देश- महाराष्ट्र: विदर्भ दौरे से पीएम मोदी क्या बीजेपी के दरकते दुर्ग को मजबूत कर पाएंगे?- #NA
पीएम मोदी विदर्भ के रण में उतरेंगे
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश दिन ब दिन बढ़ती जा रही है. विदर्भ का इलाका कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है. आपातकाल के बाद भी विदर्भ के लोगों ने कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा था. बीजेपी पिछले दस सालों में यहां अपनी सियासी जड़ें जमाने में कामयाब रही थी, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में उसका यह दुर्ग दरकता हुआ नजर आया. ऐसे में अब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के बिगड़े सियासी समीकरण को दुरुस्त करने के लिए पीएम मोदी विदर्भ के रण में उतर रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को महाराष्ट्र के वर्धा में एक बड़ी जनसभा को संबोधित करेंगे. पीएम मोदी ‘पीएम विश्वकर्मा’ कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे, जहां योजना के लाभार्थियों को प्रमाण पत्र और लोन जारी करेंगे. साथ ही विश्वकर्मा योजना के एक साल पूरे होने के अवसर पर एक स्मारक डाक टिकट भी पीएम जारी करेंगे. इसके अलावा पीएम मोदी आचार्य चाणक्य कौशल विकास योजना और पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होल्कर महिला स्टार्ट-अप योजना भी शुरू करेंगे.
PM कई योजनाओं का करेंगे शुभारंभ
कौशल विकास योजना के जरिए 15 से 45 साल के युवाओं को ट्रेनिंग दी जाएगी ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें. राज्य में करीब डेढ़ लाख युवाओं को हर साल मुफ्त कौशल विकास प्रशिक्षण मिलेगा. महिला स्टार्टअप योजना के तहत महाराष्ट्र में महिलाओं के नेतृत्व वाले स्टार्टअप की शुरुआती दौर में मदद की जाएगी. इस योजना के तहत 25 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता दी जाएगी. पीएम मोदी अमरावती में पीएम मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन एंड अपैरल (पीएम मित्र) पार्क की आधारशिला रखेंगे. इसे करीब 1000 एकड़ में बनाया जाएगा. भारत सरकार ने कपड़ा उद्योग के लिए 7 पीएम मित्र पार्क स्थापित करने की मंजूरी दी थी.
विदर्भ के रण में उतरेंगे पीएम
पीएम मोदी का वर्धा से विकास योजनाओं की सौगात और आधार शिला रखकर विदर्भ के सियासी समीकरण को साधने का प्लान है. पिछले दस सालों में भले ही बीजेपी ने विदर्भ के इलाके में बहुत अच्छा काम किया था, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से सियासी समीकरण बदल गए हैं. सोयाबीन और कपास की खेती करने वाले किसान सरकार से नाराज माने जा रहे हैं. लोकसभा चुनावों में बीजेपी के अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन को विदर्भ इलाके में धक्का लगा था जबकि कांग्रेस नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन को सियासी फायदा मिला है.
लोकसभा चुनाव में कैसा रहे विदर्भ के नतीजे
2024 आम चुनाव के नतीजे देखें तो विदर्भ इलाके की 10 लोकसभा सीटों में से बीजेपी को महज दो सीटें ही मिली तो कांग्रेस ने पांच सीटें जीती हैं. उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) ने एक और शरद पवार की एनसीपी (एस) ने एक सीट जीती है. बीजेपी के सहयोगी एकनाथ शिंदे की शिवसेना को सिर्फ एक सीट मिली थी. 2019 के लिहाज से कांग्रेस को 4 सीटों का लाभ हुआ जबकि बीजेपी को तीन सीटों और शिंदे की शिवसेना को 2 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा.
विदर्भ ने बढ़ाई बीजेपी की टेंशन
विदर्भ के इलाके ने बीजेपी के लिए सियासी टेंशन बढ़ा दी है और कांग्रेस के लिए उम्मीद की किरण जगा रही है. ऐसे में बीजेपी नेताओं के पार्टी छोड़ने का सिलसिला भी तेज हो गया है. विदर्भ के दिग्गज नेता गोपालदास अग्रवाल ने बीजेपी को छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया है. बीजेपी के लिए यह बड़ा झटका माना जा रहा है. यही वजह है कि पीएम मोदी ने खुद ही कमान संभाल ली है और वर्धा से जनता को साधने की कवायद की है, क्योंकि राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के आने के बाद ही बीजेपी ने अपना दबदबा जमाया था.
