भेड़िया तो भेड़िया ही है…

(शाश्वत तिवारी)

बहुत समय पहले की बात है, एक चरवाहा था जिसके पास 10 भेड़े थीं। वह रोज उन्हें चराने ले जाता और शाम को बाड़े में डाल देता। सब कुछ ठीक चल रहा था कि एक सुबह जब चरवाहा भेडें निकाल रहा था, तब उसने देखा कि बाड़े से एक भेड़ गायब है। चरवाहा इधर-उधर देखने लगा, बाड़ा कहीं से टूटा नहीं था और कंटीले तारों की वजह से इस बात की भी कोई सम्भावना न थी कि बहार से कोई जंगली जानवर अन्दर आया हो और भेंड़ उठाकर ले गया हो।

चरवाहा बाकी बची भेड़ों की तरफ घूमा और पुछा, “क्या तुम लोगों को पता है कि यहाँ से एक भेंड़ गायब कैसे हो गयी, क्या रात को यहाँ कुछ हुआ था ?”

सभी भेड़ों ने ना में सर हिला दिया।
उस दिन भेड़ों के चराने के बाद चरवाहे ने हमेशा की तरह भेड़ों को बाड़े में डाल दिया। अगली सुबह जब वो आया तो उसकी आँखें आश्चर्य से खुली रह गयीं, आज भी एक भेंड़ गायब थी और अब सिर्फ आठ भेडें ही बची थीं। इस बार भी चरवाहे को कुछ समझ नहीं आया कि भेड़ कहाँ गायब हो गयी। बाकी बची भेड़ों से पूछने पर भी कुछ पता नहीं चला। ऐसा लगातार होने लगा और रोज रात में एक भेंड़ गायब हो जाती। फिर एक दिन ऐसा आया कि बाड़े में बस दो ही भेंड़े बची थीं।
चरवाहा भी बिलकुल निराश हो चुका था, मन ही मन वो इसे अपना दुर्भाग्य मान सब कुछ भगवान पर छोड़ दिया था। आज भी वो उन दो भेड़ों के बाड़े में डालने के बाद मुड़ा। तभी पीछे से आवाज़ आई, “रुको-रुको मुझे अकेला छोड़ कर मत जाओ वर्ना ये भेड़िया आज रात मुझे भी मार डालेगा।

चरवाहा फ़ौरन पलटा और अपनी लाठी संभालते हुए बोला, “ भेड़िया ! कहाँ है भेड़िया?”
भेड़ इशारा करते हुए बोली, “ये जो आपके सामने खड़ा है दरअसल भेड़ नहीं, भेड़ की खाल में भेड़िया है। जब पहली बार एक भेड़ गायब हुई थी तो मैं डर के मारे उस रात सोई नहीं थी। तब मैंने देखा कि आधी रात के बाद इसने अपनी खाल उतारी और बगल वाली भेड़ को मारकर खा गया”

भेड़िये ने अपना राज खुलता देख वहां से भागना चाहा, लेकिन चरवाहा चौकन्ना था और लाठी से ताबड़तोड़ वार कर उसे वहीँ ढेर कर दिया। चरवाहा पूरी कहानी समझ चुका था और वह क्रोध से लाल हो उठा, उसने भेड़ से चीखते हुए पूंछा, “जब तुम ये बात इतना पहले से जानती थीं तो मुझे बताया क्यों नहीं?”

भेड़ शर्मिंदा होते हुए बोली, “मैं उसके भयानक रूप को देख अन्दर से डरी हुई थी, मेरी सच बोलने की हिम्मत ही नहीं हुई, मैंने सोचा कि शायद एक-दो भेड़ खाने के बाद ये अपने आप ही यहाँ से चला जाएगा पर बात बढ़ते-बढ़ते मेरी जान पर आ गयी और अब अपनी जान बचाने का मेरे पास एक ही चारा था- हिम्मत करके सच बोलना, इसलिए आज मैंने आपसे सब कुछ बता दिया।”

चरवाहा बोला, “तुमने ये कैसे सोच लिया कि एक-दो भेड़ों को मारने के बाद वो भेड़िया यहाँ से चला जायेगा, भेड़िया तो भेड़िया होता है, वो अपनी प्रकृति नहीं बदल सकता, जरा सोचो तुम्हारी चुप्पी ने कितने निर्दोष भेड़ो की जान ले ली। अगर तुमने पहले ही सच बोलने की हिम्मत दिखाई होती तो आज सब कुछ कितना अच्छा होता?”

दोस्तों,  भेड़ की तरह हममें से ज्यादातर लोग तब तक चुप्पी मारकर बैठे रहते हैं जब तक मुसीबत अपने सर पे नहीं आ जाती। चलिए इस कहानी से प्रेरणा लेते हुए हम सही समय पर सच बोलने की हिम्मत दिखाएं और अन्याय के खिलाफ आवाज उठायें।
“भेड़िया तो भेड़िया ही है” एक मुहावरे के रूप में प्रायः उस व्यक्ति या स्थिति के लिए उपयोग किया जाता है जो अपनी असली प्रवृत्ति या स्वभाव से कभी बदल नहीं सकता। यह विचार इस बात को दर्शाता है कि किसी के बाहरी आवरण या दिखावे को बदलने से उसकी भीतरी प्रकृति पर असर नहीं पड़ता।

इस मुहावरे का इस्तेमाल तब किया जाता है जब कोई व्यक्ति या संस्था अपने पुराने, नकारात्मक व्यवहार को छिपाने की कोशिश करता है लेकिन अंततः अपनी असली प्रवृत्ति पर लौट आता है। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति अगर स्वभाव से धोखेबाज या चालाक है, तो चाहे वह दिखावे में कितना भी बदलने की कोशिश करे, समय आने पर वह अपनी वास्तविकता प्रकट कर ही देगा।

ऐतिहासिक रूप से भेड़िए को क्रूरता, चालाकी और शिकारी स्वभाव का प्रतीक माना गया है। इसलिए, जब इस मुहावरे का उपयोग किया जाता है, तो यह संदेश देता है कि एक नकारात्मक स्वभाव वाले व्यक्ति से हमेशा उसी स्वभाव की उम्मीद की जा सकती है।
इस मुहावरे को किसी भी संदर्भ में, जैसे सामाजिक, राजनीतिक या व्यक्तिगत जीवन में प्रयोग किया जा सकता है, जहाँ किसी की छवि या वचनबद्धता के बावजूद उसके असली चरित्र की पहचान होती है।  अतः, “भेड़िया तो भेड़िया ही है” यह समझाता है कि असली स्वभाव को बदलना बेहद कठिन होता है।
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