रासायनिक खाद के इस्तेमाल और फ्लड इरिगेशन से मिट्टी की क्षमता कमजोर हुई है। हमें संतुलित खाद के इस्तेमाल, प्राकृतिक खेती को अपनाकर इसे सुधारना होगा। गंगा बेल्ट के किनारे किसान प्राकृतिक खेती के लिए जुड़ रहे हैं। हमें बीज उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नीति लानी होगी। यह कहना है उत्तर प्रदेश की कृषि उत्पादन आयुक्त मोनिका एस गर्ग का। वह शनिवार को वाराणसी स्थित अंतरराष्ट्रीय चावल शोध संस्थान आईं और प्रदेश में खाद संकट, प्राकृतिक खेती, एफपीओ योजना समेत विभिन्न विषयों पर खास बातचीत की। पेश है बातचीत के मुख्य अंश… अमर उजाला गांव जंक्शन नेशनल सीड कांग्रेस का सहयोगी है।
गंगा किनारे रसायन मुक्त खेती
कृषि उत्पादन आयुक्त ने कहा कि नमामी गंगे परियोजना के अंतर्गत हम गंगा किनारे रसायन मुक्त खेती का प्रयास कर रहे हैं। इससे काफी किसान जुड़ेंगे। केंद्र ने प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने की बात की है उसके लिए कार्ययोजना बनाई जा रही है। इतने सालों से जो रासायनिक खाद का इस्तेमाल हुआ, फ्लड इरिगेशन किया गया, इससे मृदा में जीवाश्म की कमी हुई, मृदा की क्षमता क्षीण हो गई है। हम प्रयास कर रहे कैसे संतुलित खाद इस्तेमाल किया जाए, जिससे उत्पादन भी कम न हो। पहले हमें बाहर से अनाज मंगाना पड़ता था, आज अपना अनाज खुद पैदा कर लेते हैं। हम चाहते हैं कि हमेशा पर्याप्त अनाज अपने लिए पैदा करें जो स्वास्थ्यवर्धक हो। इससे किसान के साथ उपभोक्ता का भी फायदा होगा, आम नागरिक को सभी पोषक तत्वों से युक्त खाना मिल पाएगा। प्रदेश सरकार इस दिशा में कई प्रयास कर रही है।
पारंपरिक खेती के साथ तकनीक को जोड़ना जरूरी मृदा परीक्षण पर जोर देने के साथ इस काम में महिलाओं की सहभागिता बढ़ाई जा रही है। सात हजार कृषि सखियों का प्रशिक्षण कराया गया है। उनको अब हमने मृदा परीक्षण का प्रशिक्षण दिया है। यह किसानों के लिए फायदेमेंद होगा। वह संतुलित उर्वरक का इस्तेमाल करेंगे जिससे उत्पादन क्षमता बढ़ेगी और मृदा का नुकसान नहीं होगा। कुछ लोगों ने ऐसी तकनीक बनाई है जिससे डीएपी की जरूरत एक तिहाई या आधी हो गई है। हमें ऐसी तकनीक को इस्तेमाल करेंगे। प्राकृतिक खेती हमारा पारंपरिक ज्ञान है जिसके साथ नई तकनीक का इस्तेमाल करते हुए रसायनमुक्त खेती करनी होगी। इसकी कार्ययोजना जल्द ही केंद्र की गाइडलाइन और वैज्ञानिकों से बात करके तैयार करेंगे।
निर्यात का हब बना वाराणसी
वाराणसी बना निर्यात का हब, प्रदेश में कई जगह बन रहे पैक हाउस मोनिका एस गर्ग ने कहा, वाराणसी निर्यात का हब बन रहा, यहां से सब्जियों का निर्यात किया जा रहा है। इसी तरह प्रदेश का आम, यूएस तक गया है। यमुना एक्सप्रेस-वे में जेवर एयरपोर्ट के पास निर्यात के लिए एक बड़ा हब बनाया जा रहा है। इससे हम अपने कृषि उत्पादों को निर्यात कर पाएंगे। अभी हम एक लैंड लॉक स्टेट हैं, हमारे पास पोर्ट न होने के कारण बहुत से उत्पाद दूसरे राज्यों में जाकर वहां से निर्यात होते जिनकी गिनती हमारे निर्यात में नहीं होती है। जब पैक हाउस बन जाएंगे, निर्यात की सुविधाएं होंगी तो निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। छह जगह पैक हाउस बन रहे हैं, कई जगह बन गए। हमारे कई उत्पाद निर्यात होते हैं जैसे चिकोरी, बासमती चावल, आदि।
