देश- पटना के मनीष के हाथ-पैर में 20 नहीं 25 उंगलियां, अब ‘इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड’ में दर्ज होगा नाम- #NA
दशकों पहले एक फिल्म आई थी, जिसका नाम था- ‘दो आंखें बारह हाथ’. हालांकि यह केवल फिल्म का नाम था. बिहार की राजधानी पटना में एक ऐसा भी शख्स है, जिसकी दो आंखें भी हैं, दो हाथ और पैर भी हैं, लेकिन उसकी उंगलियां उतनी नहीं हैं, जितनी एक सामान्य इंसान की होती हैं. दरअसल, पटना के निवासी मनीष कुमार की इन उंगलियों की संख्या के कारण ही अब उनका नाम ‘इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड’ में शामिल होने जा रहा है. इसके लिए ‘इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड’ की तरफ से सूचना दे दी गई है.
पटना के कंकडबाग इलाके के निवासी मनीष कुमार के हाथ और पैरों को मिलाकर 20, 21 या 22 नहीं बल्कि पूरी 25 उंगलियां हैं. मनीष के दोनों हाथों में सात-सात उंगलियां हैं, जबकि उनके एक पैर में छह और दूसरे पैर में पांच उंगलियां हैं. मनीष अपनी इस अनोखी शारीरिक उपलब्धि को लेकर ही चर्चा में हैं. मनीष की लंबाई पांच फीट है.
मनीष को हुई काफी परेशानी
अपनी इस अनोखी शारीरिक बनावट के कारण चर्चित मनीष को काफी परेशानी का भी सामना करना पड़ा. मनीष कहते हैं कि मुझे कुदरत ने ऐसा बनाया, इसमें मेरा कोई कसूर नहीं है, लेकिन इसके कारण बचपन से अब तक काफी कुछ सहता आया हूं. जब स्कूल में पढ़ता था तो दोस्त बहुत चिढ़ाते थे और ताना मारते थे. एक सीमा तक मैं उनसे लड़ता रहा. बाद में मैंने दोस्तों के चिढ़ाने को स्वीकार कर लिया. हालांकि दोस्त भी इस बात को समझ गए और फिर उन्होंने मेरी मानसिक स्थिति को देखकर ताना मारना बंद कर दिया.
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मनीष के अन्य भाई-बहन बिलकुल सामान्य
दिलचस्प यह है कि मनीष दो भाई और एक बहन हैं. मनीष को छोड़कर बाकी सब सामान्य हैं. मनीष की मां सामान्य गृहिणी हैं, जबकि इनके पिता का छोटा सा व्यवसाय है. मनीष बताते हैं कि गया कॉलेज से इंटर करने के बाद उन्होंने सरकारी जॉब को लेकर कोशिश तो की, लेकिन सफल नहीं हुए. इसके बाद उन्होंने टाइपिंग सीखी और अपना रोजगार शुरू किया.
वरदान और अभिशाप दोनों हैं उंगलियां
कुदरत के द्वारा खुद को मिले अनोखे स्वरूप को मनीष अपने लिए अभिशाप के साथ ही वरदान भी मानते हैं. वह कहते हैं कि जब स्कूल में पढ़ता था तो सब ताने मारते थे. जब बड़ा हुआ तो वही उंगलियां मेरी पहचान बन गईं. लोगों के बीच में उंगलियों की ही चर्चा होती थी. इसी के कारण लोग पहचानने लगे. जब पढ़ाई पूरी हुई तो सरकारी नौकरी के लिए आवेदन किया, परीक्षा भी दी, लेकिन सफलता नहीं मिली. इसके बाद स्वरोजगार का निर्णय लिया.
