देश- अखिलेश यादव की छोड़ी सीट के उपचुनाव का ट्रेंड, क्या करहल में तेज प्रताप यादव की बढ़ा रहा टेंशन?- #NA
सीएम योगी, सपा प्रमुख अखिलेश यादव
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले की करहल विधानसभा उपचुनाव पर सभी की निगाहें लगी हुई है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव के इस्तीफे से खाली हुई करहल सीट पर मुलायम परिवार के दो सियासी धुरंधरों के बीच मुकाबला है. सपा से तेज प्रताप यादव चुनावी मैदान में उतरे हैं, जो मुलायम सिंह यादव के पोते और बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव के दमाद है. बीजेपी से अनुजेश प्रताप यादव ताल ठोक रहे हैं, जो मुलायम सिंह यादव के दमाद और सपा सांसद धर्मेंद्र यादव के सगे बहनोई हैं. ऐसे में करहल सीट भले ही सुलझी लग रही है, लेकिन यहां के सियासी समीकरण उतने ही उलझे हुए हैं.
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने साल 2022 में पहली बार विधानसभा का चुनाव करहल सीट से लड़ा था और जीत दर्ज कर विधायक चुने गए थे. 2024 में कन्नौज से सांसद बनने के बाद उन्होंने करहल विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था. इस तरह अखिलेश ने अपने सियासी इतिहास में तीन बार लोकसभा सीट से और एक बार विधानसभा सीट से इस्तीफा दिया है. ऐसे में अखिलेश यादव के इस्तीफे वाली सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे सपा के खिलाफ रहे हैं तो विपक्षी दलों के लिए मुफीद साबित हुए हैं. उपचुनाव के ट्रैक रिकॉर्ड के चलते करहल सीट पर तेज प्रताप यादव की सियासी टेंशन बढ़ती हुई दिख रही है.
कन्नौज से शुरू सियासी पारी का आगाज
अखिलेश यादव ने 25 साल पहले अपनी सियासी पारी का आगाज किया था. मुलायम सिंह यादव साल 1999 के लोकसभा चुनाव में संभल और कन्नौज दो संसदीय सीटों से चुनावी मैदान में उतरे थे. दोनों ही सीटों से वो जीतने में कामयाब रहे, जिसके बाद उन्होंने संभल सीट को अपने पास रखा था और कन्नौज सीट छोड़ दी थी. मुलायम सिंह के इस्तीफे से खाली कन्नौज लोकसभा सीट से अखिलेश यादव ने अपनी सियासी पारी का आगाज किया था. 2000 में अखिलेश यादव कन्नौज लोकसभा उपचुनाव जीतकर पहली बार देश की संसद में पहुंचे थे और 2004 में दूसरी बार कन्नौज से ही सांसद बने.
फिरोजाबाद उपचुनाव में हुई हार
साल 2009 में अखिलेश यादव ने कन्नौज और फिरोजाबाद दो लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था और दोनों सीटों से जीतने में सफल रहे. इसके बाद उन्होंने फिरोजाबाद सीट छोड़ी थी. अखिलेश के इस्तीफे से खाली हुई फिरोजाबाद सीट पर उन्होंने अपनी पत्नी डिंपल यादव को उपचुनाव लड़ाया था. डिंपल यादव ने फिरोजाबाद सीट से सियासी डेब्यू किया था, लेकिन उनके खिलाफ कांग्रेस ने राज बब्बर को उतारा था. डिपंल यादव को जिताने के लिए सपा और अखिलेश यादव सहित मुलायम परिवार ने पूरी ताकत झोंक दी थी, उसके बाद भी जीत नहीं सकी. कांग्रेस प्रत्याशी राज बब्बर को 3,12,728 वोट मिले थे तो सपा की डिंपल यादव को 2,27,385 से संतोष करना पड़ा. राज बब्बर ने 85,343 वोटों से डिंपल को हराया था.
डिंपल यादव निर्विरोध चुनी गई
अखिलेश यादव ने साल 2012 में यूपी के मुख्यमंत्री बनने के बाद कन्नौज लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद कन्नौज लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुए थे, सपा से डिंपल यादव को उतारा गया था. मुलायम सिंह डिंपल की उपचुनाव हारने की आशंका से बहुत डरे हुए थे. ऐसे में सपा ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था. सपा को यह पता था कि बसपा उपचुनाव लड़ती नहीं है. ऐसे में मुलायम को उस तरफ से कोई खतरा नहीं था, लेकिन एक छोटी पार्टी और निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में थे. बीजेपी से सुब्रत पाठक को उपचुनाव में टिकट दिया गया था. बीजेपी प्रत्याशी सुब्रत पाठक नामांकन नहीं कर सके और जिन निर्दलीय प्रत्याशियों के नामांकन वापस करा लिए. इस तरह से कन्नौज में वोटिंग की स्थिति नहीं बन सकी और डिंपल यादव निर्विरोध चुनी गई.