किसानों का क्षमता विकास करने पर जोर फसलों की उत्पादकता बेहतर करने के लिए किसानों का क्षमता विकास करना होगा। इसके लिए हम प्रगतिशील किसानों के साथ अपने किसान विकास केंद्रों का उपयोग कर रहे हैं। हाल ही में हमने कृषि विज्ञान केंद्र उन्नत कृषि ग्राम योजना शुरू की है जिसके तहत केवीके ने दो-दो गांव को गोद लेकर वहां उन्नतशील कृषि करवाकर उसकी पार्टीसिपेटरी रूरल अप्रेसल (पीआरए) कराया गया है। उसकी कार्ययोजना बनाई गई है। इससे वह नई तकनीक का इस्तेमाल करके किसानों की आय में वृद्धि का मॉडल स्थापित करेंगे।
बीज नीति बनाकर किसानों को जोड़ना होगा
प्रदेश में बीज की उपलब्धता और किसानों को अच्छा बीज देने के मुद्दे पर मोनिका एस गर्ग ने कहा, सीड एक्ट में सर्टीफाइड सीड की बात है। हमारे प्रदेश में यह उपलब्ध है। कुछ कंपनी ट्रुथफुल सीड बेच रहीं, यह उनकी अपनी ब्रांडिंग पर होता है। हमने जो एनालिसिस किया तो देखा कि अभी भी हम दूसरे राज्यों से बीज आयात करते हैं। इसका एक कारण है कि प्रदेश का क्लाइमेट कुछ सीड उत्पादन के लिए अनुकूल नहीं। वहीं कुछ बीज के उत्पादन के लिए अनुकूल है। हमारा प्रदेश बहुत बड़ा होने के साथ नौ एग्रो क्लाइमेटिक जोन हैं जो हमारी ताकत हैं। हम अलग अलग जोन में वहां के हिसाब से अनुकूल बीज उत्पादन कराकर दूसरे राज्यों को भेजें। जैसे अभी हम मटर दूसरे राज्यों को भेज रहे हैं। एक बीज की नीति बनाकर किसानों को जोड़ना होगा, इस पर बहुत शोध हो रहा है।
डीएपी की जगह अन्य विकल्पों पर दें ध्यान खाद की कमी के मुद्दे पर कृषि उत्पादन आयुक्त ने कहा, किसान संतुलित खाद इस्तेमाल करें। किसान डीएपी पर अधिक जोर देते हैं, उसमें सिर्फ अमोनिया और फॉस्फोरस है। जबकि, एनपीके में पोटाश भी है। आलू को पोटाश चाहिए। यहां प्लानिंग की बहुत जरूरत है। इस रबी सीजन में हमने हर रोज बैठकर माइक्रो प्लानिंग की है। जिस जनपद को जिस खाद की जरूरत थी उसी का रैक भिजवाया जाए इस तरह काम किया। गत वर्ष जितना हमारा डीएपी वितरण हुआ था उससे अधिक भारत सरकार ने इस बार उपलब्ध कराया और हमने किसानों को दिया।
इसके साथ ही किसानों से कहना है कि टीएसपी में यूरिया मिलाकर इस्तेमाल करते हैं तो उसका असर भी डीएपी जैसा आता है। हम जागरुकता अभियान चलाएंगे कि किसान डीएपी पर निर्भरता कम कर एनपीके और टीएसपी पर ध्यान दे, प्राकृतिक खेती, संतुलित खाद पर ध्यान दे। जिलाधिकारियों से हम बात करते हैं, सहकारी समितियों पर अधिक मांग आ रही। जैसे मुख्यालय स्तर पर हम रैक की प्लानिंग कर रहे, उनसे उम्मीद करते कि वह लोकल स्तर पर सोसाइटी को उपलब्ध कराएं। खाद की कमी से जुड़ा कोई केस आता तो हम उसी दिन रिपोर्ट मंगाते है। हाल ही में हमीरपुर की बात करें तो सोसाइटी पर जैसे 500 बोरे खाद उपलब्ध थी, किसान आ गए 1500, ऐसे में उन किसानों को स्थानीय स्तर पर बता दिया जाना चाहिए था कि आप दूसरी सोसाइटी पर जाओ वहां उपलब्ध है।
प्राइवेट जगह से खाद ले सकते हैं। प्राइवेट डीलर पर भी रेवेन्यू के अफसर, लेखपाल लगाकर खाद बंटवाई जा रही है। उपलब्धता की क्राइसेज के बावजूद पारदर्शिता से खाद बांटी जा रही है। आज डीएम, जिला कृषि अधिकारी को यह मालूम है कि किस सेल प्वॉइंट पर किस तरह का उर्वरक, कितना उपलब्ध है, कल उसका कितना वितरण हुआ था। भारत सरकार के फर्टीलाइजर मैनेजमेंट पोर्टल पर सब उपलब्ध है। इसकी एक्सेस इसी साल से सबको दे दी है। खाद के कारण बहुत दिक्कत नहीं आ रही, खाद सब जगह उपलब्ध है।
