दुनियां – कनाडा में न महंगाई पर लगाम लगा पाए न नौकरियां दे पाए, जस्टिन ट्रूडो पर इस्तीफे का दबाव – #INA

कनाडा अब कोई आकर्षण नहीं पैदा करता. भारतीय छात्रों और पेशेवरों में कनाडा जाने का अब कोई रोमांच नहीं रह गया है. जबकि पिछले एक दशक से लोगों में कनाडा जाने की हुड़क रहती थी. वे सोचते थे, किसी तरह कनाडा का PR (Permanent Residency) मिल जाए और इसके लिए अंग्रेज़ी ज्ञान हासिल करने की होड़ मची थी.
हालत यह है कि पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में IELTS (International English Language Testing System) केंद्रों में दाख़िला लेने वालों का प्रयास अब आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि देशों में जाने का रहता है. क्योंकि वहां अपेक्षाकृत जल्दी नौकरी मिलती है और मकानों के किराये भी कम हैं. कनाडा में लिबरल पार्टी की सरकार ने अपने यहां बसने के लिए भारतीयों को खूब लुभाया, पर अब उसी सरकार ने अपने इमीग्रेशन नियमों को कड़ा कर दिया है.
कनाडा जाने की हुड़क खत्म हुई
प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो न तो वहां पर बढ़ती महंगाई पर लगाम लगा पाये न नौकरियां दे पाए. कनाडा के नागरिक भी इस समस्या से जूझ रहे हैं, ऐसे में विदेशी लोगों को वहां और PR दे कर कनाडा सरकार अपने ऊपर और बोझ नहीं लादना चाहती. नतीजा यह हुआ कि IELTS ने अपने कोचिंग सेंटर बंद कर दिए और पंजाबियों में कनाडा जाने की जो हूक रहती थी वह ठंडी पड़ गई. दिक़्क़त यह है कि क्षेत्रफल में दुनिया में दूसरे नंबर के सबसे बड़े देश कनाडा में कुशल और अकुशल लेबर फ़ोर्स की भारी कमी आ गई है. कनाडा जहां अधिकांश परिवारों में पति-पत्नी दोनों जॉब करते हैं, वहां हज़ारों काम ऐसे हैं जिनमें सहायक अथवा सहायिका की ज़रूरत पड़ती है. चूँकि दक्षिण एशिया, चीन, अरब और अन्य अफ्रीकी देशों के मज़दूर सस्ते पड़ते हैं इसलिए हर कनाडाई इन्हें पसंद करता है. वहाँ की आबादी सिर्फ 3.89 करोड़ है, ऐसे में मज़दूर कहाँ से मिलेंगे.
ट्रूडो के चलते लिबरल पार्टी की नैया पार नहीं लगेगी
मगर अब कनाडा न तो सैलानियों के लिए स्वर्ग रहा न वहां जा कर बसने के इच्छुक लोगों के लिए. इसीलिए कनाडा में प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की लोकप्रियता तेजी से गिर रही है. पिछले महीने संसद में उनकी सहयोगी NDP ने उनसे सपोर्ट वापस ले लिया और इसके फ़ौरन बाद वे मांट्रियाल में उप चुनाव हार गए. यहां पर ब्लॉक क्यूबेकॉइस प्रत्याशी लुई फ़िलिप सावे ने लिबरल पार्टी के उम्मीदवार को हरा दिया है. ढाई महीने पहले टोरंटो की सेंट पॉल सीट पर भी लिबरल पार्टी उप चुनाव हारी थी. लगातार दो सीटों पर हार के बाद से अब लगभग तय माना जा रहा है कि यदि जस्टिन ट्रूडो प्रधानमंत्री बने रहे तो लिबरल पार्टी अब सत्ता से गई. कंज़र्वेटिव पार्टी के संघीय चुनाव में जीत के आसार पक्के दिख रहे हैं. कंज़र्वेटिव पार्टी के मुखिया पियरे पोलिएवर ने लिबरल पार्टी पर अब और जोर से प्रहार करने शुरू कर दिए हैं.
मैनीटोबा में NDP की सरकार बनी थी
इसी तरह पिछले साल मैनीटोबा के प्रांतीय चुनाव में तो लिबरल पार्टी को बुरी तरह से हार मिली थी. वहां जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) जीती थी. और सरकार बनाई थी. वहाँ NDP को 57 में से 34 सीटें मिली थीं. मज़े की बात कि इन सभी सीटों पर लिबरल पार्टी पिछले कई दशकों से जीतती चली आ रही थी. मांट्रियाल में लिबरल उम्मीदवार लौरा फिलिस्तीनी को मात्र 27.2 प्रतिशत वोट मिले जबकि अलगाववादी ब्लॉक क्यूबेकॉइस के उम्मीदवार लुई-फिलिप सॉवे को 28 प्रतिशत. 2021 के आम चुनाव में यहां लिबरल पार्टी को 43 फ़ीसद वोट मिले थे. उस समय इस सीट पर ब्लॉक क्यूबेकॉइस को सिर्फ़ 22 पर्सेंट वोट मिले थे और जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) को 19 प्रतिशत.
ट्रूडो को भी हार की आशंका
