खबर फिली – World Pollution Day: जब दुनिया होगी सुहानी…ये 5 फिल्में बताती हैं प्रदूषण से छुटकारा पाने का तरीका – #iNA @INA
World Pollution Day 2024: सीने में जलन, आंखों में तूफान सा क्यों है, हर आदमी, इस शहर में अंजान सा क्यों है? ये मौजूदा समय में देश का सबसे बड़ा सवाल भी है और साथ ही आज से 46 साल पहले आई फिल्म गमन में शामिल एक गज़ल भी है. इसे सुरेश वाडेगर ने गाया था. देश की राजधानी दिल्ली और आस-पास के इलाकों की मौजूदी स्थिति देखते हुए तो इसे नेशनल सॉन्ग घोषित कर देना चाहिए. आज से 4 दशक पहले लिखे गए इस गाने की सार्थकता बताती है कि हम कितने दुर्भाग्यपूर्ण हैं कि ऐसे माहौल में जी रहे हैं. जीने को मजबूर हैं. सांसों में घुटन है. आंखों में जलन है. स्मॉग की जो चादर है वो हर पहचाने शख्स, जगह, दृश्यों को भी अंजान कर दे रही है. पिछले कुछ समय में इससे जरा सी राहत मुहैया हुई है. सरकारों ने भी कुछ पैतरें अपनाए हैं. लेकिन ये कितने काफी है ये तो आपको घर की चौखट से बाहर कदम रखते ही पता चल जाएगा.
खैर, ये सिलसिला तो हर साल का होकर रह गया है. मानों राजधानी वालों के लिए नवंबर-दिसंबर का महीना ही सापित है. ऊपर से एक ऐसी तारीख भी आ गई कि इस बारे में बात करना और भी लाजमी हो गया. तारीख है 2 दिसंबर 2024. इस दिन को विश्वभर में वर्ल्ड पॉल्युशन डे के नाम से जानते हैं. अब पॉल्युशन कई प्रकार के होते हैं. नए-नए फिलॉस्फरों ने मानसिक प्रदूषण तक इजाद कर दिया है. लेकिन यहां हम बाकी प्रदुषणों पर भारी उस प्रदूषण की बात करेंगे जिसका सीधा संबंध सीधा हमारे फेफड़ों पर पड़ रहा है. वो बंद तो दिमाग कैसे चलेगा. सब बंद.
ऐसा नहीं है कि पॉल्युशन को कम करने के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं किए गए. जिन्होंने जैसे चाहा अपने स्तर से कोशिश की. एक कोशिश फिल्ममेकरों द्वारा भी की गई. अब अपने कैमरों में दुर्लभ तस्वीरे खींचने वालों के नसीब में ऐसी दुर्लभ तस्वीरें आएंगी तो भला वे भी कैसे शांत रहेंगे. प्रदूषण पर जागरुकता फैलाने का काम बॉलीवुड में भी किया गया. कई सारी फिल्में ऐसी बनीं जिन्हें आप वर्ल्ड पॉल्युशन डे के दिन देख सकते हैं और अपनी अवेयरनेस को भी बढ़ा सकते हैं. और साथ ही सबसे जरूरी उस संवेदना को भी जो् प्रकृति के प्रति आती है, जो अंतत: आपको, हमको, हम सबको जीवन देने का एक जरिया है. जरा सोचिए, वो जरिया ही खत्म हो जाएगा तो क्या बचेगा.
कड़वी हवा
इस फहरिश्त में पहली फिल्म है कड़वी हवा. ये जरूरी फिल्म आज से 8 साल पहले नील माधव पांडा ने बनाई थी. इसमें संजय मिश्रा ने हेड़ू का संवेदनशील किरदार निभाया था. ये फिल्म जलवायु परिवर्तन, किसान के संघर्ष और निरंतर होने वाली आत्महत्यों की बात करती है. ये फिल्म पर्यावरण के बिगड़ते संतुलन की वजह से मूलभूत प्रकृतिक सुविधाओं की हो रही दुर्गति को दिखाती है. साथ ही कुछ क्षण के लिए तो इस भाव में ला देती है कि शख्स कहे- अब तो कुछ सोचना होगा.
जल
ये फिल्म जल की समस्या से पीड़ित लोगों के कष्टों को उजागर करती है. फिल्म साल 2013 में आई थी और इसका निर्देशन गिरिश मलिक ने किया था. इस फिल्म का सीधे ताल्लुक वायु प्रदूषण से तो नहीं है लेकिन निश्चित ही इस फिल्म का मकसद भी बस ये समझाना है कि जाग जाओ, अभी भी मौका है. फिल्म की पिच्चराइजेशन और स्टोरी को पसंद किया गया था.
कौन कितने पानी में
ये फिल्म दो तरह के प्रदूषणों पर बात करती है. एक जल प्रदूषण और दूसरा दिमाग के प्रदूषण. इस फिल्म का निर्देशन भी नीला माधब पांडा ने किया था. फिल्म में एक गांव की कहानी के जरिए वहां की वाटर स्कारसिटी और कास्ट डिस्क्रिमिनेशन की समस्या दिखाई गई थी. फिल्म में राधिका आप्टे और कुणाल कपूर लीड रोल में थे.
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इरादा
जब भी इस बारे में बात होती है कि वायु प्रदूषण सबसे ज्यादा किस चीज से फैलता है तो इसमें सबसे पहले कारखानों का नाम आता है. इरादा फिल्म में दिखाया गया था कि कैसे फैक्टरीज से निकलने वाले धुए, केमिकल्स और कचरे, आसपास के इलाकों को गंदा कर देते हैं और कितने बड़े पैमाने पर प्रकृति पर वार करते हैं. फिल्म में नसीरुद्दीन शाह का लीड रोल था.
ऐसा यह जहां
ये एक बेहद खूबसूरत और जरूरी फिल्म थी. इसमें दिखाया गया था कि कैसे एक पति-पत्नी मौजूदा माहौल, प्रकृति और अपने बच्चे के भविष्य को को लेकर फिक्रमंद रहते हैं और उतने ही अवेयर भी. फिल्म में वे छोटी-छोटी बारीक चीजों के बारे में सोचते हैं जो आज की डेट में सोचना बहुत जरूरी है. फिल्म के जरिए सही मामले में पॉल्युशन को लेकर अवेयर करने की कोशिश की गई है और इसे बहुत सीरियसनेस के साथ बनाया गया है.
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