जीरो टॉलरेंस नीति के तहत दयालबाग डीम्ड विश्वविद्यालय प्रशासन की स्थिति पर उठाये सवाल
दयालबाग मानद विश्वविद्यालय, जिसे भारतीय उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित संस्थान के रूप में जाना जाता है, की प्रशासनिक गतिविधियों को लेकर चर्चा में है। विश्वविद्यालय ने शिक्षा क्षेत्र में अपने योगदान की गौरवमयी परंपरा को बनाए रखा है, तथा यह विश्वविद्यालय ग्रांट कमीशन (UGC) के निर्देशों को सततता से मान्यता देता है। इस संदर्भ में, हमें यह जानकर खेद है कि विश्वविद्यालय का कार्यप्रणाली कुछ ऐसी रही है, जिससे लगता है कि वह निर्धारित नीतियों और निर्देशों का पालन नहीं कर रहा है।
नई शिक्षा नीति के संदर्भ में दृष्टिकोण
भारत सरकार की नई शिक्षा नीति (NEP) का उद्देश्य उच्च शिक्षा में सुधार करना एवं गुणवत्ता बढ़ाना है। अपेक्षा की जा रही थी कि दयालबाग डीम्ड विश्वविद्यालय इस नीति को प्रभावी बनाने में एक सक्रिय भूमिका निभाएगा। हालांकि, विश्वविद्यालय के कार्यप्रणाली ने इस बात की आशंका उत्पन्न कर दी है कि वह अपनी स्वायत्तता का उपयोग करते हुए दूसरे डीम्ड विश्वविद्यालयों के लिए निर्धारित नीतियों से अलग चल रहा है।
सिविल सोसायटी का प्रश्न
सिविल सोसायटी ऑफ आगरा ने विश्वविद्यालय द्वारा अपनाए जा रहे तरीकों और नीतियों के संबंध में अपने चिंताओं को उठाया है। यदि दयालबाग विश्वविद्यालय द्वारा अपनाए जा रहे तरीके सही हैं और निदेशक (उच्च शिक्षा) प्रयागराज के संज्ञान में हैं, तो अपेक्षित है कि निदेशक इस बात की आधिकारिक पुष्टि करें कि उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे सही माने गए हैं या नहीं। यह स्पष्टता अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए भी एक अनिवार्य कदम होगा, जिससे वे दयालबाग विश्वविद्यालय के उदाहरणों को अपनाकर अपनी प्रक्रियाओं में सुधार कर सकें।
प्रशासनिक गतिविधियों की पारदर्शिता
हम मानते हैं कि दयालबाग डीम्ड विश्वविद्यालय की प्रशासनिक गतिविधियाँ शायद पहले से ही सिविल सोसायटी ऑफ आगरा के संज्ञान में न हों। यदि ऐसी स्थिति है, तो निदेशक (उच्च शिक्षा) को चाहिए कि वे क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी आगरा के माध्यम से उन मुद्दों के बारे में जानकारी प्राप्त करें, जो सिविल सोसायटी द्वारा उठाए गए हैं। यह न केवल विश्वविद्यालय की प्रशासनिक पारदर्शिता में सहायक होगा, बल्कि अन्य शिक्षण संस्थानों के सामने एक मॉडल प्रस्तुत कर सकेगा कि किस प्रकार से नीतियों का पालन किया जाए।
जीरो टॉलरेंस नीति का महत्व
उत्तर प्रदेश में ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति को ध्यान में रखते हुए, दयालबाग डीम्ड विश्वविद्यालय की सभी गतिविधियाँ और नीतियों का पुनर्मूल्यांकन आवश्यक है। यह सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि शिक्षा का स्तर और प्रशासनिक गतिविधियाँ सर्वोत्तम मानकों के अनुरूप हों। भारत सरकार की नई शिक्षा नीति के जमीनी स्तर पर प्रभावी कार्यान्वयन के लिए, विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के स्तर पर यूजीसी द्वारा निर्धारित मानकों का पालन किए जाने की आवश्यकता है।
जीरो टॉलरेंस नीति के तहत निदेशक(उच्च शिक्षा) यू.पी.प्रयाराज के संज्ञान में लिये जाने के सर्वथा उपयुक्त हैं
- सरकार से 100 करोड़ से ज्यादा अनुदान प्राप्त करने दयालबाग डीम्ड विश्वविद्यालय प्रशासन जमकर मनमानी कर रहा है।
- नियमानुसार विश्वविद्यालय को प्रेसिडेंट अलग होना चाहिए पर नहीं है। कुलसचिव व कोषाध्यक्ष की अधिकतम आयु 62 साल व सैलरीड होनी चाहिए, पर यहां एक 62 और दूसरा 77 साल के अधिकारियों को अवैतनिक रखा हुआ है ।
- 13 अगस्त 2023 को निदेशक का कार्यकाल समाप्त होने के पश्चात, यूजीसी की नई नियमावली के अनुसार दयालबाग विश्वविद्यालय में सरकार को नया निदेशक नियुक्त करना था और तब तक सीनीयर प्रोफेसर को कार्यवाही निदेशक नियुक्त करना था। परन्तु नियमों के विपरीत एक जूनियर प्रोफेसर निदेशक बनाया हुआ है।
- डीम्ड विश्विद्यालय के द्वारा नॉन डिग्री कोर्स, ऑफ कैम्पस कोर्स नही चलाये जा सकते,लेकिन विश्विद्यालय के द्वारा इस संबंध में नियमों को पूरी तरह से अनदेखा कर रखा गया है। निदेशक (उच्च शिक्षा ) से उपरोक्त का रिव्यू अपेक्षित है।
- सौ करोड का अनुदान शिक्षण संस्थान को दिया जाना भारत सरकार की उदार शिक्षा नीति का परिणाम है,सिविल सोसायटी ऑफ़ आगरा की अपेक्ष है कि यह राशि दो सौ करोड कर दी जाये किंतु इस अनुदान की राशि का सदुपयोग भी सुनिश्चित किया जाना जरूरी है।यह तभी संभव है,जब कि कोई अधिकार संपन्न अधिकारी/राजपत्रित विश्वि विद्यालय प्रशासन से संबद्ध किया जाये।
- वर्तमान स्थिति यह है कि न तो कोई सरकारी अधिकारी विश्विद्यालय प्रशासन से संबद्ध है साथ ही कुलसचिव व कोषाध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद ओवर एज व अवैतनिक महानुभाव के द्वारा सुशोभित किए हुए हैं।
- उपयुक्त होगा कि यूजीसी की नई नियमावली के अनुसार दयालबाग विश्वविद्यालय में सरकार को नया निदेशक नियुक्त करना है,वर्तमान में यह पद रिक्त है ।
सारांश में, दयालबाग डीम्ड विश्वविद्यालय को चाहिए कि वह अपनी गतिविधियों में अधिक पारदर्शिता लाए और निर्धारित नीतियों का पालन करें। उच्च शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए यह आवश्यक है कि सभी संस्थान अपने कार्यप्रणाली में सुधार करें और सरकार द्वारा निर्धारित मानकों का सख्ती से पालन करें। सभी संबंधित पक्षों को इस मुद्दे पर चर्चा करनी चाहिए ताकि ऊर्जावान और उत्तरदायी शिक्षा प्रणाली का निर्माण किया जा सके।
अगर दयालबाग विश्वविद्यालय अपने तरीकों को सही ठहराने में सफल होता है, तो यह न केवल अपनी स्वायत्तता को साबित करेगा, बल्कि अन्य शिक्षण संस्थानों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत भी बनेगा।
Anil Sharma
Secretary Civil Society of Agra