Bishnoi Samaj: सलमान खान के दुश्मन लॉरेंस बिश्नोई के समाज की कहानी, जानिए क्यों ऐसे हैं ये लोग… #INA
सलमान खान के कट्टर दुश्मन लॉरेंस बिश्नोई इन दिनों चर्चा में हैं, ऐसे में लोग उनके सरनेम यानी बिश्नोई समुदाय के बारे में जानने के लिए काफी उत्साहित हैं, आइए जानते हैं क्या है ये समुदाय. साल 1730 का वह दिन, जो जोधपुर के खेजड़ली गांव में इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया. एक वीर महिला, अमृता देवी बिश्नोई, ने अपने गांव के खेजड़ी के पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान की परवाह नहीं की. जब उन्हें यह पता चला कि मारवाड़ के महाराजा अभय सिंह के आदेश पर इन पेड़ों को काटा जाएगा, तो उन्होंने एक साहसी कदम उठाया.
अमृता देवी और बिश्नोई समाज
जब महाराजा के मंत्री गिरधर दास भंडारी गांव पहुंचे, अमृता देवी ने अपने गांव वालों के साथ मिलकर खेजड़ी के पेड़ों के चारों ओर घेरा बना लिया. उन्होंने कहा कि ये पेड़ बिश्नोई लोगों के लिए पवित्र हैं, और उनकी जान इन पेड़ों में बसी हुई है. खेजड़ी के पेड़ न केवल जीवनदायी हैं, बल्कि बिश्नोई संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं.
पेड़ों की रक्षा के लिए शहादत
जब कारिंदे अमृता देवी और अन्य ग्रामीणों को हटाने की कोशिश करने लगे, तो उन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर अपनी धरती और पेड़ों की रक्षा की. उनकी अंतिम बातें आज भी गूंजती हैं. “कटे हुए पेड़ से ज्यादा सस्ता है कटा हुआ सिर. इस संघर्ष में अमृता देवी की तीन बेटियों ने भी अपने प्राणों की आहुति दी. कुल मिलाकर, 363 लोग शहीद हुए, जो पर्यावरण की रक्षा के लिए अपनी जान दे रहे थे.
खेजड़ी के पेड़ों को नहीं काटा जाएगा
जब महाराजा को इस भयावह नरसंहार की खबर मिली, तो उन्होंने तुरंत अपना आदेश वापस लिया और कहा कि खेजड़ी के पेड़ों को नहीं काटा जाएगा. यह आदेश आज भी लागू है, और हर साल भादवा सुदी दशम को खेजड़ली गांव में बलिदान दिवस मनाया जाता है.
बिश्नोई समाज और उनका धर्म
बिश्नोई समुदाय, जो पश्चिमी थार रेगिस्तान और उत्तरी भारत में पाया जाता है, का इतिहास भी कम दिलचस्प नहीं है. इस समाज के संस्थापक, जांभोजी महाराज, को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है. बिश्नोई शब्द ‘विष्णोई’ से निकला है, जो पर्यावरण संरक्षण के लिए 29 नियमों का पालन करते हैं.
खेजड़ी के पेड़ का इम्पॉटेंट
खेजड़ी का पेड़, जिसे शमी वृक्ष भी कहा जाता है, राजस्थान के मरुस्थल में हरियाली बनाए रखने में इम्पॉटेंट रोल निभाता है. इसके फल, सांगरी, का उपयोग सब्जी बनाने में होता है, और इसकी पत्तियों से बकरियों को भोजन मिलता है. बिश्नोई समाज के लिए यह पेड़ सिर्फ एक वृक्ष नहीं, बल्कि एक पवित्र जीवन का प्रतीक है.
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