नहीं मिली नौकरी, फिर शुरू किया स्वरोजगार
मनीष कहते हैं, जब मैंने स्वरोजगार करने का निर्णय लिया तो मेरे सामने शारीरिक बनावट के अनुसार सबसे बेहतर ऑप्शन टाइपिंग था. इसके लिए मैंने टाइपिंग सीखने का निर्णय लिया. हालांकि शुरू में मुझे टाइपिंग करने में बहुत दिक्कत होती थी. क्योंकि एक सामान्य मनुष्य के हाथों में दस उंगलियां होती हैं. उसी के अनुरूप टाइपिंग होती है, लेकिन मेरे दोनों हाथों में सात-सात उंगलियां हैं. टाइपिंग लेटर को टाइप करने में बहुत दिक्कत होती थी. फिर मैंने इसे चुनौती के रूप में लिया.
आज मैं टाइप करने में सक्षम हूं. कंकडबाग में ही टाइपिंग कार्य को करता हूं. हालांकि मेरी स्पीड आम लोगों की तुलना में थोड़ी कम है, लेकिन फिर भी मैं आराम से टाइप करने में सक्षम हूं. मनीष बताते हैं, मुझे एक दिक्कत जूते पहनने को लेकर दिक्कत होती है. इसलिए ज्यादातर मैं स्लीपर या सैंडल ही पहनता हूं. अपने रोजगार के अलावा एक वकील के यहां भी मैं टाइपिंग कार्य करता हूं. इससे भी मुझे कुछ पैसों की आमदनी हो जाती है.
ईश्वर ने जैसा बनाया, उसी में खुश
मनीष कहते हैं, जब मुझे ताना मारा जाता था, तब बहुत बुरा लगता था, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग मिले, जो मेरी हिम्मत को बढाते थे. वह कहते थे, तुम बहुत भाग्यशाली हो कि दोनों हाथों में इतनी उंगलियां हैं. वह यह भी कहते हैं, शुरू में तो बहुत बुरा लगता था, लेकिन जब ईश्वर ने इतना होने के बाद भी मुझे इतना दिया है तो मैं इसी में खुश हूं. मेरी सोच हमेशा बेहतर करने की और सकारात्मक रहने की रहती है.
खुद का व्यापार और टाइपिंग
अपने इस अनोखे स्वरूप के बावजूद मनीष ने हार नहीं मानी. उनका परिवार बेहद आम परिवार है और आर्थिक रूप से कमजोर भी है. अपनी दिव्यांगता के बावजूद भी आज मनीष के पास अपना खुद का एक छोटा सा व्यापार है. इसके साथ ही मनीष टाइपिंग का काम भी करते हैं. उनका कहना हैं कि आम इंसान की तुलना में मेरी स्पीड थोड़ी कम है, लेकिन मैं कर लेता हूं.
इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम!
मनीष कहते हैं, अपनी उंगलियों के बारे में बचपन से ही सुनता रहा था, लेकिन रिकॉर्ड बुक में नाम शामिल होगा, इसके बारे में कभी सोचा नहीं था. एक मित्र ने बताया कि यह एक रिकॉर्ड हो सकता है. फिर इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड टीम को इसकी जानकारी दी गयी. उन्होंने संपर्क किया और वीडियो और दस्तावेज मांगे, जो मैंने उपलब्ध करा दिया है. अब उनकी तरफ से भी जवाब में एक मेल आ गया है. कुछ और प्रक्रिया पूरी करनी है। इसके बाद उनका नाम इस रिकॉर्ड बुक में शामिल हो सकता है.
मनीष की है गुहार
एक सामान्य मनुष्य की तुलना में अलग मनीष ने अपने दम पर तो अपनी तकदीर को लिखने की पूरी कोशिश की है, लेकिन मनीष की एक गुहार भी है. वह कहते हैं, राज्य सरकार की नौकरी के लिए कई बार कोशिश किया लेकिन सफलता नहीं मिली. सरकार से मेरी गुहार है कि हम जैसों के लिए भी वह गंभीरता से सोचे ताकि हमें भी एक सामान्य जीवन में जीने में सुविधा हो.
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