दुनियां – राष्ट्रपति चुनावः अगर डोनाल्ड ट्रंप जीते तो ‘अमेरिका फर्स्ट’ पॉलिसी पर सख्ती से अमल होगा! – #INA

हर राजनेता का अपना एक आभामंडल होता है. इसी औरा की चकाचौंध से खिंच कर कुछ लोग उसके पक्के समर्थक बनते हैं. यद्यपि कुछ तो सिर्फ इतने भर के लिये कि यह राजनेता यदि सत्ता में आया तो उन्हें क्या लाभ पहुंचायेगा. मगर अधिकांश समर्थक तो इतने कट्टर हो जाते हैं कि उस राजनेता के विरुद्ध एक भी बात बर्दाश्त नहीं कर सकते. यहां तक कि उसकी त्रुटियों में भी वे उसके गुण तलाश कर लेते हैं. ऐसे समर्थकों को अंधभक्त कहा जाता है. ऐसा शुरू से होता आया है किंतु यह शब्द भारत में 2014 से प्रचलन में आया, जब नरेंद्र मोदी देश की सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे.
ठीक इसी तरह साल 2016 के चुनाव में जब डोनाल्ड ट्रंप ने हेलरी क्लिंटन को हराया और राष्ट्रपति बने तो उनका भी एक ऐसा ही आभामंडल बना. उनके समर्थक भी मोदी भक्तों की तरह उनकी त्रुटियों को ही उनकी सफलता मानते रहे.
कैपिटल हिल हिंसा की यादें ताजा
कोरोना आपदा को संभालने में नाकाम रहने के चलते 2020 में ट्रंप चुनाव हार गए. लेकिन उनके समर्थक उन्हें व्हाइट हाउस से बाहर नहीं जाने देना चाहते थे. यहां तक कि राजधानी वाशिंगटन डीसी स्थित राष्ट्रपति भवन के समीप कैपिटल हिल में 6 जनवरी 2021 को भीषण हिंसा की. मालूम हो कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव नवंबर में हो जाते हैं और नतीजा भी आ जाता है. लेकिन उसे राष्ट्रपति का पदभार जनवरी में संभालना होता है. अर्थात दो महीने तक नया राष्ट्रपति इलेक्टेड प्रेसीडेंट कहलाता है. तब तक व्हाइट हाउस में पुराना राष्ट्रपति ही रहता है.
जनवरी 2021 में इलेक्टेड प्रेसीडेंट जो बाइडेन को पदभार न ग्रहण करने देने के लिए ट्रंप के समर्थकों ने कैपिटल हिल पर जमकर तोड़-फोड़ की और भारी हिंसा की थी. सुरक्षाकर्मियों को इस हिंसा से निपटने के लिए गोलियां चलानी पड़ी थीं. कुल 5 लोग इस हिंसा में मारे गए थे.
ट्रंप ने नहीं स्वीकारी 2020 की हार
कैपिटल हिल को दिल्ली का लुटियन जोन कह सकते हैं, जहां सारे सरकारी दफ़्तर हैं और अमेरिकी कांग्रेस (संसद) का भवन भी. डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक इतने कट्टर हैं कि उन्होंने जो बाइडेन को शपथ न लेने देने के लिए हर तरह की जोर आजमाइश की थी. इसे जो बाइडेन के तख्तापलट की साजिश माना गया. दरअसल नवंबर के नतीजों से खुद ट्रंप अपनी हार को स्वीकार नहीं कर रहे थे. उनका कहना था, चुनाव में धांधली हुई है.
ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर लिखा था, उन्हें साजिश के तहत हारा हुआ घोषित किया गया. इससे उनके समर्थक चिढ़ गए. और उन्होंने कैपिटल हिल कांड कर दिया. बाद में ट्रंप के सारे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ब्लॉक कर दिए गए. मुकदमा चला तो बेंच के 6 जजों में से तीन ने ट्रंप को बरी कर दिया.
