Noida – पहली बार रोबोटिक सर्जरी के जरिए किडनी की ट्रांसप्लांट, डॉक्टरों ने बचाई विदेशी की जान – INA NEWS
Noida News :
नोएडा के सेक्टर-62 स्थित फोर्टिस अस्पताल (Fortis Hospital) में पहली बार म्यांमार देश के 68 वर्षीय मरीज जोआ का रोबोट की मदद से सफल किडनी ट्रांसप्लांट किया गया। यह सर्जरी फोर्टिस अस्पताल में की गई। मरीज क्रोनिक किडनी रोग से पीड़ित था। वह पिछले साल जून से डायलिसिस पर था। मरीज का इलाज यूरोलॉजी और किडनी ट्रांसप्लांट के निदेशक डॉ. पीयूष वाष्णेय और उनकी टीम ने किया। मरीज को आठ दिन बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। अस्पताल के मुताबिक मरीज को उसकी बहन ने किडनी दी है। जिसके बाद भाई को नया जीवनदान मिला।
डायलिसिस के दौरान आ रही दिक्कत
यूरोलॉजी और किडनी ट्रांसप्लांट के निदेशक डॉ. पीयूष वाष्णेय ने बताया कि मरीज के पेट में मोटापा था। जिसके कारण सर्जरी के बाद ठीक होने में काफी दिक्कतें आ रही थीं और संक्रमण का भी खतरा था। इसके अलावा मरीज को डायलिसिस के दौरान भी कई तरह की दिक्कतें आ रही थीं। जैसे वह कई बार बेहोश हो जाता था, उसकी मांसपेशियों में काफी अकड़न रहती थी या फिर लो ब्लड प्रेशर की समस्या थी। वह अपने दैनिक काम भी ठीक से नहीं कर पाता था। ऐसे में उसके परिजनों ने किडनी ट्रांसप्लांट का विकल्प चुना और मरीज को इलाज के लिए नोएडा के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया। जब मरीज को अस्पताल लाया गया तो वह काफी कमजोर था। विषाक्त पदार्थों के संचय और डायलिसिस की अप्रभावीता के कारण उनकी पोषण स्थिति खराब हो गई थी। अस्पताल में उनकी विस्तृत चिकित्सा जांच की गई। इसमें रक्त परीक्षण, अल्ट्रासाउंड, हृदय संबंधी परीक्षण, नसों और धमनियों का मूल्यांकन और कई अन्य परीक्षण शामिल थे। परिणामों ने किडनी प्रत्यारोपण की पुष्टि की। लेकिन पेट में मोटापा और कमजोर प्रतिरक्षा के कारण जोखिम काफी बढ़ गया था।
बहन ने डोनर बनकर बचाई भाई की जान
नेफ्रोलॉजी की निदेशक डॉ. अनुजा पोरवाल ने बताया कि ऐसी स्थिति में रोबोटिक किडनी प्रत्यारोपण बेहतर विकल्प था। मरीज की बहन अपने भाई के इलाज के लिए डोनर के तौर पर आगे आई। रोबोट की मदद से किडनी ट्रांसप्लांट करने से मरीजों को बेहतर नतीजे मिले हैं, खासकर अगर मरीज की उम्र ज्यादा हो या वह मोटा हो। रोबोटिक सर्जरी की सटीकता जटिलताओं के जोखिम को कम करती है। मरीज तेजी से ठीक होता है। छोटा चीरा लगाने से मरीज को कम तकलीफ होती है और उन्नत तकनीक की मदद से ट्रांसप्लांट अधिक सटीक और सुरक्षित होता है। नतीजतन, मरीज जल्दी ठीक हो जाता है और अपनी दैनिक गतिविधियों को खुद से करने में सक्षम हो जाता है। इस सर्जरी में करीब 5 घंटे लगे।
रोबोटिक सर्जरी के फायदे
यूरोलॉजी और किडनी ट्रांसप्लांट के निदेशक डॉ. पीयूष ने बताया कि रोबोट असिस्टेड सर्जरी के कई फायदे हैं। यह जटिल स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित बुजुर्ग मरीजों के लिए खास तौर पर उपयोगी है। पेट के मोटापे से पीड़ित मरीजों के मामले में, रोबोट असिस्टेड सर्जरी से सर्जरी वाली जगह तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। इससे संक्रमण और हर्निया जैसी जटिलताओं को कम करने के साथ-साथ तेजी से रिकवरी में भी मदद मिलती है।
यह पारंपरिक सर्जरी से कितनी अलग
रोबोटिक ट्रांसप्लांट के लिए, पेरि-नाभि क्षेत्र में 5 सेमी का चीरा लगाया जाता है। जो पारंपरिक सर्जरी से काफी कम है। इसके लिए मांसपेशियों में चीरा लगाना पड़ता है। इस प्रक्रिया में 10 गुना आवर्धन से धमनियों और नसों की सटीक पहचान हो पाती है। जिससे इस्केमिया (इस स्थिति में शरीर के किसी हिस्से में रक्त प्रवाह की कमी के कारण उस जगह के ऊतक क्षतिग्रस्त हो जाते हैं) का समय और रक्तस्राव का जोखिम कम हो जाता है।
पहली बार रोबोटिक सर्जरी के जरिए किडनी की ट्रांसप्लांट, डॉक्टरों ने बचाई विदेशी की जान
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