देश – फिर से फाइटर जेट का इंजन बना रहा भारत, 'कावेरी' ने किया था निराश; केवल 5 देश ही कर पाते हैं ये काम – #INA
फाइटर जेट का इंजन बनाना बहुत मुश्किल काम है। इसके लिए मैकेनिकल, मेटलर्जिकल, और इलेक्ट्रिकल जैसी इंजीनियरिंग क्षेत्र में विशेषज्ञता की जरूरत होती है। भारत ने साल 1989 में कावेरी नाम का जेट इंजन विकसित करने की कोशिश की थी, लेकिन वह सफल नहीं रहा। 1990 के दशक में जब भारत आर्थिक सुधारों की दिशा में आगे बढ़ रहा था, परमाणु परीक्षण कर रहा था और वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति मजबूत कर रहा था, उसी समय देश के रक्षा प्रतिष्ठान ने एक स्वदेशी सैन्य जेट इंजन बनाने की दिशा में काम करना शुरू किया। इस इंजन का नाम ‘कावेरी’ रखा गया, जो दक्षिण भारत की एक प्रसिद्ध नदी के नाम पर आधारित है।
भारत का सपना- पूर्ण स्वदेशीकरण
भारत में स्वदेशीकरण एक बड़ा सपना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार और पूर्ववर्ती सरकारें इस सिद्धांत का पालन करती रही हैं कि देश में ही अत्याधुनिक तकनीकों का विकास किया जाए। सैन्य जेट इंजन बनाना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि यह एक बेहद जटिल प्रक्रिया है जिसे बनाने के लिए दशकों के अनुभव की आवश्यकता होती है।
दुनिया में सिर्फ पांच देश ही ऐसे हैं जो इस प्रकार के एडवांस इंजन बनाने की क्षमता रखते हैं। ये देश अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन हैं। यानी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के वीटो पावर रखने वाले स्थायी सदस्य ही अभी जेट इंजन बना पाते हैं। हाल ही में चीन ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए एक स्वदेशी इंजन के साथ लड़ाकू विमान का परीक्षण किया है, लेकिन अब तक वह रूस के उपकरणों पर निर्भर रहा है।
एलीट क्लब में शामिल होने की कोशिश
फाइनेंशियल टाइम्स (FT) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने भी इस एलीट क्लब में शामिल होने की कोशिश की, लेकिन वर्षों की रिसर्च और टेस्टिंग के बावजूद, कावेरी इंजन उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया। यह इंजन तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के लिए पर्याप्त थ्रस्ट देने में विफल रहा। अब भारत की योजना इस इंजन का इस्तेमाल भविष्य के मानव रहित हवाई वाहनों (UAV) में करने की है।
हालांकि, भारत का स्वदेशी सैन्य जेट इंजन बनाने का मिशन खत्म नहीं हुआ है। कावेरी इंजन से प्राप्त अनुभव और गलतियों से सीखे गए सबक अब नई संभावनाओं का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। भारत अब एक विश्वस्तरीय ‘मेड इन इंडिया’ जेट इंजन बनाने की दिशा में अग्रसर है, जिसमें एक पश्चिमी साझेदार की तकनीकी मदद से यह काम पूरा किया जाएगा।
इन तीन कंपनियों में मची है होड़
रिपोर्ट के मुताबिक, तीन प्रमुख कंपनियां इस महत्वपूर्ण कॉन्ट्रैक्ट के लिए भारत के साथ साझेदारी करने की दौड़ में शामिल हैं। ये कंपनियां अमेरिका की जनरल इलेक्ट्रिक, ब्रिटेन की रोल्स-रॉयस और फ्रांस की सफ्रान हैं। भारत के साथ यह सहयोग न केवल रक्षा उद्योग बल्कि नागरिक उद्योगों में भी एक लंबी साझेदारी का आधार बन सकता है।
यह निर्णय न केवल तकनीकी बल्कि भू-राजनीतिक महत्व भी रखता है, खासकर ऐसे समय में जब भारत की अंतरराष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं बढ़ रही हैं, चीन के साथ सैन्य टकराव बढ़ रहा है और अमेरिका के साथ उसका संबंध मजबूत हो रहा है। भारत के नए पांचवीं पीढ़ी के एडवांस लड़ाकू विमानों के लिए यह इंजन 2030 के दशक के मध्य तक तैयार होने की उम्मीद है।
चंद्रयान-3 के साथ रचा था इतिहास
भारत ने पिछले साल चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अपना बिना चालक वाला चंद्रयान-3 सफलतापूर्वक उतारा था, लेकिन अभी भी एक सक्षम और एडवांस सैन्य जेट इंजन विकसित करना उसके लिए एक बड़ी चुनौती है। विशेषज्ञों का मानना है कि बड़े और शक्तिशाली एयरलाइंस जेट इंजन बनाना भी बेहद जटिल है, जिसमें दशकों का ज्ञान और अनुभव शामिल होता है। वहीं एक सैन्य जेट इंजन के लिए यह चुनौती और भी बढ़ जाती है, क्योंकि इसमें अत्यधिक स्पीड और उच्च तापमान को सहने की क्षमता की आवश्यकता होती है।
1990 के दशक में कावेरी को विकसित करने के भारत के प्रयास ऐसे समय में हुए जब सोवियत संघ का विघटन हो गया था और सामरिक चुनौतियां भी बहुत गंभीर थीं। सोवियत संघ भारत का सबसे बड़ा सैन्य आपूर्तिकर्ता था। भारत अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम को लेकर वाशिंगटन के साथ भी विवाद में था और उसने फ्रांस जैसे वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं के साथ सैन्य संबंध विकसित करना शुरू कर दिया था। आज स्थिति बहुत अलग है। भारत ने अमेरिका के साथ समझौता कर लिया है और पिछले दो वर्षों में दोनों देशों ने रक्षा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाया है। भारतीय अधिकारियों ने 2030 के दशक के मध्य तक नियोजित जेट को भारतीय वायु सेना में शामिल करने की बात कही है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत किस कंपनी को इस महत्वाकांक्षी परियोजना का साझेदार चुनता है और कब तक यह स्वदेशी सैन्य जेट इंजन देश के रक्षा बलों के लिए उपलब्ध हो पाता है।
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