दुनियां – Iran Attacks Israel: क्या इजराइल का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता, क्या है लौह कवच? – #INA

ईरान ने इजराइल पर जोरदार हमला किया, मगर फिर भी इजराइल का कुछ नहीं बिगड़ा. एक दो नहीं बल्कि 400 से ज्यादा बैलेस्टिक मिसाइलें भी इजराइल के एयर स्पेस में ही एक के बाद एक ऐसे फुस्स हुईं, जैसे दिवाली का रॉकेट. यह संभव हुआ इजराइल के लौह कवच से. वही लौह कवच जो अपनी तैनाती के बाद से अब तक इजराइल पर हजारों मिसाइलों के हमले को नाकाम कर चुका है.
इजराइल पर ईरान ने मंगलवार देर शाम जोरदार हमला किया. पिछले साल 7 अक्टूबर को हमास द्वारा किए गए हमले के बाद इजराइल पर यह सबसे बड़ा हमला था. ईरान की ओर से एक दो नहीं बल्कि 400 से ज्यादा बैलेस्टिक मिसाइलें दागी गईं, मगर ज्यादातर को इजराइल ने हवा में ही मार गिराया. यह संभव हुआ इजराइल के लौह कवच आयरन डोम से. यह इजराइल की अत्याधुनिक रॉकेट रक्षा प्रणाली है. जिसका उपयोग ईरान से आने वाली मिसाइलों को रोकने के लिया गया.
कैसे काम करता है आयरन डोम?
आयरन डोम ऐसी रॉकेट रक्षा प्रणाली है जो इजराइल की ओर आने वाले किसी भी रॉकेट को रडार पर डिटेक्ट करके उन्हें ध्वस्त कर देती है. बताया जाता है कि आयरन डोम में तीन या चार लांचर, 20 मिसाइलें और एक रडार होता है. इस रडार का काम रॉकेट का पता लगाना होता है. इसके बाद सिस्टम ये निर्धारित करता है कि रॉकेट किसी आबादी वाले क्षेत्र में तो नहीं जा रहा. अगर हमला आबादी क्षेत्र की तरफ होता है तो इजराइल मिसाइल लांच करता है. यह सिस्टम ये भी निर्धारित करता है कि अगर दुश्मन का रॉकेट किसी खुले एरिया में जा रहा है तो उसे छोड़ देता है.
कितना प्रभावी है आयरन डोम?
इजराइली सेना का दावा है कि आयरन डोम का सफलता प्रतिशत 90 प्रतिशत है. जब हमास ने इजराइल पर हजारों रॉकेट दागे थे तब भी आयरन डोम ने ही इनका मुकाबला किया था. इजरायली सैन्य प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल जोनाथन कॉनरिकस ने ये दावा किया था कि अगर आयरन डोम प्रणाली नहीं होती तो मरने वाले इजराइलियों की संख्या कहीं ज्यादा होती. हालांकि दावा ये भी किया जाता है कि अगर रॉकेट ज्यादा दागे जाएं तो कुछ रॉकेट आयरन डोम को धोखा भी दे सकते हैं. तेल अवीव थिंक टैंक, इंस्टीट्यूट फॉर नेशनल सिक्योरिटी स्टडीज के अनुसार, आयरन डोम की प्रत्येक मिसाइल की अनुमानित लागत 40,000 से 50,000 डॉलर है.
आयरन डोम के साथ ये भी लौह कवच
आयरन डोम के साथ इजराइल की वायु रक्षा प्रणाली में एरो भी शामिल है, जिसे अमेरिका के साथ विकसित किया गया है. NBC की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में इस प्रणाली का प्रयोग हूती द्वारा दागी जा रही मिसाइलों को रोकने में किया जा रहा है. इसके अलावा एक अन्य प्रणाली डेविड स्लिंग है. इसे भी अमेरिका के साथ मिलकर विकसित किया गया है. यह मध्यम दूरी की मिसाइलों को रोकने में काम आता है. इसके अलावा अमेरिकी निर्मित पैट्रियट प्रणाली भी है, जिसे 1991 के प्रथम खाड़ी युद्ध में भी इस्तेमाल किया गया था.

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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

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