Political – पवार-ठाकरे-शिंदे-राणे-मुंडे और चव्हाण…महाराष्ट्र की सियासत को मुट्ठी में रखते हैं ये एक दर्जन परिवार- #INA
शरद पवार, उद्धव ठाकरे, अशोक चव्हाण, सुशील कुमार शिंदे, अमित देशमुख
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की लड़ाई जीतने के लिए बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए और कांग्रेस की अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन ने सारे घोड़े खोल रखे हैं. एक तरफ राजनीतिक दल अपना दमखम दिखा रहे हैं. वहीं, सूबे में एक दर्जन राजनीतिक परिवार हैं, जो महाराष्ट्र की सियासत को अपनी मुट्ठियों में रखते हैं. प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में लंबे समय से इन्हीं राजनीतिक परिवारों का दबदबा कायम रहा है. इस बार के विधानसभा चुनाव में इन्हीं सियासी परिवारों के इर्द-गिर्द महाराष्ट्र की राजनीति सिमटी हुई नजर आ रही है.
महाराष्ट्र के सियासी परिवारों में ठाकरे से लेकर पवार परिवार तक अपना-अपना पावर दिखाने के लिए बेताब हैं. पवार परिवार से तीन सदस्य चुनावी मैदान में ताल ठोक रखी हैं, तो ठाकरे परिवार की तीसरी पीढ़ी के दो सदस्य किस्मत आजमा रहे हैं. उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे और राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे चुनावी मैदान में हैं. ऐसे ही कई परिवार हैं, जिन्होंने सियासी पार्टियां बदलीं, लेकिन अपने क्षेत्रों में अपना प्रभाव कम नहीं होने दिया. शिंदे से लेकर मुंडे और देशमुख और राणे परिवार तक की साख दांव पर लगी है.
ठाकरे परिवार का इम्तिहान
महाराष्ट्र की सियासत में ठाकरे परिवार की तूती बोलती है. बालासाहेब ठाकरे ने अपने जीवन में कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन रिमोर्ट कन्ट्रोल से सरकार जरूर चलाई है. 1996 में शिवसेना का गठन किया और राजनीति के बेताज बादशाह बनकर उभरे. बाल ठाकरे की सियासी विरासत को उनके बेटे उद्धव ठाकरे ने संभाला, लेकिन पार्टी में दो फाड़ हो गए. शिंदे ने उद्धव के खिलाफ बगावत का झंडा उठाकर शिवसेना पर अपना दबदबा बना लिया, जिसके बाद उद्धव ठाकरे ने शिवसेना (यूबीटी) नाम से पार्टी बना ली. वहीं, बाल ठाकरे के जीवन में ही राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नव निर्माण सेना नाम से अलग अपनी पार्टी बना ली.
ये भी पढ़ें
ठाकरे परिवार में चुनाव न लड़ने की परंपरा से अलग हटकर 53 साल के बाद ठाकरे परिवार की तीसरी पीढ़ी के सदस्य और बालासाहेब के पोते आदित्य ठाकरे वर्ली सीट से चुनावी मैदान में उतरकर विधायक बने. उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन करीब ढाई साल बाद शिंदे के बगावत करने के चलते सरकार गिर गई. उद्धव ठाकरे एक बार फिर से वर्ली सीट पर किस्मत आजमा रहे हैं तो राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे भी सक्रिय राजनीति में है और माहिम सीट से चुनावी मैदान में उतरे हैं. आदित्य ठाकरे और अमित ठाकरे क्या इस बार चुनावी जंग जीत पाएंगे या फिर सियासी चक्रव्यूह में घिर जाएंगे?
पवार परिवार का सियासी पावर
शरद पवार की राजनीतिक विरासत बेटी सुप्रिया सुले और भतीजे अजीत पवार के बीच बंट चुकी है. शरद पवार की मां शारदा बाई 1936 में पूना लोकल बोर्ड की सदस्य थीं. इसी का नतीजा था कि शरद पवार 38 की उम्र में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए और चार बार सीएम रहे. कांग्रेस से सियासी पारी का आगाज करने वाले शरद पवार ने 1999 में एनसीपी का गठन किया, लेकिन मार्च 2023 में अजीत पवार ने अपने चाचा शरद पवार से पार्टी और विधायक दोनों ही छीन लिया. ऐसे में शरद पवार को दूसरी एनसीपी (एस) नाम से पार्टी बनानी पड़ी है.