एफपीओ को सशक्त बनाकर किसानों को होगा लाभ कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ) बहुत महत्वपूर्ण है और सशक्त संगठन के रूप में उभर सकता है। प्रदेश में कई एफपीओ काम कर रहे हैं। मल्टी प्रोडक्ट एफपीओ हैं। इन एफपीओ ने किसानों को जोड़कर उनके उत्पादों का मूल्य संवर्धन, खाद्य प्रसंस्करण किया है। इन एफपीओ को और सशक्त करने का प्रयास जारी है। प्रयास कर रहे कि किस प्रकार इनको क्रेडिट, मशीनरी और तकनीक का एक्सेस दिला पाएं, जिससे यह अपने किसानों को उसका फायदा दें।
कृषि में महिलाओं की अहम भूमिका हमें किसान की आय में वृद्धि करनी है, 60 फीसदी से अधिक लोग कृषि से जुड़े हैं। महिलाओं का पारंपरिक कृषि में बहुत बड़ा योगदान रहा है। लेकिन आधी जनसंख्या की प्रतिभागिता को हम गिनते नहीं। कृषि में जो महिलाएं काम करती वह बीज बचाती थी, विविधिकरण करती थीं। घर के पास थोड़ी सी जगह मिल जाए तो मूली, गाजर, पालक बो देती हैं। हर मां चाहती खाने की थाली रंगीन और भरी हुई है। वॉटर कन्जर्वेशन उनसे अच्छा कोई नहीं जानता।
रासायनिक खाद के इस्तेमाल और फ्लड इरिगेशन से मिट्टी की क्षमता कमजोर हुई है। हमें संतुलित खाद के इस्तेमाल, प्राकृतिक खेती को अपनाकर इसे सुधारना होगा। गंगा बेल्ट के किनारे किसान प्राकृतिक खेती के लिए जुड़ रहे हैं। हमें बीज उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नीति लानी होगी। यह कहना है उत्तर प्रदेश की कृषि उत्पादन आयुक्त मोनिका एस गर्ग का। वह शनिवार को वाराणसी स्थित अंतरराष्ट्रीय चावल शोध संस्थान आईं और प्रदेश में खाद संकट, प्राकृतिक खेती, एफपीओ योजना समेत विभिन्न विषयों पर खास बातचीत की। पेश है बातचीत के मुख्य अंश… अमर उजाला गांव जंक्शन नेशनल सीड कांग्रेस का सहयोगी है।
गंगा किनारे रसायन मुक्त खेती
कृषि उत्पादन आयुक्त ने कहा कि नमामी गंगे परियोजना के अंतर्गत हम गंगा किनारे रसायन मुक्त खेती का प्रयास कर रहे हैं। इससे काफी किसान जुड़ेंगे। केंद्र ने प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने की बात की है उसके लिए कार्ययोजना बनाई जा रही है। इतने सालों से जो रासायनिक खाद का इस्तेमाल हुआ, फ्लड इरिगेशन किया गया, इससे मृदा में जीवाश्म की कमी हुई, मृदा की क्षमता क्षीण हो गई है। हम प्रयास कर रहे कैसे संतुलित खाद इस्तेमाल किया जाए, जिससे उत्पादन भी कम न हो। पहले हमें बाहर से अनाज मंगाना पड़ता था, आज अपना अनाज खुद पैदा कर लेते हैं। हम चाहते हैं कि हमेशा पर्याप्त अनाज अपने लिए पैदा करें जो स्वास्थ्यवर्धक हो। इससे किसान के साथ उपभोक्ता का भी फायदा होगा, आम नागरिक को सभी पोषक तत्वों से युक्त खाना मिल पाएगा। प्रदेश सरकार इस दिशा में कई प्रयास कर रही है।
पारंपरिक खेती के साथ तकनीक को जोड़ना जरूरी मृदा परीक्षण पर जोर देने के साथ इस काम में महिलाओं की सहभागिता बढ़ाई जा रही है। सात हजार कृषि सखियों का प्रशिक्षण कराया गया है। उनको अब हमने मृदा परीक्षण का प्रशिक्षण दिया है। यह किसानों के लिए फायदेमेंद होगा। वह संतुलित उर्वरक का इस्तेमाल करेंगे जिससे उत्पादन क्षमता बढ़ेगी और मृदा का नुकसान नहीं होगा। कुछ लोगों ने ऐसी तकनीक बनाई है जिससे डीएपी की जरूरत एक तिहाई या आधी हो गई है। हमें ऐसी तकनीक को इस्तेमाल करेंगे। प्राकृतिक खेती हमारा पारंपरिक ज्ञान है जिसके साथ नई तकनीक का इस्तेमाल करते हुए रसायनमुक्त खेती करनी होगी। इसकी कार्ययोजना जल्द ही केंद्र की गाइडलाइन और वैज्ञानिकों से बात करके तैयार करेंगे।