दुनियां – आखिरकार ड्रैगन क्यों पीछे हटा? LAC पर भारत की बड़ी सफलता के 5 कारण – #INA

भारत-चीन सीमा विवाद का समाधान धीरे-धीरे एक सकारात्मक दिशा में बढ़ रहा है. 2020 के बाद से पूर्वी लद्दाख में तनावपूर्ण हालात के बावजूद, दोनों देशों के बीच हुए समझौतों ने ड्रैगन को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. 21 अक्टूबर 2024 को भारत और चीन के बीच देपसांग और डेमचोक में तनाव समाप्त करने पर सहमति बनी. इसके बाद सीमा पर शांति बहाल करने की दिशा में भारत की रणनीति और मजबूती को दुनिया ने देखा. आइए जानते हैं, आखिर किन पांच वजहों से चीन को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा और भारत ने इस पूरे मुद्दे पर कैसे मजबूत नेतृत्व दिखाया.

सैन्य शक्ति और सीमा पर बेहतर बुनियादी ढांचाः भारत ने 2020 के बाद से सीमा पर अपनी सैन्य तैनाती में तेजी लाई. कोविड-19 जैसी वैश्विक चुनौती के बावजूद, भारतीय सेना ने पूर्वी लद्दाख में कड़े मुकाबले के लिए तत्परता दिखाई. इसके साथ ही सीमा पर रणनीतिक रूप से अहम सड़कों, पुलों और सुरंगों का निर्माण तेज हुआ. उमलिंगला पास रोड, अटल टनल, और सेला सुरंग जैसी परियोजनाओं ने भारत को उच्च हिमालयी इलाकों में बेहतर पहुंच और सैन्य आपूर्ति सुनिश्चित करने की क्षमता दी.
डिप्लोमेटिक प्रयासों की जीतः भारत ने बातचीत के माध्यम से विवाद सुलझाने की नीति अपनाई. 2020 के गलवान संघर्ष के बाद से मिलिट्री कमांडर (SHMC) स्तर की 21 बैठक और कूटनीतिक स्तर पर बनी वर्किंग मैकेनिज्म फॉर कंसल्टेशन एंड कोऑर्डिनेशन (WMCC) की 17 बैठक हुईं. तनाव चरम पर होने के वाबजूद दोनों देशों के बीच संवाद बनाए रखा गया. विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और रक्षा मंत्री ने अपने चीनी समकक्षों के साथ कई मुलाकातें कीं.
तीन अहम सिद्धांतों पर डटे रहनाः भारत ने स्पष्ट कर दिया कि सीमा पर शांति और स्थिरता के बिना द्विपक्षीय संबंध सामान्य नहीं हो सकते. भारत ने चीन के सामने तीन प्रमुख शर्तें रखीं: 1- दोनों पक्षों को वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) का सम्मान करना होगा. 2- स्थिति को एकतरफा बदलने की कोई भी कोशिश अस्वीकार्य होगी. 3- पिछले समझौतों और सहमतियों का पूर्ण पालन सुनिश्चित किया जाए. इन सिद्धांतों पर अडिग रहकर भारत ने अपनी स्थिति मजबूत रखी.
चीन की हरकतों का सटीक जवाबः 2020 में चीन द्वारा पूर्वी लद्दाख में सैनिकों की भारी तैनाती के जवाब में भारत ने भी तुरंत Mirror Deployment यानी बराबर की सैन्य तैनाती की. गलवान घाटी संघर्ष के बाद भारतीय सेना ने स्पष्ट संदेश दिया कि किसी भी प्रकार की घुसपैठ या उकसावे को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. भारतीय सैनिकों की साहसिक प्रतिक्रिया और गहरी रणनीतिक सोच ने चीन को अपने कदम पीछे खींचने पर मजबूर किया.
वैश्विक मंच पर भारत की भूमिकाः भारत ने चीन के साथ विवाद को सुलझाने में न केवल कूटनीति और सैन्य शक्ति का प्रयोग किया, बल्कि वैश्विक मंचों पर भी अपनी स्थिति मजबूत की. चीन के आक्रामक रवैये पर कड़ा रुख अपनाते हुए भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी बात रखी. ब्रिक्स सम्मेलन (कजान) के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बातचीत ने इस दिशा में बड़ा प्रभाव डाला. जी-20 शिखर सम्मेलन (रियो डी जेनेरियो) के समय दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की बातचीत में मोदी-जिनपिंग के फैसलों को तेजी से अमल करने पर सहमति बनी.

भारत ने दुनिया को क्या संदेश दिया?

इस पूरे मामले में भारत ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि वो न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा करने में सक्षम है बल्कि किसी भी दबाव के सामने झुकने वाला नहीं है. भारत ने यह दिखाया कि वह शांति का पक्षधर है लेकिन अपनी संप्रभुता और अखंडता पर कोई समझौता नहीं करेगा.
भारत की कूटनीति, सैन्य शक्ति और दृढ़ता के कारण ड्रैगन को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा. यह जीत सिर्फ सीमा पर शांति बहाल करने की नहीं है बल्कि यह भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा और नेतृत्व क्षमता का भी प्रमाण है. इससे दुनिया को यह संदेश मिला कि भारत अपनी सुरक्षा, संप्रभुता और वैश्विक हितों की रक्षा के लिए हमेशा तैयार है.

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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

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