सुप्रिया सुले 2006 में राज्यसभा सदस्य बनीं और पिछले चार लोकसभा चुनाव से बारामती सीट से सांसद चुनी जा रही हैं. अजीत पवार महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री हैं और एक बार फिर बारामती विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे हैं. शरद पवार ने अपने पोते योगेंद्र पवार को अजित पवार के सामने उतार रखा और एक दूसरे पोते रोहित पवार को भी चुनाव लड़ा रहे हैं. रोहित पवार पिछली बार विधायक बनने में सफल रहे थे, लेकिन इस बार योगेंद्र पवार बनाम अजीत पवार की लड़ाई ने मुकाबला रोचक बना दिया है.
राणे परिवार की अग्नपरीक्षा
बीजेपी के दिग्गज नेता और कोंकण की राजनीति के आक्रमक चेहरा माने जाने वाले नारायण राणे ने अपना सियासी सफर शिवसेना से शुरू हुआ था, लेकिन वह कांग्रेस होते हुए बीजेपी में हैं. राजनीति में आने से पहले नारायण राणे मुंबई में सक्रिय ‘हरिया-नारया’ गैंग से जुड़े हुए थे. यह गैंग खुलेआम सड़कों पर हमला करने के लिए चर्चित था. राणे ने 1968 में शिवसेना ज्वाइन कर लिया और 1990 में पहली बार विधायक चुने गए और शिवसेना-बीजेपी सरकार में मुख्यमंत्री भी बने. इसके बाद 2005 में उन्होंने शिवसेना छोड़कर कांग्रेस ज्वाइन कर ली.
2017 में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर अलग पार्टी बना ली और फिर बीजेपी के समर्थन से राज्यसभा सदस्य हैं. नाराणय राणे की राजनीतिक विरासत उनके बेटे नीलेश राणे और
नीतेश राणे आगे बढ़ा रहे हैं. बीजेपी के टिकट पर नितेश राणे कोंकण की कणकवली सीट से चुनावी मैदान में है तो एकनाथ शिंदे की शिवसेना से नीलेश राणे को कुडाल सीट पर किस्मत आजमा रहे हैं. राणे परिवार का राजनीतिक आधार सिंधदुर्ग और कोंकण इलाके में है, लेकिन इस बार राह आसान नहीं है.
चव्हाण परिवार का सियासी दबदबा
महाराष्ट्र की सियासत में चव्हाण परिवार कांग्रेस की राजनीति का चेहरा हुआ करता था, लेकिन अब बीजेपी की सियासी नैया पार लगाने में जुटा है. पूर्व मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण 1975 और 1986 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहने के साथ केंद्र में वित्त और गृह मंत्रालय जैसे विभाग भी संभाल चुके हैं. मौजूदा समय में उनकी राजनीतिक विरासत अशोक चव्हाण के हाथों में रही और 2008 से 2010 के बीच महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रहे हैं. ‘नांदेड़’ जिले में चव्हाण परिवार की अच्छी खासी दखल है. अशोक चव्हाण ने लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी का दामन थाम लिया था. बीजेपी के टिकट पर उनकी पत्नी अमिता चव्हाण चुनावी मैदान में उतरी है. हालांकि, इस सीट से विधायक रह चुकी हैं, लेकिन इस बार उनका मुकाबला कांग्रेस से है.
मुंडे परिवार की खत्म हो जाएगी सियासत
महाराष्ट्र में बीजेपी की राजनीति में गोपीनाथ मुंडे काफी कद्दावर नेता माने जाते थे. कांग्रेस के खिलाफ संघर्ष करने वालों में गोपीनाथ मुंडे का नाम सबसे आगे आता था. वो महाराष्ट्र के गृह मंत्री और केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री रहे हैं, लेकिन 2014 में कार दुर्घटना में उनका निधन हो गया है. गोपीनाथ मुंडे की राजनीतिक उनकी बेटियों के हाथ में है. बड़ी बेटी पंकजा मुंडे एमएलसी हैं और दूसरी बेटी प्रीतम सांसद रह चुकी हैं. गोपीनाथ मुंडे के भतीजे धनंजय मुंडे ने एनसीपी से विधायक हैं. 2019 में धनंजय मुंडे ने पकंजा मुंडे को मात दी थी. इस बार पंकजा मुंडे एमएलसी होने के नाते चुनाव नहीं लड़ रही है और धनंजय मुंडे बीड से चुनावी मैदान में है. इस तरह से धनंजय मुंडे अगर हार गए तो मुंडे परिवार की सियासत खत्म हो जाएगी.
