहा जा सकता है, धर्म खुद में अफ़ीम है और ऐसा कार्ल मार्क्स ने कहा था. या तो सांसद अफ़जाल अंसारी संसद में अपने यह विचार रखें अथवा क़ानून की पाबंदियां झेलने को तैयार रहें.
Source link