आजमगढ़ उपचुनाव में हुई हार
अखिलेश यादव ने तीसरी बार इस्तीफा 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद आजमगढ़ लोकसभा सीट से इस्तीफा दिया था. 2019 में अखिलेश आजमगढ़ लोकसभा सीट से सांसद चुने गए थे, लेकिन 2022 में करहल से विधायक बनने के बाद आजमगढ़ लोकसभा सीट की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद आजमगढ़ से उपचुनाव में सपा के टिकट पर धर्मेंद्र यादव चुनाव लड़े थे और बीजेपी से दिनेश लाल निरहुआ किस्मत आजमा रहे थे. धर्मेंद्र यादव के लिए सपा ने पूरी ताकत झोंक दी थी. इसके बाद भी सपा नहीं जीत सकी. बीजेपी के निरहुआ ने 312,768 वोट पाए थे तो धर्मेंद्र यादव को 3,04,089 वोट मिले थे. बीजेपी ने सपा को 8,679 वोटों से उपचुनाव हराया था.
तेज प्रताप यादव की बढ़ रही टेंशन
सपा प्रमुख अखिलेश यादव के तीन बार सीट छोड़ने के बाद एक बार ही सपा जीत सकी है और उसे दो हार का मूंह देखना पड़ा है. सपा को जीत साल 2012 में तब मिली थी जब अखिलेश यादव यूपी के मुख्यमंत्री थे और बीजेपी प्रत्याशी नामांकन दाखिल नहीं कर सका था. सपा जब सत्ता में नहीं थी तब अखिलेश के सीट छोड़ने पर उनके सियासी वारिस के तौर पर उपचुनाव लड़ने वाले कैंडिडेट को मात खानी पड़ी है. उपचुनाव में सपा के हारने का ट्रेंड तेज प्रताप यादव के लिए टेंशन जरूर बढ़ा रहा है, लेकिन करहल के सियासी समीकरण उसके पक्ष में माने जा रहे हैं.
बीजेपी और सपा में सीधी टक्कर
करहल विधानसभा सीट यादव बहुल मानी जाती है. बीजेपी और सपा दोनों ने यादव समुदाय से कैंडिडेट उतारे हैं तो बसपा ने अविनाश शाक्य पर दांव खेलकर मुकाबले को रोचक बना दिया है. सपा यूपी की सत्ता से बाहर है और बीजेपी ने करहल सीट जीतने के लिए 2002 का सियासी दांव चला है. बीजेपी ने करहल सीट एक बार ही जीती है, जब उसने यादव समाज से प्रत्याशी उतारा था. अब फिर से उसी फार्मूले को आजमाया है. तेज प्रताप के खिलाफ अनुजेश यादव को उतारा है. इस तरह से करहल का मुकाबला चर्चा का विषय बना हुआ है.
करहल सीट का सियासी समीकरण
करहल सीट का जातीय समीकरण देखें तो सबसे ज्यादा यादव वोटर हैं, उसके बाद शाक्य, बघेल और ठाकुर मतदाता है. सवा लाख के करीब यादव समुदाय का वोट है तो दलित समाज 40 हजार और शाक्य समुदाय के 38 हजार वोट हैं. पाल और ठाकुर समुदाय के 30-30 हजार वोटर हैं तो मुस्लिम वोटर 20 हजार हैं. ब्राह्मण-लोध-वैश्य समाज के वोटर 15-15 हजार के करीब हैं. उपचुनाव में अखिलेश के गढ़ को भेदने के लिए बीजेपी ने यादव उम्मीदवार ही नहीं उतारा बल्कि मुलायम परिवार के दामाद पर दांव खेल दिया.
करहल सीट पर अगर यादव वोटों का बिखराव होता है तो सपा के लिए करहल में जीतना मुश्किल हो जाएगा. यादव और मुस्लिम के साथ पीडीए समीकरण के सहारे जीत का वर्चस्व सपा बनाए रखना चाहती है तो बीजेपी की नजर सवर्ण वोटरों के साथ शाक्य और यादव वोटों को भी अपने साथ जोड़ने की है. ऐसे में करहल का मुकाबला काफी कड़ा माना जा रहा है.
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