Noida – मोहिंदर सिंह ने आपदा को बनाया था अवसर, ठेकेदारों की जमात बना दी बिल्डर लॉबी – #INA

Noida News :
मोहिंदर सिंह और उसके दोस्त बिल्डरों ने नोएडा में डकैती डालने के लिए हर हथकंडा अपनाया था। शहर से नामचीन और बड़े बिल्डरों को खदेड़ दिया गया था। ठेकेदारी और छोटे-छोटे हाउसिंग प्रोजेक्ट पर काम रहे लोगों को इकट्ठा किया। उन्हें नोएडा में बिल्डर बनाने की पठकथा लिखी गई। इसी दौरान साल 2009 में वैश्विक आर्थिक मंदी का दौर आ गया। उस मंदी को मोहिंदर सिंह और उसके गैंग ने आपदा में अवसर बनाया। नोएडा अथॉरिटी के कुछ पुराने जानकर मुलाजिमों ने फाइलों को खंगालकर ‘चोर रास्ते बताए। उन पर आगे बढ़कर मोहिंदर सिंह ने 20 हजार करोड़ रुपये के घोटाले को अंजाम दिया। अब ईडी मोहिंदर सिंह की कुंडली खंगाल रही है। सीएजी सारे काले चिट्ठों की रिपोर्ट सरकार को चार साल पहले सौंप चुके हैं। यह कम आश्चर्य की बात नहीं, इस शहर में आशियाना बसाने का सपना लेकर आए लाखों परिवारों को बर्बाद करने वाला मोहिंदर सिंह अब तक अकूत संपत्ति पर कुंडली मारकर बैठा है।

बिल्डरों के नेट वर्थ, टर्न ओवर और अनुभव घटाए

बिल्डरों की वित्तीय योग्यता से जुड़े मानदंडों में ढील देकर आवंटन किए गए। स्कीम ब्रोशर में निर्धारित नियम और शर्तें बिल्डरों के लिए जरूरी वित्तीय पात्रता मानदंड तय करते हैं। ग्रुप हाउसिंग स्कीम में शामिल होने के लिए कंपनी का पिछले तीन वर्षों का कारोबार सबसे बड़ा आधार होता है। जिनमें पिछले तीन वर्षों के दौरान न्यूनतम टर्न ओवर, न्यूनतम नेट वर्थ और रियल एस्टेट गतिविधियों से न्यूनतम कारोबार सबसे जरूरी थे। दस्तावेजों के विश्लेषण से पता चला है कि नोएडा अथॉरिटी ने विभिन्न समय अवधि के दौरान मानदंडों में बदलाव किया है।

साल 2009 की आर्थिक मंदी को बनाया हथियार

नोएडा प्राधिकरण ने मंदी का हवाला देते हुए बिल्डरों की वित्तीय पात्रता से जुड़े मानदंडों में भारी कमी की। इन फैसलों के कारण अथॉरिटी ने अपने और फ्लैट खरीदारों के हितों को दांव पर लगा दिया। एक तरफ मंदी की बात कही जा रही थी और दूसरी तरफ बड़े-बड़े आकार के भूखंडों की स्कीम निकाली गईं। ऊपर वाली टेबल से यह स्पष्ट है कि 2006-07 से 2008-09 तक वित्तीय पात्रता मानदंडों में भारी कमी की गई। भूखंडों के आकार को आधार बनाकर पात्रता मानदंडों में बदलाव किया गया। 2009-11 की अवधि के दौरान बिल्डरों को अधिकतम आवंटन किए गए थे। नोएडा प्राधिकरण ने 50,008 वर्गमीटर से लेकर 2,43,287.40 वर्गमीटर तक के भूखंडों का आवंटन इस दौरान किया। जिनके के लिए न्यूनतम नेट वर्थ, न्यूनतम सॉल्वेंसी और न्यूनतम टर्न ओवर क्रमशः 75 करोड़, 10 करोड़ और 200 करोड़ रुपये निर्धारित किया था। सीएजी ने लेखा परीक्षा ने पाया कि वित्तीय पात्रता के लिए एक निश्चित मानदंड रखने से बिल्डरों को बड़े आकार के भूखंड हासिल करने में मदद मिली। चूंकि, मानदंड को भूखंड के आकार से अलग कर दिया गया था, इसलिए महज 75 करोड़ रुपये टर्न ओवर वाले बिल्डर को 496.31 करोड़ रुपये का भूखंड आवंटित किया गया था, जो अत्यधिक अविवेकपूर्ण था।


