देश- झारखंड में NDA उम्मीदवारों के लिए कैंपेन क्यों नहीं कर रहे नीतीश? लालू, तेजस्वी और चिराग ने झोंकी ताकत- #NA

झारखंड चुनाव से गायब क्यों हैं नीतीश?

लालू यादव से लेकर चिराग पासवान तक और तेजस्वी यादव से लेकर दीपांकर भट्टाचार्य तक…बिहार से आने वाले कई बड़े नेताओं ने झारखंड चुनाव में पूरी ताकत झोंक रखी है. अपने उम्मीदवारों के लिए लगातार कैंपेन कर रहे हैं, लेकिन इन सब नामों में एक नाम ऐसा भी है, जो पूरे सियासी परिदृश्य से गायब हैं. वो नाम है बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का.

नीतीश कुमार के गायब होने की चर्चा इसलिए भी हो रही है, क्योंकि उनकी पार्टी झारखंड की दो विधानसभा सीटों पर एनडीए गठबंधन के तहत चुनाव लड़ रही है. ऐसे में नीतीश का कैंपेन न करना सियासी सुर्खियों में है.

झारखंड की सियासत में बिहार का प्रभाव

साल 2000 में बिहार से अलग होकर गठित झारखंड में अभी भी बिहार का प्रभाव है. करीब 20 प्रतिशत वोटर्स बिहार से ताल्लुकात रखते हैं. झारखंड चुनाव में यह हर बार मुद्दा भी बनता है.

बिहार के चतरा, रांची, धनबाद, बोकारो जैसे शहर में बिहार से ताल्लुक रखने वाले वोटर्स काफी प्रभावी हैं. यही वजह है कि बिहार की पार्टियां झारखंड में मजबूती से चुनाव लड़ती है. इस बार भी आरजेडी, जेडीयू और लोजपा (आर) झारखंड के मुख्य मुकाबले में है.

आरजेडी कांग्रेस के साथ इंडिया गठबंधन में है तो जेडीयू और लोजपा (आर) बीजेपी के साथ एनडीए गठबंधन में.

लालू-तेजस्वी और चिराग लगातार जुटे

लालू यादव और तेजस्वी यादव आरेजडी उम्मीदवारों के लिए लगातार कैंपेन कर रहे हैं. कोडरमा में लालू यादव की रैली की खूब चर्चा भी हो रही है. तेजस्वी आरजेडी के साथ-साथ जेएमएम और कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए भी रैली कर रहे हैं.

दूसरी तरफ चिराग पासवान लोजपा (आर) के साथ-साथ बीजेपी उम्मीदवारों के मोर्चा थामे हुए है. दीपांकर माले तो नित्यानंद राय बीजेपी उम्मीदवारों के लिए रैली कर रहे हैं.

फिर नीतीश क्यों नहीं कर रहे हैं कैंपेन?

पहली वजह- JDU को सिर्फ प्रतीकात्मक भागीदारी मिली

झारखंड में चुनाव से पहले नीतीश कुमार की पार्टी कम से कम एक दर्जन सीटों पर लड़ने को तैयार थी. पार्टी को 2005 में विधानसभा की 6 सीटों पर जीत मिली थी. जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष खीरू महतो ने 12 सीटों की दावेदारी भी नीतीश कुमार को सौंप दी थी, लेकिन जेडीयू को मिली सिर्फ 2 सीट.

खीरू महतो के लिए भी बीजेपी ने टुंडी की सीट नहीं छोड़ी. महतो इस सीट से अपने बेटे को लड़ाना चाहते थे. जेडीयू के लिए जो 2 सीटें छोड़ी गई, उनमें एक सरयू राय की है. सरयू राय 2019 में निर्दलीय ही जीत गए थे. यानी जेडीयू को समझौते के तहत सिर्फ एक सीट लड़ने को मिली है.

कहा जा रहा है कि प्रतीकात्मक भागीदारी की वजह से ही नीतीश कुमार ने झारखंड चुनाव के प्रचार से दूरी बना ली.

दूसरी वजह- पड़ोसी राज्य, विकास-योजना का मुद्दा बनता

झारखंड में वर्तमान में मंईयां सम्मान योजना, पेंशन और विकास मुद्दा है. इसके अलावा विपक्ष घुसपैठ और मुस्लिम तुष्टिकरण को भी मुद्दा बनाने की कवायद में जुटी है. नीतीश कुमार अगर प्रचार करने झारखंड जाते तो पूरे चुनाव का नैरेटिव बिहार बनाम झारखंड का हो सकता था.

मसलन, बिहार में सामाजिक पेंशन 400 रुपए प्रतिमाह मिलती है, जबकि यह राशि झारखंड में 600 रुपए की है. झारखंड में महिलाओं को 1000 रुपए प्रतिमाह सम्मान राशि के रूप में दी जा रही है. बिहार में नीतीश सरकार महिलाओं के लिए ऐसी कोई योजना नहीं है.

इतना ही नहीं, घुसपैठ और तुष्टिकरण का मुद्दा भी झारखंड में नीतीश के आने से कमजोर हो सकता था. नीतीश की पार्टी सेक्युलरिज्म को तरजीह देती है. ऐसे में नीतीश ने पूरे चुनाव से ही दूरी बना ली है.

तीसरी वजह- JDU उम्मीदवारों के लिए शाह ने संभाली कमान

नीतीश कुमार की पार्टी से सरयू राय जमशेदपुर पश्चिमी और राजा पीटर तमाड़ से चुनाव लड़ रहे हैं. दोनों ही जगहों पर अमित शाह ने रैली की. शाह ने दोनों ही रैलियों में एक ही अपील की. इस अपील में शाह ने कहा कि आप अगर जेडीयू उम्मीदवार को वोट करते हैं तो यह वोट सीधा नरेंद्र मोदी को जाएगा.

जमशेदपुर पश्चिमी और तमाड़ में बीजेपी का बड़ा जनाधार है. ऐसे में बीजेपी के वोटों की वजह से दोनों ही सीटों पर जेडीयू के प्रत्याशी मुख्य मुकाबले में है. जमशेदपुर पश्चिमी में अभी कांग्रेस तो तमाड़ में झारखंड मुक्ति मोर्चा का कब्जा है.

झारखंड की 81 सीटों पर दो चरणों में चुनाव

झारखंड में विधानसभा की 81 सीटों पर दो चरणों में चुनाव प्रस्तावित है. 13 नवंबर को विधानसभा की 43 सीटों पर चुनाव कराए जाएंगे. बाकी की बची 38 सीटों पर 20 नवंबर को वोट डाले जाएंगे.

झारखंड में सरकार बनाने के लिए 42 विधायकों की जरूरत होती है. मुख्य मुकाबला एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच है.

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