पुतिन से दोस्ती के फायदे-नुकसान दोनों
डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक इस कदर उत्तेजित हो जाते हैं कि वे हर हाल में ट्रंप को जिताने के लिए आतुर रहते हैं. अमेरिकी लोकतंत्र में किसी भी राजनेता के समर्थक इतने उग्र नहीं रहे होंगे. लेकिन जितने समर्थक उग्र होते हैं, उतने ही उनके विरोधी भी बढ़ते हैं. उनके विरोधियों का कहना है कि ट्रंप अमेरिका को रूस की तरह चलाना चाहते हैं, जहां लोकतंत्र नहीं है. इसीलिए वे रूस के राष्ट्रपति पुतिन के दोस्त हैं. किंतु इसमें भी कोई शक नहीं कि ट्रंप अमेरिका की जनता को महंगाई से उबारने के लिए यूक्रेन-रूस युद्ध को खत्म करवाने के प्रयास करेंगे.
राष्ट्रपति जो बाइडेन की एक हठधर्मी के चलते यूक्रेन युद्ध ढाई साल से चल रहा है. अमेरिका में आज जो महंगाई है, इसकी वजह यह युद्ध है. अमेरिका यूक्रेन को हरसंभव मदद कर रहा है. किंतु ट्रंप सदैव अमेरिका फर्स्ट पॉलिसी के पैरोकार रहे हैं.
ट्रंप ने अश्वेत जनता को गरीबी से उबारा
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में अमेरिका को महंगाई से उबारा था. अमेरिकी अर्थव्यवस्था बहुत अधिक मजबूत हुई थी. बेरोजगारी दर घटी थी तथा आम मध्यवर्गीय परिवारों में 6000 डॉलर सालाना की वृद्धि हुई थी, जो एक रिकॉर्ड है. उनके शासन के वक्त अफ्रीकी मूल के अमेरिकियों, हिस्पैनिक अमेरिकियों, एशियाई अमेरिकियों, मूल अमेरिकियों, दिग्गजों, विकलांग व्यक्तियों और बिना हाईस्कूल डिप्लोमा वाले लोगों के लिए नौकरियों के अवसर मिले.
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में अश्वेत अमेरिकियों को भी घर दिए. उनके पूर्व अमेरिका में अश्वेत समुदाय के पास घर का मालिकाना हक 41.7 था, जो बढ़कर 46.4 प्रतिशत हो गया. इसलिए अश्वेत समुदाय भी डोनाल्ड ट्रंप को मसीहा मानता है. उनके साथ जो भीड़ है, उसकी वजह यही है.
एलीट लॉबी को नाखुश किया
हालांकि अमेरिका से बाहर जाने वाले निवेश को उन्होंने रोका. पहले अमेरिका फिर कहीं और उनका यह नारा हिट रहा. अमेरिका की एक लॉबी उनके इन प्रयासों की घोर निंदक रही. खासतौर पर कोरोना के दौरान उन्होंने संपूर्ण लॉकडाउन को स्वीकार नहीं किया. उनका कहना था, कि चीन ने कोरोना वायरस फैलाया है. इसलिए चाइनीज सामान पर प्रतिबंध लगाओ. इसके अतिरिक्त वे नस्लवादी टिप्पणियां भी करते रहे. जबकि उन्होंने अश्वेत अमेरिकियों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ की.
ट्रंप सदैव अपने बयानों से असंयत हो जाते और अक्सर ऐसी बानी बोल देते जो एलीट अमेरिकियों को खराब लगती थी. उनके समय अमेरिका के कई राज्यों में उन्हें घनघोर समर्थन मिला हुआ था तो कुछ राज्यों में उनके प्रति जबरदस्त घृणा. वे अमेरिका की एलीट लॉबी को कभी पसंद नहीं आए.
ट्रंप राजनीतिक परिवार से नहीं आए
वे रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन से मिले और यह बात अमेरिकी मीडिया घरानों को भी पसंद नहीं आई. उनको सदैव लगता रहा कि ट्रंप रूस की तरह अमेरिका में मीडिया को प्रतिबंधित कर देंगे. 2020 में ट्रंप की हार के पीछे मीडिया और अन्य कारपोरेट घरानों की बड़ी भूमिका थी.
मजे की बात कि रिपब्लिकन पार्टी को लोग रूढ़िवादी मानते हैं तथा डेमोक्रेट्स को प्रगतिशील. लेकिन जहां तक धन के बंटवारे का प्रश्न है, अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका की बड़ी आबादी को गरीबी से उबारा. खुली छत के नीचे सोने की उनकी मजबूरी को समझा और उन्हें छत प्रदान की.
