दुनियां – आप मेरे राजा नहीं हो, आप लोगों ने नरसंहार किया है… किंग चार्ल्स के विरोध में बोली ऑस्ट्रेलियाई सांसद – #INA
किंग चार्ल्स पहली बार ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर हैं. सरकार उनके स्वागत में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती, लेकिन ऐसा नहीं है कि सभी लोग इस यात्रा से खुश हैं. किंग चार्ल्स के दौरे को ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों में ज्यादा उत्साह नहीं नजर आ रहा है.
सोमवार को किंग चार्ल्स ऑस्ट्रेलिया की संसद में भाषण देने पहुंचे. उनके संसद पहुंचते ही एक मूल निवासी सांसद लिडिया थोरपे ने उनका विरोध करते हुए नारे लगाए, “तुम मेरे राजा नहीं हो, तुम लोगों ने हमारे लोगों का नरसंहार किया है, यह तुम्हारी भूमि नहीं है.
थेरपे के इस विरोध प्रदर्शन से ससद में अफरातफरी मच गई. थेरपे को सुरक्षाकर्मियों ने सदन से बाहर निकाला तब सदन की कार्यवाही फिर से शुरु हो सकी.
क्यों किया विरोध प्रदर्शन
अपने विरोध प्रदर्शन के बारे में बताते हुए थोरपे ने मीडिया को बताया कि वह किंग चार्ल्स को साफ संदेश देना चाहती थीं कि वह इस भूमि के नहीं हैं. थोरपे ने कहा कि वह हमारे राजा नहीं हैं क्योंकि हमारे पूर्वजों ने कभी भी अपनी संप्रभुता को ब्रिटिश क्राउन के हवाले नहीं किया था, जैसा कि न्यूजीलैंड और अन्य पूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों ने किया था.
थोरपे ने कहा कि किंग के पूर्वजों ने हमारे लोगों का नरसंहार किया है, इस बात के लिए पहले उन्हें माफी मांगनी चाहिए. थोरपे इससे पहले भी रानी एलिजाबेथ द्वितीय को उपनिवेशी बताया था. यहां तक कि उन्होंने रानी के नाम पर शपथ लेने से भी मना कर दिया था, जिसके बाद उन्हें दोबारा शपथ दिलाई गई थी.
थोरपे ने पिछले साल के जनमत संग्रह का जिक्र करते हुए कहा कि किंग को इस बात के लिए सरकार को मनाना चाहिए कि वह मूल निवासियों को अन्य लोगों के बराबर अधिकार दें. पिछले साल ऑस्ट्रेलिया में एक जनमत संग्रह हुआ था जिसमें यह प्रावधान था कि मूल निवासियों को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए ज्यादा संवैधानिक अधिकार दिए जाएं. इस जनमत संग्रह को लोगों ने भारी बहुमत से नकार दिया था.
पुरानी है बहस
ऑस्ट्रेलिया एक राष्ट्रमंडल देश है, जिसका मतलब है कि वहां का राष्ट्रप्रमुख ब्रिटेन का राजा होगा. लेकिन इस विषय पर लंबे समय से बहस चल रही है कि क्या वह राष्ट्रमंडल से अलग होकर एक गणराज्य बने. इस पर 1999 में एक जनमत संग्रह भी हुआ था, लेकिन इसे भारी बहुमत से अस्वीकार कर दिया गया था.
हालांकि अब इस मामले में लोगों की राय बदल रही है. इस पर लोग धरना प्रदर्शन और अभियान भी चलाते रहते हैं. वर्तमान प्रधानमंत्री अल्बेनीज़ की पार्टी इस मुद्दे का समर्थन करती रही है .चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह एक जनमत करवाएंगे कि ऑस्ट्रेलिया में राजशाही रहनी चाहिए या गणतंत्र. लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद वह इस बात से मुकर गए हैं.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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