यूपी – IIT Suicide: प्रगति ने लिखा- जीवन भर का डिप्रेशन है सर, काउंसलिंग के एक सेशन से नहीं जाएगा, ये भी किया जिक्र – INA

एक दिन क्लास में हंस रही थी, प्रोफेसर ने टोका। उन्हें पता नहीं क्यों ऐसा लगा …, मुझसे बोले जाकर काउंसलिंग क्यों नहीं कराती। अब उनको क्या बताऊं कि जीवन भर का डिप्रेशन है, काउंसलिंग के एक सेशन से थोड़े ही जाएगा…। यह लाइनें आईआईटी कानपुर की पीएचडी की छात्रा प्रगति ने अपने सुसाइड नोट में लिखी हैं। इससे लगता है कि प्रगति पिछले काफी समय से तनाव में थी, लेकिन उसके परिवार और संस्थान को इसकी भनक तक नहीं लग सकी।

गुरुवार को आईआईटी कानपुर की पीएचडी छात्रा ने हॉस्टल में फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली थी। मौके से पुलिस को पांच पन्ने का सुसाइड नोट मिला था, जिसमें उसने अपनी मौत का जिम्मेदार स्वयं को बताया था। पांच पन्ने के सुसाइड नोट में खुद को अकेला महसूस करने की बात भी लिखी थी। रोमन भाषा (हिंदी को अंग्रेजी में लिखना) में लिखे सुसाइड नोट में प्रगति ने स्वयं के लिए लिखा है कि मैं आलसी हूं, मित्र नहीं बना पाती, जिम नहीं जाती, दौड़ भी नहीं पाती…।


मनोचिकित्सक की माने तो प्रगति का फैसला आवेश में लिया हुआ नहीं लग रहा, क्योकि ऐसे में कोई इतना लंबा सुसाइड नोट नहीं लिखता है। जब व्यक्ति लंबे समय से तनाव में हो, अपने मन की बात किसी से कह न पा रहा हो या समझा न पा रहा हो तब अंतिम समय में वह अपनी बातों को लिखने का प्रयास करता है। हालांकि उनका मानना है कि हर केस की परिस्थितियां अलग होती हैं।


मेधावी नहीं करेंगे आत्महत्या, यह गारंटी नहीं है- मनोचिकित्सक
मनोचिकित्सक डॉ. गणेश शंकर का कहना है कि आत्महत्या के अधिकतर मामलो में अभिभावक अथवा संस्थान की ओर से कहा जाता है कि छात्र मेधावी था, वह सुसाइड नहीं कर सकता। मेधावी होना और आत्महत्या करना दोनों अलग अलग बातें हैं। मेधावी ज्यादा संवेदनशील होते हैं, क्योकि उन्होंने असफलता नहीं देखी होती। ऐसे में छोटी -छोटी घटनाएं भी उन्हें विचलित कर देती हैं। वह अपनी सफलता को परिवार, स्वयं के सम्मान से जोड़कर कर देखते हैं।


पन्नों को खाली छोड़ने का कारण मन की उथल-पुथल भी हो सकती है
पांच पन्नों के सुसाइड नोट में प्रगति ने मन की कई बातें लिखी हैं। एक पन्ने पर चंद लाइनें लिखीं हैं तो बाद के दो पन्ने खाली और फिर दो पन्नों पर लिखा गया है। इस पर मनोचिकित्सक डॉ. आलोक बाजपेई का कहना है कि ऐसी स्थिति मन में चल रहे उथल-पुथल को भी दर्शाती है।हालांकि यह भी संभव है कि पेज गलती से छूट गए हों। वह कहते हैं कि सही स्थिति का आंकलन सुसाइड नोट देखकर और पूरा पढ़कर ही लगाया जा सकता है। डॉ. बाजपेई के मुताबिक अंर्तमुखी छात्र-छात्राओं को स्वभाव के विपरीत जाकर परिवार के दबाव में भी कई काम करने पड़ते हैं। इससे भी वे तनाव में आ जाते हैं।


