देश – पाकिस्तान में फिर तेजी से फैल रहा पोलियो, कई बच्चे पीड़ित; कैसे 10 साल पहले ही वायरस मुक्त हो गया था भारत – #INA

पाकिस्तान में इस वर्ष पोलियो के मामलों की संख्या बढ़कर 21 हो गई है। खैबर पख्तूनख्वा (केपी) प्रांत में भी पहला मामला दर्ज किया गया है। साथ ही सिंध और बलूचिस्तान में दो और बच्चों में इस बीमारी का पता चला है। ताजा मामलों में बलूचिस्तान के किला अब्दुल्लाह जिले में 15 महीने के एक बच्चे, कराची के केमारी जिले में तीन साल के एक बच्चे और केपी के मोहम्मद जिले में नौ महीने की बच्ची में पोलियो की पुष्टि हुई है। जहां भारत के पड़ोसी देश में पोलियो एक बार फिर से पैर पसार रहा है तो वहीं भारत 10 साल पहले ही खुद को पोलिया-मुक्त घोषित कर चुका है।

पोलियो वायरस मुख्य रूप से पांच साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है, खासकर उन बच्चों को जो कुपोषित हैं या जिन्हें टीकाकरण नहीं मिला है। यह बीमारी तंत्रिका तंत्र पर हमला करती है और लकवा या यहां तक कि मृत्यु का कारण बन सकती है। पोलियो का कोई इलाज नहीं है, लेकिन टीकाकरण सबसे प्रभावी तरीका है जिससे बच्चों को इस गंभीर बीमारी से बचाया जा सकता है। हालांकि पाकिस्तान सरकार पोलियो उन्मूलन के लिए कड़ी मेहनत कर रही है, लेकिन देश अभी भी पोलियो वायरस की चपेट में है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान दुनिया के दो ऐसे देश हैं, जहां पोलियो अभी भी स्थानिक है।

प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने 8 सितंबर को पोलियो उन्मूलन के लिए एक विशेष अभियान शुरू किया। इस अभियान के तहत 9 से 15 सितंबर तक घर-घर जाकर पांच साल से कम उम्र के करीब 3 करोड़ बच्चों को पोलियो टीके लगाए जाने के लिए 2,86,000 पोलियो कार्यकर्ता तैनात किए गए थे। पिछले महीने सिंध सरकार ने भी 10 दिवसीय टीकाकरण अभियान शुरू किया था। यह वायरस केवल तीन प्रांतों तक ही सीमित नहीं है। इस्लामाबाद ने भी 16 साल में अपना पहला पोलियो मामला दर्ज किया, जब नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के पोलियो क्षेत्रीय संदर्भ प्रयोगशाला ने 6 सितंबर को संघीय राजधानी के यूनियन काउंसिल रूरल 4 के एक बच्चे में वाइल्ड पोलियो वायरस टाइप 1 (WPV1) के रूप में बीमारी का पता लगाया। अब तक, बलूचिस्तान ने सबसे अधिक 14 पोलियो मामलों की सूचना दी है, जबकि सिंध में चार मामले दर्ज किए गए हैं। पंजाब, इस्लामाबाद और केपी ने अब तक एक-एक मामला दर्ज किया है।

भारत का पोलियो मुक्त बनने का सफर

पोलियो, जिसे पोलियोमायलाइटिस भी कहा जाता है, एक अत्यधिक संक्रामक बीमारी है जो पोलियोवायरस के कारण होती है। यह वायरस व्यक्ति के तंत्रिका तंत्र पर हमला करता है और ज्यादातर 5 साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है। गंभीर मामलों में, यह स्थायी विकलांगता या यहां तक कि मृत्यु का कारण भी बन सकता है। वायरस संक्रमित व्यक्ति के मल से दूषित पानी या भोजन के माध्यम से फैलता है, और फिर यह मुंह के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है।

पोलियो का इतिहास

पोलियो का इतिहास दुनिया भर में बेहद दर्दनाक और चुनौतीपूर्ण रहा है। 20वीं सदी के दौरान यह बीमारी दुनिया के कई हिस्सों में महामारी का रूप धारण कर चुकी थी। लाखों बच्चों को इस बीमारी के कारण विकलांगता का सामना करना पड़ा और कई की मौत भी हुई।

भारत में पोलियो की चुनौती

भारत में, 1980 और 1990 के दशक में पोलियो एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती थी। भारत जैसे विशाल और जनसंख्या बहुल देश में, जहां स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति में सुधार की आवश्यकता थी, पोलियो का उन्मूलन बेहद कठिन माना जाता था। 1980 के दशक के अंत तक, भारत में हर साल 50,000 से अधिक बच्चे पोलियो के कारण विकलांग हो रहे थे। खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में पोलियो के मामले बहुत अधिक थे।

