दुनियां – Trump Israel Middle East Policy: क्या अमेरिका उठा लेगा इजराइल के सिर से हाथ, मिडिल ईस्ट पर कैसा होगा ट्रंप का रुख? – #INA
अमेरिका राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने शानदार जीत दर्ज की है. कमला हैरिस को बड़े अंतर से हराने वाले ट्रंप जनवरी में बाइडेन की जगह लेंगे. देखना ये होगा कि आखिर इजराइल और मिडिल ईस्ट को लेकर उनका रुख क्या होगा? ये इसलिए भी दिलचस्प होगा क्योंकि वह लगातार अपने चुनाव अभियान में इजराइल गाजा युद्ध का जिक्र करते रहे हैं. इजराइल के राष्ट्रपति बेंजामिन नेतन्याहू से हाल ही में हुई अपनी मुलाकात में डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि जब तक वह राष्ट्रपति पद संभालें तब तक इजराइल गाजा में युद्ध समाप्त कर ले.
इससे पहले ट्रंप ने फ्लोरिडा में मार ए लागो रिसोर्ट में भी इजराइली पीएम की मेजबानी के दौरान ये बात कही थी. ट्रंप भी सार्वजनिक तौर पर इस बात का ऐलान कर चुके हैं. मुश्किल ट्रंप के इस ऐलान के बाद नेतन्याहू भी कह चुके हैं कि फिलहाल वह युद्ध खत्म करने की स्थिति में नहीं है. ऐसे में जो सबसे बड़ा सवाल है वह यही है कि अगर नेतन्याहू ट्रंप की दी हुई समय सीमा तक युद्ध खत्म नहीं करते हैं तो क्या अमेरिका इजराइल के सिर से हाथ उठा लेगा? आइए समझते हैं.
ट्रंप की वो कसम जिससे उठी इजराइल का साथ न देने की बात
हाल ही में 1 नवंबर को जब ट्रंप मिशिगन के डियरबॉर्न में एक लेबनानी रेस्तरां में गए थे, यहां उन्होंने कसम खाई थी कि वे चुने गए तो मध्य पूर्व में शांति स्थापित करेंगे, लेकिन इन लोगों के साथ नहीं जो अभी अमेरिका को चला रहे हैं. इससे पहले भी ट्रंप लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि वह अमेरिका की विदेश नीति में आमूलचल परिवर्तन ला सकते हैं. इसके लिए उन्होंने विस्कॉन्सिन में आयोजित रैली में कहा था कि हमारे सहयोगी हमारे साथ दुश्मनों की तरह व्यवहार करते रहे हैं. हम सैन्य मामलों में इन देशों की रक्षा करते हैं, मगर वे व्यापार के मामले में हमेशा परेशान करते हैं, हम ऐसा नहीं होने देंगे.
ट्रंप अरब बहुल शहर हैमट्रैमैक भी पहुंचे थे, जहां उन्होंने यमनी मुस्लिम मेयर अमीर गालिब से मुलाकात की थी. यह चौंकाने वाला इसलिए था, क्योंकि इससे पहले ट्रंप यहां कभी नहीं आए, क्योंकि ये माना जाता था कि यहां के अरब मुस्लिम डेमोक्रेट के पक्के वोटर हैं, लेकिन इस बार इजराइल के साथ तनाव ने ट्रंप को बेहतर विकल्प के रूप में पेश करने का मौका दिया.
पांच कारणों से समझते हैं कि क्यों इजराइल का साथ देंगे ट्रंप
1- सबसे कट्टर इजराइली समर्थक राष्ट्रपति रहे हैं ट्रंप
इजराइल और हमास के बीच जो युद्ध छिड़ा है उसका मुख्य कारण गाजा की आर्थिक स्थिति के साथ सऊदी और इजराइल के बीच संबंध सामान्य बनाने के लिए संभावित समझौते पर जोर भी शामिल था. यह करने वाले ट्रंप ही थे. पिछले कार्यकाल के दौरान ट्रंप ने मिडिल ईस्ट में कई राजनीतिक और कूटनीतिक बदलाव किए थे, इन सभी बदलावों के केंद्र में इजराइल था. ट्रंप ने अपने कार्यकाल के पहले ही साल में येरुशलम को इजराइल की राजधानी के रूप में मान्यता दी थी.
ट्रंप ने अमेरिकी दूतावास को भी येरुशलम में स्थानांतरित कर दिया था. मार्च 2019 में सीरिया के कब्जे वाले गोलान हाइट्स पर इजराइल की संप्रभुता स्थापित कराने वाले ट्रंप ही थे. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से भी दो टूक ये कहा था कि संस्था इजराइल से पूर्वाग्रह रखती है. पिछले कुछ माह से बेशक ट्रंप इजराइल के युद्ध प्रयासों की सीमित आलोचना करते रहे हैं, लेकिन बाइडेन या हैरिस की तुलना में वह खुद को इजराइल का बेहतर दोस्त बताते रहे हैं. चुनाव अभियान के दौरान एक बहस में उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि हैरिस के राष्ट्रपति बनने से इजराइल नष्ट हो जाएगा.
