देश – सांसों के साथ सपने भी छूटे… ढाई पन्ने के सुसाइड नोट में UPSC की छात्रा ने लिखी दिल्ली PG की हकीकत | Delhi UPSC Aspirant Suicide Old Rajendra Nagar IAS Coaching Note PG’s high Rent- #INA

UPSC की छात्रा ने लिखी दिल्‍ली PG की हकीकत

मैं ना फिल्में और सीरीज बहुत देखती हूं… पता नहीं क्यों वहां से जीने के लिए रास्ता मिल जाता है… ऐसी ही एक सीरीज थी टीवीएफ की सपने वर्सेज एवरीवन… जितना कमाल इसका नाम है उससे भी ज्यादा कमाल हैं इस सीरीज के डायलॉग… इसका एक डायलॉग है… “‘काबिल बनो सक्सेस झक मारके पीछे आएगी’ लिख दिया किसी राइटर ने, ब्लैक कॉफी पीते-पीते, एसी रूम में बैठके…मान लिया क्यूट-क्यूट भोले-भाले लड़के लड़कियों ने…” जब आप ये सुनते हैं तो आपको ऐसा लगता है जैसे ये एस्पिरेंट्स आपके हमारे जैसे लोग थे जिन्होंने रैंचो के इस डायलॉग को जरा ज्यादा सीरियसली ले लिया और निकल पड़े किताबों और पन्नों से भरी सड़कों पर अपने अरमानों का महल बनाने… लेकिन, जनाब इनको क्या मालूम की सपनों की कीमत भी कागजों से ही दी जानी है… बस फर्क इतना है कि इन 10-100 लिखे हुए कागजों पर पूरी दुनिया चल रही है.

ओल्ड राजेंद्र नगर… कमाल की बात है ना कि दिल्ली का वह इलाका जो कल तक अपनी सफलताओं की कहानियों के लिए चर्चा में रहता था आज वहां की गलियों में इस बात की चर्चा है कि यहां पलने वाले सपनों की यहां सर्वाइव करने वालों को क्या कीमत देनी पड़ती है… हां सर्वाइव करने वाले… अगर एक छोटे से कमरे में पानी भरने से आपकी जान जा रही हो… तो आप सर्वाइव ही कर रहे हैं ना… अगर बड़े से शहर के किसी छोटे से कोने के किसी छोटे सी बिल्डिंग के एक छोटे से कमरे में रहकर आप सीलन भरी दीवारों पर अपने अरमानों को लिखकर टांग रहे हैं तो आप सर्वाइव ही कर रहे हैं…

कुछ ऐसे हैं जो यहां से अपनी उड़ान को पा लेते हैं… लेकिन उनका क्या जो पीछे रह जाते हैं… वह उसी सीलन भरी दीवारों वाले कमरे में घुटते रहते हैं और एक दिन जिम्मेदारियों का बोझ इतना हो जाता है कि बिन पानी के ये लोग डूब जाते हैं…

वह हादसा जिसने सब बदल दिया…

दिल्ली में बीते दिनों एक ऐसी घटना हुई थी जिसने हर इंसान को अंदर तक झंझोर दिया. ओल्ड राजेंद्र नगर कोचिंग हादसे में तीन यूपीएससी की तैयारी करने वाले छात्रों की मौत से सारा देश सहम गया. अभी उससे उभर भी ना पाए थे कि एक और जिन्दगी ने जिन्दगी से हार मानकर मौत को गले लगा लिया. यहां दिल्ली में रहकर UPSC की तैयारी करने वाली महाराष्ट्र की एक छात्रा अंजलि ने आत्महत्या कर ली… या यूं कहे कि बस वह अपने सपनों की कीमत की अदायगी नहीं कर पाई… शायद इसीलिए दुनिया के सबसे मुश्किल एग्जामों में से एक को पहले अटेम्प्ट में पास करने का सपना देखने वाली इस छात्रा ने पीजी के बढ़े हुए रेंट की वजह से आत्महत्या ही कर ली और आत्महत्या की सो की… अपने सुसाइड नोट में सरकार से इस बात की गुजारिश तक कर डाली कि सरकार को इच्छामृत्यु या यूथेनेशिया को लीगल करने की गुजारिश तक कर डाली.

सपनों की कीमत जिंदगी से ज्यादा

सोच के देखिए कोई कितना ही परेशान हुआ होगा कि उसको अपने आखिरी खत में सरकार से इस बात की गुजारिश करने पड़ी की सरकार अपनी इच्छा से लोगों को अपना जीवन खत्म करने की पर्मीशन दे. अंजलि ने अपने ढ़ाई पन्नों के इस आखिरी खत में बहुत कुछ ऐसा लिखा है जिसे पढ़कर आप ये सोचने पर मजबूर हो जाएंगे की वाकई सपनों की कीमत आज जिंदगी से भी ज्यादा हो गई है. अंजलि को जानने वालों ने एक ही बात कही कि वह डिप्रेशन में थी… डिप्रेशन किस बात का… पीजी के रेंट बढ़ने का… हां भी और नहीं भी… उसकी एक दोस्त को उसने बताया था कि उसके पीजी का रेंट बढ़ गया है और इसलिए वह ये पीजी छोड़ना चाहती है. साथ ही उसने अपने सुसाइड नोट में ये भी लिखा था कि हर किसी के लिए दिल्ली रहकर पढ़ाई करना आसान नहीं है. यहां रहने का खर्चा उठा पाना सबके बस की बात नहीं.

ये भीड़ है सपनों की…

ओआरएन कहे जाने वाले इस इलाके में आप शाम के वक्त या दिन के वक्त कभी भी जाईए… आपको भीड़ ही मिलेगी… लेकिन मेरे जैसे लोगों को ये भीड़… सिर्फ लोगों की नहीं दिखती… ये भीड़ है सपनों की…यहां की हर बिल्डिंग के हर कमरे में आपको देश के मैप के साथ दीवारों पर उम्मीदें लटकती मिलेंगे. छह बाई छह के इन कमरों में रहने वालों के लिए ना कपड़े सुखाने की जगह है और ना ही सांस लेने के लिए ताजी हवा… बस कुछ है तो छोटे-छोटे कमरों में दो घंटों की नींद लेने के लिए एक बेड… कपड़ों किताबों और यादों से भरी एक अलमारी और टेबल-चेयर जिसपर बरसात में गीले हुए कपड़े और किताबें आपको अक्सर फैले मिल जाएंगे.

ये शब्द नहीं रोज की दिनचर्या है…

ये कहानी केवल अंजलि की ही नहीं है… ये परेशानी केवल उसकी ही नहीं है… अंजलि के इस ख़त में लिखी बातें ओल्ड राजेंद्र नगर या ऐसी जगहों पर रहने वाले कई लोगों की रोज की जिंदगी है. उनको पीने का साफी पानी ना मिलना, जगह ना मिलना… उनके पीजी या फिर रूम का इतना किराया होना कि आप सोच भी नहीं सकते… ये सब कुछ ये लोग हर दिन झेलते हैं. अंजलि जैसे बच्चे हर दिन हजारों की तादाद में इन जगहों पर आते हैं ताकी वह इस देश की तरक्की में भागीदारी दे सके. लेकिन अपने घर को छोड़ ये पंछी… कई बार ना अपने लिए नया आशियां ढूंढ़ पाते हैं और ना ही अपनी उड़ान.

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