भुजबल परिवार का सियासी दखल
शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे की उंगली पकड़कर शिवसेना से जुड़े छगन भुजबल महाराष्ट्र के कद्दावर ओबीसी नेता माने जाते हैं. भुजबल 1985 में मुंबई के मेयर बने और बाद में उन्होंने एनसीपी का दामन थाम लिया. इसके बाद वे महाराष्ट्र में उपमुख्यमंत्री भी बने. छगन भुजबल शिवसेना में थे तो मुंबई में खासा प्रभाव था, लेकिन एनसीपी में आने के बाद नासिक के इलाके में अपना राजनीतिक प्रभुत्व जमाया. छगन भुजबल ने अजीत पवार के साथ शरद पवार का साथ छोड़ दिया. अजीत पवार ने उन्हें एक नादगांव से उतारा है. भुजबल परिवार की सियासत विरासत उनके बेटे पंकज भुजबल और भतीजे समीर भुजबल बढ़ा रहे हैं. समीर भुजबल 2009 में सांसद रह चुके हैं और अब नादगांव से अपने चाचा के खिलाफ निर्दलीय चुनावी मैदान में उतर गए हैं.
महाराष्ट्र में शिंदे खानदानों की खनक
महाराष्ट्र की सियासत में दो शिंदे परिवार है. महाराष्ट्र में एक सब इंस्पेक्टर से देश के गृहमंत्री तक का सफर करने वाले कांग्रेस नेता सुशील कुमार शिंदे प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. महाराष्ट्र में कांग्रेस का दलित चेहरा माने जाते हैं और सोलपुर इलाके में अच्छा खासा प्रभाव रखते हैं. सुशील कुमार शिंदे की राजनीतिक विरासत उनकी बेटी प्रणीति शिंदे संभाल रही हैं. सोलापुर विधानसभा सीट से विधायक रह चुकी हैं और फिलहाल सांसद है. इस बार के विधानसभा चुनाव में सोलापुर इलाके में शिंदे परिवार अपने वर्चस्व दिखाने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है.
सुशील कुमार शिंदे ही एकनाथ शिंदे का भी अपना सियासी दबदबा है. सुशील शिंदे कांग्रेस का चेहरा हैं तो एकनाथ शिंदे एक समय बालाठाकरे के सहयोगी आनंद दिघे की उंगली पकड़कर राजनीति में आए, लेकिन मुख्यमंत्री बनने के लिए उद्धव ठाकरे का ही तख्तापलट कर दिया. उद्धव के खिलाफ बागवत कर विधायक और शिवसेना पार्टी को छीन लिया. एकनाथ शिंदे अपनी सियासी विरासत के तौर पर बेटे श्रीकांत शिंदे का आगे बढ़ा रहे हैं. हालांकि, एकनाथ शिंदे के लिए इस बार मुकाबला काफी कड़ा है और ठाणे के इलाके में अपनी सीटें जीतने के साथ-साथ अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को भी जिताने का दबाव है.
शिंदे परिवार की विरासत बेटी के हाथ महाराष्ट्र में एक सब इंस्पेक्टर से देश के गृहमंत्री तक का सफर करने वाले कांग्रेस नेता सुशील कुमार शिंदे प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. इसी से उनकी राजनीतिक ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है, लेकिन इस बार चुनावी में रण में उन्हें हार का मुंह देखा पड़ा है. जबकि महाराष्ट्र में कांग्रेस का दलित चेहरा माने जाते हैं और सोलपुर इलाके में अच्छा खासा प्रभाव रखते हैं. सुशील कुमार शिंदे की राजनीतिक विरासत उनकी बेटी प्रणीति शिंदे संभाल रही हैं. वह सोलापुर विधानसभा सीट से विधायक हैं.
खड़से परिवार के लिए भी परीक्षा घड़ी
महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ अपनी राजनीतिक पारी का आगाज करने वाले एकनाथ खड़से एनसीपी में हैं, लेकिन खड़से परिवार दो धड़ों में बंट चुका है. एकनाथ खड़से की पुत्री रोहिणी खड़से खेवलकर एनसीपी के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं, तो दूसरी तरफ उनके बेटे बीजेपी में हैं. एकनाथ खड़से की बहू रक्षा खड़से बीजेपी से सांसद हैं और केंद्र सरकार में मंत्री हैं. मुक्ताई नगर विधानसभा क्षेत्र से एकनाथ खड़से पांच बार विधायक रहे हैं और अब उनकी बेटी चुनावी लड़ रही है जबकि उनके सामने शिवसेना के बागी नेता चंद्रकांत पाटिल से चुनाव हार गईं थी. शिंदे गुट वाले शिवसेना से पाटिल फिर चुनाव लड़ रहे हैं तो रोहिणी एनसीपी से किस्मत आजमा रही हैं. इस तरह उत्तरी महाराष्ट्र में खड़से परिवार के लिए परीक्षा की घड़ी है, लेकिन ननद और भौजाई एक दूसरे के खिलाफ हैं.
