दुनियां – लेबनान और हिजबुल्लाह से क्या है इजराइल की दुश्मनी? 24 साल पहले पीछे खींचे थे कदम – #INA

मिडिल ईस्ट में इस वक्त कई फ्रंट पर तनाव और संघर्ष जारी है. इस युद्ध में कई किरदार हैं और हर किरदार की इजराइल के साथ तनाव की अलग-अलग लेकिन कमोबेश एक जैसी कहानी है. हमास जो आजाद फिलिस्तीन के संघर्ष के नाम पर इजराइल से युद्ध करता रहा है तो वहीं हिजबुल्लाह के साथ दुश्मनी की वजह भी इसी संघर्ष के इर्द-गिर्द छिपी हुई है.
ईरान को इन दोनों का समर्थक माना जाता है, हालांकि वो कभी सीधे तौर पर युद्ध में शामिल नहीं हुआ लेकिन हमास और हिजबुल्लाह को हथियार मुहैया कराने के पीछे ईरान का ही हाथ माना जाता है. उधर यमन में हूती विद्रोहियों ने करीब 2000 किलोमीटर दूर से इजराइल के तेल अवीव में रॉकेट दागकर दिखा दिया है कि वो भी इजराइल से दो-दो हाथ करने को तैयार है. लेकिन इजराइल के लिए इस वक्त हमास से भी बड़ी चुनौती है हिजबुल्लाह.
पहले अरब-इजराइल संघर्ष को समझिए
इजराइल और हिजबुल्लाह की दुश्मनी को समझने के लिए थोड़ा फ्लैशबैक में जाना होगा. जब दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका-ब्रिटेन समेत कई देश एक अलग यहूदी देश इजराइल को बसाने की कोशिश में जुटे थे. लेकिन इजराइल के बनने के साथ फिलिस्तीन की आजादी का संघर्ष शुरू हो गया. मिडिल ईस्ट में अचानक एक यहूदी राष्ट्र के उदय ने इस्लामिक देशों के लिए टेंशन पैदा कर दी. फिलिस्तीनी सरजमीं पर यहूदी राष्ट्र की अवधारणा को अरब देशों ने नकार दिया और यहीं से कभी खत्म न होने वाले संघर्ष की शुरुआत हुई.
साल 1948 में यहूदी नेताओं ने इजराइल की स्थापना का ऐलान किया लेकिन फिलिस्तीनियों और उनके समर्थक अरब देशों ने इसका विरोध किया जिससे क्षेत्र में युद्ध शुरू हो गया. मिस्र, जॉर्डन, सीरिया और इराक ने मिलकर इजराइल पर हमला किया लेकिन इजराइल को अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों का समर्थन प्राप्त था, यही वजह है कि चंद दिनों पहले दुनिया के नक्शे पर उभरा मुल्क पहले अरब-इजराइल संघर्ष में जीत हासिल करने में कामयाब रहा. इस जंग के दौरान करीब साढ़े 7 लाख फिलिस्तीनियों को अपने घरों से विस्थापित होना पड़ा जिसे अल-नकबा कहा गया.
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इसके बाद अरब देशों और इजराइल के बीच कई संघर्ष हुए, साल 1967 में 6 दिन तक चली जंग में अरब देशों की जमीन के बड़े हिस्से पर इजराइल ने कब्जा हो गया. इसमें गाजा पट्टी, मिस्र का सिनाई प्रायद्वीप, पूर्वी येरुशलम समेत जॉर्डन का वेस्ट बैंक और सीरिया का गोलन पहाड़ी इलाका शामिल था. इस बार जंग में 5 लाख फिलिस्तीनियों को विस्थापित होना पड़ा. इसके 6 साल बाद 1973 में मिस्र और सीरिया ने एक बार इजराइल के खिलाफ जंग लड़ा और सिनाई प्रायद्वीप को वापस हासिल करने में कामयाब रहा.
1982 में इजराइल ने मिस्र के इस हिस्से से तो अपना कब्जा छोड़ दिया लेकिन गाजा पट्टी पर कब्जा बनाए रखा. करीब 6 साल बाद 1988 में मिस्र और इजराइल के बीच शांति समझौता हुआ, मिस्र पहला अरब देश बना जिसने इजराइल के साथ समझौता किया. आगे चलकर जॉर्डन ने भी इजराइल के साथ शांति समझौता कर लिया.
इन तमाम जंग के दौरान विस्थापित हुए फिलिस्तीनी शरणार्थी शिविरों में फिलिस्तीन की आजादी का आंदोलन अपनी जड़ें जमाने लगा. साल 1967 के युद्ध के बाद फिलिस्तीनी नेता यासिर अराफात को फिलिस्तीनी लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (PLO) का मुखिया बनाया गया. दरअसल साल 1964 में कई संगठनों को मिलाकर PLO बनाया गया था जिसका उद्देश्य फिलिस्तीन की आजादी और अधिकारों को हासिल करना था.