आईआईटी में अलग-अलग तनाव, फॉलोअप नहीं करते छात्र
आईआईटी कानपुर के काउंसलिंग टीम में डॉ. आलोक बाजपेई भी शामिल हैं। उनका कहना है कि संस्थान के छात्र-छात्राओं में कुछ मस्त हैं तो कुछ तनाव में हैं। किसी को परिवार से तो किसी को रिलेशनशिप का इश्यू है। सीधे पढ़ाई के तनाव को लेकर छात्र कम आते हैं, खराब नंबरों से परिवार परेशान होगा इसका प्रेशर अधिक होता है। उन्होंने कहा कि छात्र काउंसलिंग का फॉलोअप नहीं करते। एक दो सेशन में ठीक होने पर वह कटने लगते।


इन बातों का रखें ध्यान

  • परिवार मॉनिटरिंग करे, प्रेशर ठीक नहीं। भरोसा दिलाए स्थिति कोई भी परिवार उनके साथ है।
  • दोस्त होना जरूरी, हंसी मजाक करिए, मानसिक रूप से स्वस्थ रहेंगे।
  • परेशानी का हल ऑनलाइन न तलाशें।
  • यह समझना जरूरी कि सबसे बड़ा जीवन, इससे बड़ा कुछ नहीं है।


आईआईटी के छात्रों ने पूछा- प्रगति के आत्महत्या का क्या कारण है सर
सर, प्रगति ने किस कारण से आत्महत्या की। लगातार छात्र सुसाइड क्यों कर रहे हैं। ऐसे कुछ सवालों के साथ आईआईटी के छात्र शुक्रवार को संस्थान के कार्यवाहक निदेशक प्रो. अमलेंदु चंद्रा और डीन ऑफ स्टूडेंट अफेयर प्रो. शलभ से मिलने पहुंचे। छात्रों के चेहरे पर चिंता की लकीरें दिखाई दे रहीं थी। वे विचलित दिखे और उन्होंने इसका कारण जानने की इच्छा जताई।


संस्थान में छाया सन्नाटा, सदमे में रहे साथी
साथ ही, छात्रों ने कहा कि प्रगति के हाथ का लिखा सुसाइड नोट, उसके परिजनों को दिया जाए। पीएचडी छात्रा प्रगति की मौत के बाद से आईआईटी परिसर में सन्नाटा पसरा रहा। अधिकतर छात्र तो छुट्टी पर बाहर हैं, दूर दराज के छात्र ही संस्थान में रुके हुए हैं। वे निदेशक कार्यालय पहुंचे और घटना की पूरी जानकारी चाही। वहीं, प्रगति के साथ दिखने वाले दोस्त भी सदमे में हैं। एक छात्र ने बताया कि अक्सर प्रगति के साथ दिखने वाले छात्र संस्थान में नहीं दिखाई दे रहे हैं।


परिजन बोले- प्रोफेसर और शोधार्थियों के बीच आपसी सामंजस्य की कमी
आईआईटी की पीएचडी छात्रा प्रगति के परिजनों ने बताया कि उसके पास मिले सुसाइड नोट में किसी को दोषी नहीं ठहराया है। वे भी किसी को दोषी नहीं मानते हैं। परिजनों का कहना है कि उन्हें पता लगा कि आईआईटी में प्रगति की काउंसलिंग हुई थी, अगर उसमें रेड फ्लैग मिला हो तो। परिवार से उसे साझा करना चाहिए था। प्रगति के पिता गोविंद ने बताया कि किसी शोध कार्य में शिक्षक का व्यवहार बॉस की तरह नहीं बल्कि एक टीम की तरह होना चाहिए।


जल्द ही प्रोफेसर और मैनेजमेंट के लोगों से मिलेगा परिवार
वहां, इस बात को लेकर काफी गैप है। प्रोफेसर और शोधार्थियों के बीच आपसी सामंजस्य की बहुत कमी है, जो वहां अक्सर होने वाली आत्महत्याओं की वजह बनता है। कहा कि वह लोग जल्द ही प्रोफेसर और मैनेजमेंट के लोगों से मिलेंगे। फिलहाल परिवार की किसी सहपाठी से भी बात नहीं हुई है, लेकिन इतना तो तय है कि आईआईटी प्रशासन छात्रों की काउंसलिंग के अलावा मॉनिटरिंग को मैनेज करने में असमर्थ है। इस पर ध्यान देने की जरूरत है, जिससे भविष्य में इन घटनाओं को रोका जा सके।


Credit By Amar Ujala

Back to top button