2- सौदेबाजी में माहिर
ट्रंप की सबसे बड़ी ताकत उनकी कूटनीति है, वह अमेरिका को उसी तरह डील करते हैं जैसा अपना व्यापारिक साम्राज्य आगे बढ़ाते हैं. पिछली बार भी राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय संधियों को तोड़ा था जिनसे अमेरिका के व्यापारिक सौदे खराब हो रहे थे. वह पेरिस जलवायु समझौता और उत्तरी अमेरिका मुक्त व्यापार समझौते से भी बाहर निकल गए थे. मिडिल ईस्ट में भी उनका ऐसा ही रुख रहा था वे ईरान के परमाणु समझौते से बाहर निकल गए थे जो बराक ओबामा ने किया था. इसके तहत ईरान से प्रतिबंध हटाए जाने थे ताकि उसका परमाणु कार्यक्रम सीमित रहे.
ट्रंप ने प्रतिबंधों को एक बार फिर लागू करके ईरान की अर्थव्यवस्था को बड़ी चोट पहुंचाई थी. ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स को आतंकी संगठन बताने वाले ट्रंप ही थे. ट्रंप ने यहां भी इजराइल, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, सूडान और मोरक्कों के बीच सामान्य कराने वाले समझौते कराए थे. ट्रंप ने इजराइल फिलिस्तीन संघर्ष को समाप्त करने के लिए भी योजना बनाई थी, उसमें फिलिस्तीनियों को आर्थिक प्रोत्साहन की पेशकश की गइ्र थी, इसके बदले में उन्हें इजराइल की संप्रभुता स्वीकार करनी थी.
3- ट्रंप युद्ध विरोधी, लेकिन मुनाफा हो तो युद्ध से पीछे भी नहीं
ट्रंप खुद को लगातार युद्ध विरोधी बताते रहे हैं और कहते रहे हैं कि अपने कार्यकाल के दौरान किसी युद्ध में शामिल नहीं हुए. ये बात सही है कि ट्रंप ने अफगानिस्तान में युद्ध समाप्ति का आह्रवान किया था, लेकिन मार्च में आईएस के साथ युद्ध का ऐलान ट्रंप े ही किया था और आईएस नेता अबू अल बगदादी को मार गिराया था.
ट्रम्प के आदेश पर हुए ड्रोन हमले में ईरान के जनरल कासिम सुलेमानी और इराकी मिलिशिया नेता अबू महदी अल-मुहांडिस मारे गए थे. इसके बाद ईरान ने रॉकेटों की बौछार भी की थी, लेकिन हालात नियंत्रण में रहे थे. इसके अलावा ट्रंप लगातार युद्धरत देशों को हथियार बेचते रहे थे. हूती के साथ युद्ध में उतरे अरब के साथ उनका 110 डॉलर का हथियार सौदा इसका सबूत है. इसके अलावा जॉर्डन और यूएई को भी ट्रंप लगातार हथियार बेचते रहे. ऐसे में वह इजराइल के तौर पर अपना एक हथियार खरीदार खोएंगे इसकी उम्मीद कम है.
4- बाइडेन के साथ नेतन्याहू का तनाव
इजराइल के पीएम नेतन्याहू के बाइडेन प्रशासन के साथ संबंध सामान्य नहीं थे, पिछले कुछ समय से लगातार तनाव उभर रहा था. खास तौर से हिजबुल्लाह पर हमले के दौरान अमेरिका और इजराइल में मतभेद सामने आए थे. बाइडेन के कार्यालय में सुरक्षा सहायता और हथियारों की खेप रोकने तक की धमकी दी गई थी. विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने भी इस तरह की चेतावनियां दी थीं, लेकिन नेतन्याहू ने इन धमकियों के बावजूद हमले जारी रखे थे.
ये तनाव जग जाहिर होने के बाद ट्रंप ने इजराइल के प्रति सहानुभूति दिखाते हुए कई ऐलान किए थे और इजराइल पर हो रहे हमलों को गलत बताते हुए ये कहा इजराइल के कदम को सही बताया था. अमेरिका इजराइल मामलों के जानकार बेन सैसन-गोर्डिस ने टाइम्स ऑफ इजराइल से बातचीत में कहा कि ट्रंप अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून में दृढ़ विश्वास नहीं रखते हैं या युद्ध के कानूनों के प्रति प्रतिबद्ध नहीं हैं. ट्रम्प गाजा में युद्ध को आधिकारिक रूप से समाप्त होते देखना चाहते हैं, लेकिन उन्होंने लेबनान के बारे में ऐसी कोई मांग नहीं की है. यानी वह ईरान को कमजोर करने के लिए इजराइल के हमलों का समर्थन जारी रख सकते हैं.
5- मिडिल ईस्ट के सबसे मजबूत भरोसेमंद नेता की जरूरत
ट्रंप की सबसे बड़ी दुविधा ये है कि विश्व का सबसे मजबूत नेता होने के बावजूद यूरोप और पश्चिमी देशों के नेताओं से उनकी शैली मेल नहीं खाती. इसलिए ट्रंप की नजर मिडिल ईस्ट पर पिछले कार्यकाल के दौरान भी रही थी. सऊदी अरब के अलावा जॉर्डन, मोरक्को समेत कई देशों के साथ हथियार सौदे किए थे, तुर्की के साथ भी कुछ समझौते किए गए थे, लेकिन बाद में तुर्की ने रूस के हथियार खरीदे और ये सौदा टूट गया. इसके बाद ट्रंप और तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के बीच तनाव काफी बढ़ गया था. ऐसे में मिडिल ईस्ट में अमेरिका के साथ सबसे मजबूत देश के तौर पर इजराइल ही था. ऐसे में ट्रंप अपने सबसे भरोसेमंद दोस्त को खोना तो नहीं चाहेंगे.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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