देशमुख परिवार का लातूर में आधार
महाराष्ट्र की राजनीति में विलासराव देशमुख शक्तिशाली नेता रहे हैं. महाराष्ट्र के लातूर में जन्मे देशमुख ने पंचायत से अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत की और राष्ट्रीय राजनीति तक अपनी पहुंच बनाई. वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी बने. देशमुख के निधन के बाद उनकी राजनीतिक विरासत को उनके बेटे अमित देशमुख और धीरज देशमुख संभाल रहे हैं. जबकि रितेश फिल्म में एक्टर हैं. कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे विलासराम देशमुख के बेटे अमित और धीरज देशमुख दोनों ही चुनावी मैदान में है. पिछली बार अमित देशमुख जीतने में सफल रहे थे, लेकिन इस बार दोनों ही अपनी जीत के लिए मशक्कत कर रहे हैं.
निलंगेकर परिवार की सियासी हनक
महाराष्ट्र की सियासत में शिवाजी निलंगेकर 1985-86 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे. निलंगेकर परिवार का सबसे ज्यादा प्रभाव लातूर वाले इलाके में है. जिले की निलंगा विधानसभा सीट पर 1999 से अब तक निलंगेकर परिवार के सदस्य ही चुने जाते रहे है. निलंगेकर परिवार राजनीतिक विरासत उनके बेटे दिलीप निलंगेकर के हाथों में है, जो फिलहाल विधायक हैं.बहू रूपा सांसद रह चुकी हैं और पोते संभाजी निलंगेकर फडणवीस और फिलहाल शिंदे सरकार में मंत्री हैं. संभाजी बीजेपी के कद्दावर नेता माने जाते हैं और फिर से एक बार चुनावी मैदान में है.
विखे पाटिल परिवार में ही घमासान
विखे पाटिल परिवार अब बीजेपी में महाराष्ट्र की सिसायत में बालासाहेब विखे पाटिल कद्दावर नेता माने जाते हैं. अहमदनगर उत्तर से सात बार विधायक रहे और केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे हैं. उनके बेटे राधाकृष्ण महाराष्ट्र में नेता प्रतिपक्ष थे, जो बीजेपी ज्वाइन की और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री बने. उनके पोते सुजय पाटिल अहमदनगर सीट से बीजेपी के सांसद रहे हैं. अहमदनगर और विखे पाटिल परिवार एक दूसरे के पर्याय हो चुके हैं. लोकसभा चुनाव में दोनों ही आमने-सामने थे, लेकिन संजोय का पलड़ा भारी रहा था. इस तरह अहमदनगर इलाके की सीट पर शरद पवार की एनसीपी से विखे पाटिल विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमा रहे हैं.
वहीं, महाराष्ट्र की राजनीति में वसंतदादा पाटिल की एक दौर में तूती बोलती थी.वसंतदादा 1977 और 1983 में दो बार मुख्यमंत्री रहे हैं और मौजूदा समय में पाटिल परिवार की तीसरी पीढ़ी महाराष्ट्र की राजनीति में सक्रिय है. इस परिवार का प्रभाव सांगली और इसके आसपास के इलाके में है. पाटिल की पत्नी शालिनी ताई भी कैबिनेट मंत्री रह चुकी हैं. इसके अलावा उनके बेटे प्रकाश और पोते प्रतीक सांगली से सांसद रह चुके हैं. वसंतदादा पाटिल परिवार की जयश्री पाटिल निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरी हैं. कांग्रेस ने सांगली सीट के लिए कांग्रेस ने पृथ्वीराज पाटिल को मैदान में उतारा है, जो पहले दो बार चुनाव लड़ चुके हैं. इस तरह वसंतदादा पाटिल परिवार के लिए काफी अहम माना जाता है
Copyright Disclaimer :- Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing., educational or personal use tips the balance in favor of fair use.
यह पोस्ट सबसे पहले टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम पर प्रकाशित हुआ , हमने टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम के सोंजन्य से आरएसएस फीड से इसको रिपब्लिश करा है, साथ में टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम का सोर्स लिंक दिया जा रहा है आप चाहें तो सोर्स लिंक से भी आर्टिकल पढ़ सकतें हैं
The post appeared first on टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम Source link