देश- Kankali Mata temple: साल में एक दिन सीधी होती है मूर्ति की गर्दन, क्या है कंकाली माता मंदिर का रहस्य?- #NA
छत्तीसगढ़ कंकाली माता
राजस्थान में ऐतिहासिक कंकाली माता मंदिर में यूं तो साल भर श्रद्धालुओं की भीड़ मां के दर्शन करने आती है. हालांकि नवरात्रि के समय यहां की रौनक काफी बढ़ जाती है. यहां विशेष रुप से मातारानी को हलवा-पुआ-पुड़ी औरखीर का भोग लगाया जाता है. मंदिर में विराजमान प्रतिमा मां कालिका के विकराल रूप की है, जिस पर वह भगवान शिव पर सवार दिखाई देती है, लेकिन मातारानी के होने वाले अलग-अलग स्वरूपों के श्रृंगार के कारण प्रतिमा के असल रूप से लोग अनजान हैं. कंकाली माता मंदिर में स्थापित मां की मूर्ति की गर्दन साल में एक दिन सीधी हो जाती है
पौराणिक कथानुसार रक्तबीज नामक राक्षस का अंत करने के बाद भी महाकाली (मां कालिका) का क्रोध शांत नहीं हुआ, जिससे सभी दिव्य शक्तियां शांत नहीं हुआ थी तो मां के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव उनके चरणों में आकर लेट गए थे. इसी कथानुसार कंकाली माता मंदिर में मां कालिका के विकराल रूप की प्रतिमा स्थापित की गई. मंदिर के पुजारी ने बताया कि मंदिर की प्रतिमा 300 साल पहले बमोर गेट के पास स्थित पहाड़ी पर विराजमान थी.
श्रद्धालु दर्शन करने आते थे मंदिर
कई पीढ़ियों से ऐतिहासिक कंकाली माता मंदिर में सेवा-पूजा करने वाले परिवार के सदस्य और मंदिर पुजारी दुर्गापुरी गोस्वामी का कहना हैं कि पहाड़ी पर स्थित मंदिर तक जाने वाले दुर्गम रास्ते के कारण 100 फीट नीचे और करीब 300 मीटर दूरी पर खाली मैदान पर स्थापित करवा दिया गया था. मंदिर परिवार के ही पुजारी सुरजपूरी गोस्वामी ने बताया कि हरणाजति का स्थान साधु-महात्माओं की तपोस्थली हुआ करती, राजा-महाराजाओं के समय में पहाड़ी पर विराजमान मंदिर में श्रद्धालु दर्शन करने आते थे.
आस्था का रहा है प्रमुख केंद्र
मंदिर पुजारी व पुराने जानकार बताते है नागा साधुओं ने 1 हजार साल से पहले उक्त पहाड़ी को तपस्या स्थली बनाया था. शुरुआत में तो लोग बियावान जंगल की वजह से वहां नहीं आते, क्योंकि नागा साधुओं की तपोभूमि पर जाने की हिम्मत किसी मे नही होती थी, लेकिन धीरे धीरे उस श्रद्धालु दर्शन के लिए आने लगे थे. वर्तमान स्थान पर मंदिर की स्थापना के बाद से ही यह मंदिर टोंक की आस्था का प्रमुख केंद्र रहा हैं. जहां साल भर श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए निरंतर आते हैं.
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