खुद ट्रूडो भी अपनी जीत के प्रति आश्वस्त नहीं थे. टोरंटो की सेंट पॉल सीट हारने के बाद 25 जून को उन्होंने कहा था, कि बढ़ती महंगाई और मकान की ऊँची होती क़ीमतें उनकी जीत में बाधा बनेंगी. और यही हुआ भी. यही कारण है, कनाडा के सारे सर्वे बता रहे हैं कि अगले आम चुनाव में पियरे पोलिएवर की दक्षिणपंथी कंजर्वेटिव पार्टी की बढ़त रहेगी. ट्रूडो के नेतृत्त्व में जब पहली बार 2015 में कनाडा में लिबरल पार्टी की सरकार बनी तब प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कई लोकप्रिय नीतियों की घोषणाएँ कीं. कर माफ़ी भी इनमें से एक था. इन्होने फटाफट कई व्यापारिक समझौते किए. इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण था कनाडा-संयुक्त राज्य अमेरिका-मैक्सिको समझौता. इसके अतिरिक्त कनाडा-योरोपीय समझौता और ट्रांस पैसेफ़िक पार्टनरशिप समझौता.
विवादों में भी घिरे रहे
लेकिन कनाडा के इस युवा प्रधानमंत्री ने कुछ ऐसे काम भी किए, जिसकी वजह से उनकी छवि धूमिल हुई. जस्टिन ट्रूडो ने मैरीजुआना (गांजा) की बिक्री को वैधता प्रदान की. आज कनाडा में अधिकांश युवा गांजा पीकर काम-धाम छोड़ कर सरकार के सहारे बैठे हैं. सरकार के ख़ज़ाने पर अनवरत बोझ पड़ रहा है. बेरोजगारी भत्ते के बूते पल रहे ये गंजेड़ी नाकारा लोगों की फ़ौज बढ़ा रहे हैं. जस्टिन ट्रूडो जब प्रधानमंत्री बने थे तब उनकी उम्र मात्र 44 वर्ष की थी. वे कनाडा के सर्वाधिक कम उम्र के प्रधानमंत्री थे. 2016 में एक विवाद तब खड़ा हुआ जब उनकी कोहनी एक महिला सांसद की छाती से टकरा गई. इसके लिए ट्रूडो ने बार-बार माफ़ी मांगी परंतु इसे उनके कैरियर के लिए शुभ नहीं माना गया था. इसी वर्ष आग़ा ख़ान के एक प्राइवेट द्वीप में वे छुट्टियाँ मनाने गए.
वॉच डॉग ने ट्रूडो की पोल खोली
कनाडा सरकार के कामकाज पर नज़र रखने वाली संस्था Independent Ethics Commissioner ने इसे किसी के हित साधने की कोशिश बताया था. इसके बाद 2019 में उन्हें एक मूल निवासी महिला के ऊपर कटाक्ष करने का दोषी पाया गया था. जिसके लिए उन्होंने बार-बार माफ़ी मांगी. लिबरल पार्टी के फंडरेज़िंग कार्यक्रम में गरीबी और खराब परिस्थितियों के खिलाफ उस महिला ने ज़ोरदार आवाज़ उठाई थी. वह महिला जब समारोह स्थल से जाने लगी, तब प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने टिप्पणी की थी, “आपके दान का शुक्रिया…” ऐसे कई आरोप उन पर लगे, जिसकी वजह से उनकी छवि ख़राब होती गई. 2020 के संघीय चुनाव में उनका वोटिंग प्रतिशत घट गया. जिन जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्त्व में 2015 में पार्टी को अपार बहुमत मिला था, वह 2019 में काफ़ी कम हो गया. ट्रूडो का कहना था, कि सरकार का ध्यान कोरोना पर केंद्रित रहा, इसलिए लिबरल पार्टी प्रचार नहीं कर पाई.
पियरे पोलिएवर लाएंगे अविश्वास प्रस्ताव
लेकिन 2021 के मध्यावधि चुनावों में भी लिबरल पार्टी को 338 की संसद में सिर्फ़ 154 सीटें मिलीं. बहुमत जुगाड़ने के लिए जस्टिन ट्रूडो ने NDP के जगमीत सिंह से समझौता किया. NDP को 24 सीटें मिली थीं. किंतु मैनीटोबा की प्रांतीय संसद में लिबरल पार्टी की हार तथा जून 2024 में टोरंटो की सेंट पॉल संसदीय सीट पर हुए उप चुनाव में लिबरल पार्टी का हश्र देख कर जगमीत सिंह ने 5 सितंबर को अपना सशर्त समर्थन वापस ले लिया. इस तरह ट्रूडो की सरकार संसद में इस समय अल्प मत में है. ऊपर से मांट्रियाल संसदीय उप चुनाव में भी लिबरल पार्टी हार गई है. वहाँ अलगाववादी ब्लॉक क्यूबेकॉइस के उम्मीदवार को जीत मिली है. इसी से उत्साहित होकर कंज़र्वेटिव पार्टी के नेता पियरे पोलिएवर ने शीघ्र ही सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने को कहा है.

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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

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