पोलियो के खिलाफ लड़ाई

भारत सरकार ने पोलियो के खिलाफ एक मजबूत और विस्तृत अभियान की शुरुआत की। 1995 में, भारत में राष्ट्रीय पल्स पोलियो अभियान की शुरुआत की गई, जिसके अंतर्गत 5 साल से कम उम्र के सभी बच्चों को पोलियो की मौखिक वैक्सीन (ओपीवी) दी गई। इस अभियान को सफल बनाने के लिए देशभर में पोलियो टीकाकरण शिविर आयोजित किए गए और घर-घर जाकर टीकाकरण अभियान चलाया गया। स्वास्थ्यकर्मियों, आशा कार्यकर्ताओं, डॉक्टरों, और स्थानीय संगठनों ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

अंतर्राष्ट्रीय समर्थन

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), यूनिसेफ और रोटरी इंटरनेशनल जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने भारत को पोलियो मुक्त करने में महत्वपूर्ण समर्थन दिया। इन संगठनों ने धन, वैक्सीन और तकनीकी सहायता प्रदान की, जिससे इस अभियान को गति मिली।

भारत पोलियो-मुक्त कैसे बना?

भारत में पोलियो के खिलाफ चलाए गए टीकाकरण अभियानों की सफलता का परिणाम यह रहा कि 2011 के बाद देश में पोलियो का कोई नया मामला सामने नहीं आया। सबसे आखिरी पोलियो का मामला 13 जनवरी 2011 को पश्चिम बंगाल में दर्ज किया गया था। इसके बाद, लगातार तीन साल तक कोई मामला न आने के बाद, 27 मार्च 2014 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत को पोलियो मुक्त देश घोषित कर दिया।

भारत की पोलियो मुक्त बनने की तारीख

भारत को आधिकारिक तौर पर 27 मार्च 2014 को पोलियो मुक्त देश घोषित किया गया। यह दिन भारत के स्वास्थ्य इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ।

भारत के पोलियो मुक्त बनने के पीछे के प्रमुख कारण

राष्ट्रीय पल्स पोलियो अभियान: यह अभियान भारत में पोलियो के उन्मूलन का प्रमुख आधार रहा। हर साल लाखों स्वास्थ्यकर्मी घर-घर जाकर बच्चों को टीका देते थे।

सरकार और जनता का सहयोग: इस अभियान में सरकार के साथ-साथ आम जनता और मीडिया का भी भरपूर सहयोग मिला। जागरूकता अभियानों के माध्यम से लोगों को पोलियो की गंभीरता और टीकाकरण के महत्व के बारे में बताया गया।

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ, और रोटरी जैसे संगठनों ने इस अभियान में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

स्वास्थ्यकर्मियों का योगदान: देश के हर कोने, चाहे वह शहर हो या दूरदराज का ग्रामीण क्षेत्र, स्वास्थ्यकर्मियों ने बिना थके काम किया और पोलियो की वैक्सीन को बच्चों तक पहुंचाया।

चुनौतियां और संघर्ष

पोलियो मुक्त भारत का सपना आसान नहीं था। भारत के कई दूरस्थ क्षेत्रों में टीकाकरण अभियानों को चलाना चुनौतीपूर्ण था। इसके अलावा, कुछ समुदायों में पोलियो वैक्सीन को लेकर भ्रांतियां थीं। इन सभी चुनौतियों के बावजूद, सरकार और स्वास्थ्य संगठनों ने लगातार मेहनत की और लोगों को सही जानकारी दी।

पोलियो मुक्त भारत का भविष्य

भारत पोलियो मुक्त जरूर हो चुका है, लेकिन अभी भी इसे बनाए रखने के लिए सतर्कता बरतनी होगी। पड़ोसी देशों में अभी भी पोलियो के मामले सामने आते रहते हैं, इसलिए भारत में भी सीमावर्ती क्षेत्रों में विशेष ध्यान दिया जाता है। समय-समय पर पोलियो टीकाकरण अभियान अब भी चलते रहते हैं ताकि कोई भी बच्चा इस गंभीर बीमारी से वंचित न रहे।

भारत का पोलियो मुक्त बनना एक बड़ी उपलब्धि है, जिसे न केवल स्वास्थ्यकर्मियों और सरकार के प्रयासों का परिणाम माना जाना चाहिए, बल्कि आम जनता के सहयोग और जागरूकता का भी नतीजा है। यह साबित करता है कि जब सरकार, स्वास्थ्य संगठन और जनता मिलकर काम करें, तो किसी भी बीमारी को पराजित किया जा सकता है। पोलियो मुक्त भारत का यह सफर आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

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