देश- महाराष्ट्र में पिछली बार से कम सीटों पर ओवैसी लड़ रहे चुनाव, क्या बीजेपी की B-टीम का टैग कर रहा परेशान- #NA

असदुद्दीन ओवैसी

मुस्लिम वोटों के सहारे असदुद्दीन ओवैसी अपनी पार्टी AIMIM को हैदराबाद से चार मिनार के दायरे से निकालकर राष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलाने की कवायद में जुटे हुए हैं. इस मिशन के तहत ओवैसी ने हैदराबाद से बाहर पहली बार महाराष्ट्र में किस्मत आजमाई. ओवैसी अपने पहले प्रयास में ही महाराष्ट्र की दो सीटें जीतने में कामयाब रही और एक लोकसभा सीट भी अपने नाम कर ली. इस तरह महाराष्ट्र को अपनी सियासत की नई प्रयोगशाला के तौर पर स्थापित कर रहे थे, लेकिन इस बार ओवैसी ने अपना दामन जरा समेट लिया है और पिछली बार से कम सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं.

महाराष्ट्र की कुल 288 विधानसभा सीटों में से असदुद्दीन ओवैसी ने 14 सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के टिकट पर सिर्फ 14 प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे हैं. 2019 के चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी ने 44 सीट पर अपने प्रत्याशी उतारा थे तो 2014 चुनाव में AIMIM ने 24 सीट पर चुनाव लड़ी थी. इस तरह पिछले दो चुनाव की तुलना में AIMIM सिर्फ 14 सीट पर उम्मीदवार उतारे हैं, जिसे लेकर सवाल उठने लगे हैं कि आखिर क्या वजह है कि ओवैसी इस बार इतनी कम सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं?

ओवैसी ने उतारे 14 सीट पर कैंडिडेट

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के टिकट पर जिन 14 विधानसभा सीट पर उम्मीदवार उतारे हैं, उसमें औरंगाबाद पूर्व से पूर्व सांसद सैयद इम्तियाज जलील को प्रत्याशी बनाया है. औरंगाबाद सेंट्रल से नासिर सिद्दीकी, धुले शहर से फारूक शाह अनवर, मालेगांव मध्य से मुफ्ती इस्माइल कासमी, भिवंडी पश्चिम सीट से वारिस पठान, भायखला से फैयाज अहमद खान, मुंब्रा कलवा से सैफ पठान, वर्सोवा से रईस लश्करिया, सोलापुर से फारूक शबदी, मिराज (एससी) से महेश कांबले, मुर्तिजापुर (एससी) से सम्राट सुरवाड़े, कारंजा मनोरा से मोहम्मद यूसुफ, नांदेड दक्षिण से सैयद मोइन और कुर्ला (एससी) से बबीता कनाडे को चुनावी मैदान में उतारा है.

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महाराष्ट्र में मुस्लिम-दलित पर दांव

असदुद्दीन ओवैसी ने महाराष्ट्र चुनाव में जिस तरह से उम्मीदवार उतारे हैं, उससे समझा जा सकता है कि उनका सियासी मकसद किन वोटों पर है. ओवैसी ने अपने 14 प्रत्याशियों में 11 मुस्लिम और तीन दलित प्रत्याशी उतारे हैं. इस तरह ओवैसी का फोकस दलित और मुस्लिम वोटबैंक पर है. महाराष्ट्र में 13 फीसदी दलित और 12 फीसदी मुस्लिम आबादी है. इन दोनों समुदाय के सहारे सत्ता पर काबिज होने के लिए कई राजनीतिक दलों के द्वारा आजमाइश की है.

दलित-मुस्लिम एकजुट करने के लिए अब तक कई नेताओं ने कोशिशें की, लेकिन कोई भी इसे धरातल पर नहीं उतार सका है. ऐसे में असदुद्दीन ओवैसी महाराष्ट्र में इसी फॉर्मूले के जरिए प्रकाश अंबेडकर से 2019 के लोकसभा चुनाव में हाथ मिलाया था, लेकिन इस बार ओवैसी अपने दम पर दलित मुस्लिम समीकरण साधने की कवायद में है. ओवैसी ने उन्हीं सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं, जहां पर मुस्लिम मतदाता 30 फीसदी से ज्यादा है. ओवैसी को यह बात बखूबी तरीके से पता है कि मुस्लिम वोट के दम पर ही अपनी सियासी जगह बना सकते हैं और उसका ही नैरेटिव सेट कर रहे हैं.