विदर्भ में बीजेपी का कैसा रहा प्रदर्शन
बीजेपी ने विदर्भ इलाके पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने के लिए यहां के जातीय समीकरण को भी अपने पक्ष में करने का काम किया था. इसका ही नतीजा था कि 2014 के विधानसभा चुनाव में विदर्भ के इलाके की कुल 62 विधानसभा सीटों में से बीजेपी 44 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. शिवसेना को 4, कांग्रेस को 10, एनसीपी को 1 और अन्य को 4 सीटें मिली थीं. इसके बाद 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने विदर्भ इलाके में 29 सीटें जीती थीं और शिवसेना ने 4 सीटें जीती थी. विदर्भ में कांग्रेस 15 सीटें तो एनसीपी 6 सीटें थी. इसके अलावा 8 सीटें अन्य ने जीती थी.
2019 के चुनाव में लगा झटका
विदर्भ के इलाके में बीजेपी को 2019 के विधानसभा चुनाव से ही झटका लग गया था, जब उसे 15 सीटों का नुकसान उठना पड़ा था. इसके बाद 2024 के लोकसभा चुनाव ने भी पार्टी को तगड़ा झटका दिया है. कांग्रेस दोबारा से अपनी खोई हुई सियासी जमीन हासिल करने में कामयाब होती दिख रही है. कांग्रेस का साथ छोड़कर मतदाता ही नहीं बल्कि नेता भी वापसी कर रहे हैं. यही वजह है कि बीजेपी के लिए दस साल से मजबूत बना विदर्भ का दुर्ग दरकने लगा है और बीजेपी के लिए सियासी टेंशन बढ़ा दी है.
कांग्रेस को हो रहा है मुनाफा
विदर्भ से आने वाले कांग्रेसी नेता हमेशा से दिल्ली के नेताओं के करीबी होने के लिए जाने जाते रहे हैं. जातीय और सियासी समीकरण का ख्याल रखते हुए कांग्रेस ने विदर्भ में अपनी जड़ें मजबूत की थी. विदर्भ ने महाराष्ट्र को मारोतराव कन्नमवार, वसंतराव नाइक और सुधाकरराव नाइक जैसे मुख्यमंत्री दिए थे. हालांकि, बदलते राजनीतिक समीकरण और 2014 में केंद्र की सत्ता से कांग्रेस के बेदखल होने के चलते विदर्भ ने कांग्रेस में आंतरिक संघर्ष बढ़ा और बीजेपी और शिवसेना ने इसका फायदा उठाया, लेकिन अब दोबारा से कांग्रेस फिर से अपने पुराने रंग में नजर आ रही है.
विदर्भ का सियासी महत्व
महाराष्ट्र की सियासत में विदर्भ का स्थान हमेशा महत्वपूर्ण रहा है. कांग्रेस के सियासी दबदबे के चलते बीजेपी को इस विदर्भ इलाके में अपनी जड़ें जमाने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा है. विदर्भ का सबसे बड़ा शहर नागपुर महाराष्ट्र की उपराजधानी है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय नागपुर में स्थित है. डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी नागपुर से आते हैं और प्रतिनिधित्व करते हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए विदर्भ की सियासी अहमियत को समझा जा सकता है, लेकिन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभाल रहे नाना पटोले भी इसी इलाके से आते हैं.
विदर्भ का समीकरण
विदर्भ की सियासत को किसान, दलित और आदिवासी मतदाता तय करते हैं. दलित वोट की भूमिका विदर्भ में दलित समुदाय की बड़ी आबादी है और जीत हार में अहम भूमिका मानी जाती है. महाराष्ट्र में अंबेडकरवादियों की कई पार्टियां हैं और उनका बड़ा आधार विदर्भ इलाके में है. रामदास अठावले की पार्टी आरपीआई बीजेपी के साथ है.
विदर्भ की कई सीटों पर दलित मतदाता 23 फीसदी से लेकर 36 फीसदी तक है. अठावले को अपने साथ रखने का फायदा बीजेपी को मिलता रहा है, लेकिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी 2024 में संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर दलित समुदाय को अपने साथ जोड़ने में कामयाब रहे हैं. कांग्रेस ने इसी मुद्दे पर महाराष्ट्र चुनाव लड़ने का प्लान बनाया है, जिसके चलते बीजेपी के लिए विदर्भ का सियासी समीकरण अपने पक्ष में करने की चुनौती बढ़ गई है.
Copyright Disclaimer :- Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing., educational or personal use tips the balance in favor of fair use.
यह पोस्ट सबसे पहले टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम पर प्रकाशित हुआ , हमने टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम के सोंजन्य से आरएसएस फीड से इसको रिपब्लिश करा है, साथ में टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम का सोर्स लिंक दिया जा रहा है आप चाहें तो सोर्स लिंक से भी आर्टिकल पढ़ सकतें हैं
The post appeared first on टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम Source link