देश- सरकार की योजनाओं का नहीं मिला फायदा, लोग मांगकर खाने को हैं मजबूर, भाजपा नेता बोले-‘इनकी पीढ़ी ही घूमती थी’- #NA
बंजारे की तरह रहे हैं लोग
तस्वीर में जो लोग दिखाई दे रहे हैं, ये सभी मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले के गर्रा गांव के मशीनटोला के रहने वाले हैं, जो छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में आकर मांग कर अपना जीवन यापन करने को मजबूर हैं. ये सभी लोग गुरुर मिर्रीटोला गांव के खाली मैदान में तंबू डालकर रह रहे हैं. इनका आरोप है कि इन्हें मध्य प्रदेश सरकार की किसी भी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है. उनका आरोप है कि उन्हें न तो आवास और न ही लाडली योजना का लाभ मिल रहा है. हालांकि, सभी का राशन कार्ड बनाया गया है.
राशन कार्ड के आधार पर तय किए गए अमाउंट पर इन्हें हर महीने राशन मिलता है, जिससे इन्हें अपना गुजर बसर करना मुश्किल हो जाता है. इसके अलावा दूसरी किसी योजना का फायदा इन्हें नहीं मिल रहा है. इसीलिए हर साल बालाघाट से अपना जीवन यापन करने के लिए यहां आ जाते हैं. ये लोग हारमोनियम बनाने का काम भी करते हैं. लोगों के दर-दर भटकने की ये तस्वीरें हकीकत बयान करने के लिए काफी हैं. ये सभी लोग चीख-चीखकर कह रहे हैं कि जो योजनाएं सरकार चलाती हैं, उसका क्रियान्वयन प्रशासन और जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा किस कदर किया जा रहा, ये साफ देखा जा सकता है.
इन परिवारों से 20 लोग डाले हुए है डेरा
यहां डेरा डालने वाले लोगों में दीक्षा यादव (43), सुनीता यादव (33) और सुरभि यादव (69) ने बताया कि वो सभी हारमोनियम सुधारने और मांगने का काम करते हैं. ये सभी हर साल यहां छत्तीसगढ़ से आते हैं और यहां अलग-अलग स्थानों में मांगकर जीवन यापन करते हैं. इन्होंने बताया कि शुक्रवार को दोपहर 4 बजे बालोद जिले के डौंडीलोहारा के सम्बलपुर गांव से ट्रक से लिफ्ट लेकर यहां पुरूर पहुंचे हैं. अगस्त महीने में ये सभी में छत्तीसगढ़ आये थे और संबलपुर के बाद पुरूर आये हैं. इनमें करीब 20 लोग हैं, जिसमें बच्चे भी हैं.
नहीं मिल रहा योजनाओं का लाभ
सुरेश यादव की माने तो उन्हें राशन कार्ड के अलावा अन्य किसी भी योजना का लाभ नहीं मिल रहा है, इसीलिए मांगकर खाने के लिए छत्तीसगढ़ आ जाते हैं. वहां के पूर्व विधायक गौरीशंकर बिसेन और अधिकारियों के पास कई बार गए, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. ये सभी भीख मांगकर जीवन यापन करने मजबूर हैं. रागिनी यादव ने बताया कि वो 9 वीं तक पढ़ी हैं. अपने भाई और भाभी के साथ यहां आई है. उनके माता-पिता बालाघाट में हैं. दो दिन बाद वो सभी यहां से बालाघाट चले जाएंगे.
मध्यप्रदेश सरकार से योजना का लाभ नहीं मिल रहा, इसीलिए यहां पेट भरने आये हैं. इनकी माने तो इन्हें लाडली योजना का भी लाभ नहीं मिल रहा है. सुरभि यादव की मानें तो वो यहां छत्तीसगढ़ ने करीबन 30 सालों से आ रही हैं. राजनांदगांव, बालोद, धमतरी क्षेत्र में घूम-घूमकर मांगकर खाते ही हैं. उन्हें बालाघाट में राशन कार्ड से 15-20 किलो चावल मिलता है, जिससे उनका गुजारा नहीं हो पाता. यहां आकर मांगकर खाते हैं. लाडली योजना का भी लाभ हमें नहीं मिला है. मेरे पति के मरने के बाद मुझे पेंशन भी नहीं मिल रही है. हमारे गांव के सरपंच से भी पूछ सकते हो.
प्रशासन से पता करवा लेता हूं
भाजपा के वरिष्ठ नेता बालाघाट के पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने बताया कि इनके जो पूर्वजों का स्वभाव था, वे दवाई बेचते थे, वाद्य यंत्र को सुधारते थे, इन्होंने कहा कि मामला संज्ञान में लाया है, प्रशासन को पता करवाने कहा जायेगा. इनकी पीढ़ी का मूल काम यही था, घूमने का. इनमें कुछ लोगों के घर भी बने है, भूखंड भी बंटा है. इनका क्या है, पता नही, मैं पता करवा लेता हूं.
वहीं बालाघाट कलेक्टर मृणाल मीणा ने कहा कि मामला संज्ञान में आया है, इसकी जांच कराई जाएगी कि ये कौन लोग हैं और क्यो यहां से जाते हैं? इससे संबंधित अधिकारियों को निर्देशित कर आगे की कार्यवाही की जाएगी.
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