ट्रंप चूंकि किसी राजनीतिक परिवार से नहीं हैं और न ही उनका अतीत राजनीति से जुड़ा रहा है. वे एक व्यवसायी परिवार से आते हैं. राजनीति में वे बहुत बाद में आए. रिपब्लिकन पार्टी से करियर शुरू किया और 2016 में राष्ट्रपति पद तक पहुंचे.
रूस से नफरत, चीन से भय
अमेरिका की जनता में रूस के प्रति बहुत अधिक घृणा है. उसको लगता है, रूस सदैव मानवाधिकार को कुचलता है. मगर यह वहां का दोहरा रवैया है. वह चीन के प्रति वैसी नफरत नहीं प्रदर्शित करता. जबकि चीन की अर्थव्यवस्था उसको टक्कर दे रही है. चीन के विरुद्ध वह कूटनीतिक साजिशें तो करेगा लेकिन खुल कर चीन के खिलाफ कुछ नहीं बोलेगा. अमेरिका की एलीट लॉबी की इस सोच के खिलाफ जा कर ट्रंप ने क्रीमिया पर रूस के कब्जे को स्वीकृत दी थी. यहां तक कि यूक्रेन के मामले में भी वे रूस के प्रति नरम रहे हैं.
जाहिर है अगर डोनाल्ड ट्रंप नवंबर के चुनाव में जीतते हैं तो रूस पर लगे प्रतिबंध हट भी सकते हैं. रूस ट्रंप की कमजोरी भी है और ताकत भी. क्योंकि युद्ध अमेरिका को आर्थिक रूप से कमजोर कर रहा है. युद्ध रुकता है तो अमेरिका और नाटो से जुड़े सभी देशों को आर्थिक रूप से राहत मिलेगी.
लेकिन, डिबेट में कमजोर पड़े ट्रंप
लेकिन जो बाइडेन के समक्ष डोनाल्ड ट्रंप जितने सशक्त थे, कमला हैरिस के समक्ष वे उतने ही कमजोर पड़ रहे हैं. राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि 10 सितंबर को पेंसिलवानिया में हुई बहस में डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस भारी पड़ीं. हताशा में ट्रंप ने हैरिस के लिए अशोभनीय टिप्पणियां भी कर डाली. उन्होंने ट्रंप को अतीतजीवी बताते हुए कहा, कि अब अमेरिका की जनता को तय करना है कि वह पीछे की तरफ देखेगा या आगे की ओर.
ट्रंप के पास एक तीर था कि जो बाइडेन ने अफगानिस्तान से सेना को वापस बुला कर गलती की. किंतु कमला हैरिस ने इसे यह कह कर खारिज कर दिया कि उस समय हालत ऐसे थे कि सेना को वापस बुलाना ही अमेरिकी प्रशासन की समझदारी थी. कमला ने बार-बार कहा, कि अब वे जो बाइडेन से नहीं कमला से डिबेट कर रहे हैं. इसलिए फोकस यहीं पर करे.
लोकप्रियता में ट्रंप अभी भी आगे
हालांकि 10 सितंबर की डिबेट में कमला भले ही ट्रंप पर भारी पड़ी हों मगर लोकप्रियता में ट्रंप अभी भी उनसे बहुत आगे हैं. ट्रंप अगर राष्ट्रपति बनते हैं तो अमेरिका फर्स्ट की पॉलिसी सख्ती से लागू होगी. अमेरिका के लोगों के लिए तो यह हितकर होगा किंतु वीजा नियम यकीनन और कड़े होंगे.
भारत तथा अन्य देशों से आए छात्रों के लिए मुश्किलें खड़ी होंगी. ट्रंप कुशल लोगों के लिए ही रोजगार के दरवाजे खोलेंगे. अर्थात् सिर्फ स्किल्ड लोग ही अमेरिका में वर्क परमिट का वीजा पा सकेंगे. पर अभी तो अमेरिका के अधिकांश वोटर ट्रंप को अपना राष्ट्रपति चुने जाने को लेकर व्यग्र हैं.

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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

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