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जब दक्षिणी लेबनान पर इजराइल ने किया कब्जा
वहीं 1975 के आस-पास लेबनान में शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच संघर्ष शुरू हो गया. इसका फायदा उठाकर PLO के लोगों ने लेबनान के दक्षिणी हिस्से से इजराइल को निशाना बनाना शुरू कर दिया. इसके बाद इजराइल ने जवाबी कार्रवाई करते हुए जून 1982 में लेबनान के दक्षिणी हिस्से में कब्जा कर लिया.
इजराइल के साथ समझौते के बाद PLO ने लेबनान छोड़ दिया लेकिन इजराइल ने इस पर कब्जा नहीं छोड़ा. इजराइल पर आरोप लगते हैं कि इसने लेबनान के सिविल वॉर में प्रॉक्सी संगठनों को समर्थन किया, सब्र और शातिला नरसंहार में भी मदद की. इजराइल पर आरोप हैं कि उसने दक्षिणपंथी मिलिशिया की मदद की जिससे लेबनान में 2 दिनों में करीब साढ़े 5 हजार फिलिस्तीनी शरणार्थियों और लेबनानी नागरिक मारे गए.
ईरान के समर्थन से खड़ा हुआ हिजबुल्लाह
इसी बीच ईरान में 1979 में इस्लामिक क्रांति हुई, जिसके बाद ईरान की सत्ता में आई सरकार ने आस-पास के क्षेत्रों में शिया मुस्लिमों को मजबूत करना और उन्हें हथियार देना शुरू कर दिया. 1980 के दशक की शुरूआत में ईरान के समर्थन से हिजबुल्लाह नामक संगठन बना, जिसे इस क्षेत्र में इजराइल को पीछे धकेलने का जिम्मा दिया गया.
लेबनान में हिजबुल्लाह ही ‘सरकार’?
लेबनान में हिजबुल्लाह ने धीरे-धीरे खुद को मजबूत करना शुरू कर दिया, जल्द ही लेबनान में हिजबुल्लाह का सिक्का चलने लगा. साल 1992 में लेबनान में सिविल वॉर खत्म हुआ और इसी के साथ हिजबुल्लाह ने लेबनान की सियासत में भी कदम रखा. पहली बार 1992 में चुनाव लड़ने वाले हिजबुल्लाह ने 128 संसदीय सीटों में से 8 सीटों पर जीत हासिल की. इसके बाद से लेबनान की सत्ता में हिजबुल्लाह का कद बढ़ता गया, मौजूदा समय में ये कहना गलत नहीं होगा कि लेबनान की सरकार की बागडोर हिजबुल्लाह चीफ के हाथों में हैं.
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24 साल पहले इजराइल को खदेड़ने में मिली सफलता
वहीं 1992 के बाद इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच कई बार संघर्ष हुए, वह इजराइल को दक्षिणी लेबनान से हटाने के लिए अपनी सैन्य ताकत में इजाफा करता रहा और आखिरकार साल 2000 के मई महीने में हिजबुल्लाह इजराइल को खदेड़ने में कामयाब रहा. करीब 24 साल पहले इजराइली सेना जब आधिकारिक तौर पर दक्षिणी लेबनान से पीछे हटी तो इसका श्रेय हिजबुल्लाह को ही दिया गया था.
इजराइल के लिए हिजबुल्लाह बड़ा खतरा
पिछले साल 7 अक्टूबर को जब हमास ने इजराइल पर हमला किया तो इजराइल ने जवाबी कार्रवाई करते हुए पूरे गाजा को ही खंडहर में तब्दील कर दिया. करीब एक साल से गाजा में इजराइली हमले जारी हैं, इजराइल का तर्क है कि जब तक वो हमास को पूरी तरह खत्म नहीं कर देता तब तक ये कार्रवाई जारी रहेगी. लेकिन हिजबुल्लाह इसे गाजा के मासूमों का नरसंहार मानता है. उसका कहना है कि जब तक इजराइल गाजा पर हमले नहीं रोकेगा तब तक उसे हिजबुल्लाह की चुनौती का भी सामना करना पड़ेगा.
जंग की शुरुआत से ही हिजबुल्लाह लगातार नॉर्थ इजराइल पर हमले कर रहा है, जिससे करीब 60 हजार यहूदियों को उस क्षेत्र को खाली करना पड़ा है. नेतन्याहू सरकार के सामने इस क्षेत्र में इन यहूदियों को दोबारा बसाने की चुनौती है लेकिन जब तक हिजबुल्लाह के हमले जारी रहेंगे तब तक ऐसा करना मुश्किल होगा. लिहाजा इजराइल ने हिजबुल्लाह की ताकत को कम करने के लिए आक्रामक रणनीति पर काम शुरू कर दिया है. लेबनान में हजारों पेजर्स और वॉकी टॉकी में हुए धमाके इसी रणनीति का हिस्सा माने जा रहे हैं.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

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