दुर्गा पूजा से पहले संकट में हैं काशी में कारीगर, मिनी बंगाल के पंडांलों पर किसका खतरा मंडरा रहा है? #INA
Mini Bengal Durga Puja: एक समय ऐसा था जब वाराणसी को दुर्गा पूजा के मामले में ‘मिनी बंगाल’ कहा जाता था. यहां बहुत बड़ी संख्या में दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना होती थी. लेकिन समय के साथ पूजा की संख्या कम होती गई और यह केवल नाम के लिए ‘मिनी बंगाल’ रह गया है. हालांकि अब भी 520 स्थानों पर दुर्गा पूजा हो रही है लेकिन पहले की तरह उत्साह और धूमधाम में कमी महसूस की जा रही है. वाराणसी के कारीगर इस बार बहुत परेशान हैं. सबसे बड़ी परेशानी की बात ये है कि इस वर्ष दुर्गा पूजा के मूर्तिकारों के सामने कई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं. ये कारीगर जो सालों से देवी दुर्गा की मूर्तियों का निर्माण करते आ रहे हैं अब मिट्टी और नए आर्डरों की कमी के कारण संघर्ष कर रहे हैं.
मिट्टी की कमी और परमिशन की समस्याएं
मूर्ति बनाने वाले कारीगर बताते हैं कि अब उनके लिए पुराने दिन जैसे नहीं रहे. पहले जहां उन्हें मूर्ति बनाने के लिए पर्याप्त मात्रा में मिट्टी मिल जाती थी अब इसके लिए उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. मिट्टी की कमी के कारण मूर्तियों का निर्माण समय पर और गुणवत्ता के साथ करना मुश्किल हो गया है. इसके अलावा, पूजा पंडालों के लिए नए परमिशन मिलने में भी दिक्कतें आ रही हैं. काशी में दुर्गा पूजा की परंपरा बहुत पुरानी है लेकिन अब नए पूजा पंडालों को स्थापित करने की अनुमति नहीं दी जा रही है. इस कारण से मूर्तियों की मांग में भी कमी आ गई है जो कारीगरों की आय पर गहरा असर डाल रही है.
नई पीढ़ी का मूर्ति निर्माण से दूरी
मूर्ति बनाने वाले कारीगर अब अपनी अगली पीढ़ी को इस व्यवसाय में लाने से हिचकिचा रहे हैं. उनका कहना है कि पहले के दिनों में मूर्ति निर्माण एक लाभदायक काम था, लेकिन अब इसमें इतनी परेशानियां और प्रतिस्पर्धा है कि इसमें नई पीढ़ी को शामिल करना व्यावहारिक नहीं लगता. कारीगरों के अनुसार जब मिट्टी जैसी बुनियादी सामग्री उपलब्ध नहीं हो रही है और नए आर्डर भी नहीं मिल रहे हैं तो इसमें भविष्य देखने का कोई फायदा नहीं है. इसलिए वे अपनी संतानों को इस व्यवसाय से दूर रख रहे हैं ताकि वे कुछ और बेहतर करियर चुन सकें.
युवाओं के लिए कठिनाई
युवा मूर्तिकारों का कहना है कि इस व्यवसाय में बहुत अधिक प्रतिस्पर्धा हो गई है. पहले जहां पूजा पंडालों से उन्हें अच्छा मेहनताना मिलता था, अब वे उतनी राशि देने से कतरा रहे हैं. युवा कारीगरों के अनुसार पहले की तरह मूर्तियों की संख्या भी घट गई है. कारीगरों का कहना है कि पूजा पंडालों से मिलने वाला पैसा भी पहले की तुलना में कम हो गया है. इस कारण वे अब इस काम में कोई भविष्य नहीं देख रहे हैं और नई पीढ़ी को इस काम में नहीं आने दे रहे हैं.
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भविष्य की चुनौतियां
वर्तमान स्थिति को देखते हुए वाराणसी के मूर्तिकारों के सामने भविष्य की कई चुनौतियां हैं. एक ओर, मिट्टी की कमी और नए पंडालों की अनुमति न मिलने से वे आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं. दूसरी ओर, नई पीढ़ी का इस पेशे से दूरी बनाना इस परंपरा के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है. अगर इसी तरह की स्थिति बनी रही तो आने वाले समय में वाराणसी में दुर्गा पूजा की भव्यता और इस शिल्प के कारीगरों की संख्या में और भी कमी आ सकती है.
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वाराणसी में 520 दुर्गा प्रतिमाओं का निर्माण इस साल भी हो चुका है, लेकिन मूर्तिकारों के लिए यह समय काफी कठिन है. मिट्टी और नए आर्डरों की कमी के कारण वे संघर्ष कर रहे हैं. अगर प्रशासन और समाज इनके समर्थन में कदम नहीं उठाता तो यह परंपरा धीरे-धीरे विलुप्त हो सकती है. कारीगरों का कहना है कि वे अपने बच्चों को इस काम में नहीं लाना चाहते क्योंकि इसमें अब कोई भविष्य नहीं दिख रहा है.
रिपोर्ट: सुशांत मुखर्जी
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
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