महाराष्ट्र में मुस्लिम सियासत

महाराष्ट्र में 12 फीसदी मुस्लिम मतदाता काफी अहम माने जाते है. महाराष्ट्र के उत्तरी कोंकण, मराठवाड़ा, मुंबई बेल्ट और पश्चिमी विदर्भ में मुसलमान मतदाता सियासी दलों का सियासी भविष्य बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. इस तरह राज्य में करीब 45 विधानसभा मुस्लिम वोटर अहम हैं, जिसमें मुंबई की सीटें शामिल हैं. पिछली बार 10 मुस्लिम विधायक चुनाव जीते थे, जिनमें तीन कांग्रेस, 2 एनसीपी, 2 सपा, 2 एआईएमआईएम और 1 शिवसेना का विधायक भी शामिल है.

ओवैसी ने क्यों उतारे कम प्रत्याशी

ओवैसी महाराष्ट्र की सियासत में मुस्लिमों को वैकल्पिक नेतृत्व देने की कवायद में हैं. ऐसे में ओवैसी अक्सर संसद से सड़क तक मुसलमानों से जुड़े मुद्दों को प्रमुख रूप से उठाते नजर आते हैं.मुस्लिम प्रतिनिधित्व को लेकर मुस्लिम समुदाय के बीच अपनी पैठ जमाना चाहते हैं और महाराष्ट्र में यही एजेंडा सेट कर रहे हैं ताकि मुस्लिमों के बीच अपनी पैठ मजबूती से बना सके. इसके लिए 2014 से ही ओवैसी प्रयास कर रहे हैं. AIMIM ने 2014 में 24 सीट पर लड़कर दो सीटें जीती थी और 2019 में 44 सीटें लड़कर दो सीटें जीतने में कामयाब रहे. 2019 के लोकसभा चुनाव में औरंगाबाद जैसी सीट ओवैसी ने जीत दर्ज कर सभी को चौंका दिया था. ऐसे में आखिर क्या हुआ कि इस बार ओवैसी ने सिर्फ 14 सीट पर ही प्रत्याशी उतारे हैं.

बीजेपी की बी-टीम का लगा टैग

असदुद्दीन ओवैसी की मुस्लिम सियासत को लेकर कांग्रेस सहित सपा जैसी पार्टियां सवाल उठाती रही हैं. इतना ही नहीं ओवैसी पर बीजेपी की बी-टीम के तौर पर काम करने का आरोप भी लगते रहे हैं. इसके जरिए यह संदेश देने की कोशिश की जाती थी कि ओवैसी चुनाव लड़कर बीजेपी को जिताने का काम करते हैं. कांग्रेस और सपा जैसी तथाकथित सेकुलर पार्टियों के इस नैरेटिव के चलते मुसलमानों के मन में ओवैसी को लेकर एक संदेह पैदा हो गया है, जिसके चलते मुस्लिम समुदाय का वोट उनके साथ नहीं जुड़ रहा.

2024 में इम्तियाज जलील को हार का भी सामना करना पड़ा है. यही वजह है कि ओवैसी अब ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने के बजाय उन्हीं सीटों का सेलेक्शन किया है, जहां पर उन्हें अपनी जीत की ज्यादा संभावना दिख रही है. माना जा रहा है कि बहुत ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने के बजाय सेलेक्टेड सीटों पर ही चुनाव लड़ रहे और बाकी सीटें महा विकास अघाड़ी के घटक दलों के लिए छोड़ दी है. इस तरह ओवैसी के कम सीटों पर चुनाव लड़ने से बीजेपी के लिए सियासी टेंशन बढ़ सकती है.

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