लाखों की कंपनियों को अरबों की जमीन

वर्ष 2009-10 और 2010-11 की अवधि में 12 योजनाओं के माध्यम से 40.27 लाख वर्गमीटर क्षेत्रफल के 39 भूखण्ड कुल 8,528.24 करोड़ रुपये के प्रीमियम पर आवंटित किए गए। यह वर्ष 2005-06 से 2017-18 के दौरान किए गए कुल आवंटनों का 58.21 प्रतिशत है। इन 39 आवंटनों में से 11 आवंटन एक लाख वर्गमीटर से बड़े आकार के थे, जिनमें प्रत्येक भूखण्ड का मूल्य 200 करोड़ रुपये से अधिक था। बड़ी बात यह है कि 39 भूखंडों में से कोई भी भूखण्ड 102 करोड़ रुपये से कम प्रीमियम पर आवंटित नहीं किया गया था, फिर भी नोएडा प्राधिकरण ने बिल्डरों की नेटवर्थ के लिए केवल 75 करोड़ रुपये की योग्यता निर्धारित की थी, जो खुद यह साबित करता है कि वित्तीय रूप से अयोग्य बिल्डरों को भरपूर फायदा पहुंचाया गया।

अपने और फ्लैट खरीदारों के हित दांव पर लगाए

नोएडा प्राधिकरण ने भूखण्ड के आकार के आधार पर वर्ष 2008-09 तक वित्तीय पात्रता मानदंड निर्धारित की। इसके बाद, 2009-11 के दौरान प्लॉट के आकार तो बढ़ते चले गए लेकिन नेट वर्थ बढ़ाने की परवाह नहीं की। इसे स्थिर रखकर नोएडा अथॉरिटी ने बड़े भूखंडों के लिए जरूरी मानदंडों को बढ़ाने की बजाय कम कर दिया। ऐसा करके, नोएडा प्राधिकरण ने अपने हितों के साथ-साथ फ्लैट खरीदारों के हितों को भी दांव पर लगा दिया, क्योंकि बिल्डर अब बिना नेटवर्थ के बड़े प्रोजेक्ट वाले बड़े प्लॉट हासिल कर सकते थे।

अब भी अफसरों का बचाव कर रहा प्राधिकरण

बड़ी बात यह है कि इतना बड़ा घोटाला होने के बावजूद प्राधिकरण सरदार मोहिंदर सिंह और दूसरे जिम्मेदार अफसरों का बचाव करता रहा। ऐसा क्यों किया गया? सीएजी ने नोएडा प्राधिकरण से जवाब मांगा था। अगस्त 2020 में इस सवाल का जवाब सीएजी को कुछ इस तरह दिया गया, “प्राधिकरण की 125वीं बोर्ड बैठक अप्रैल 2005 में हुई थी। उस बैठक में बोर्ड ने सीईओ को संपत्तियों के आवंटन के लिए नियम और शर्तें निर्धारित करने के लिए अधिकृत किया था। मौजूदा आर्थिक स्थितियों को देखते हुए योजनाओं के लिए तकनीकी और वित्तीय आधार पर नियम-शर्तें तय करने के लिए एक सलाहकार (यूपीको) को लगाया गया था। सलाहकार की सिफारिश पर सीईओ ने ब्रोशर के नियम और शर्तों को मंजूरी दे दी, जिसे बोर्ड ने बाद में (दिसंबर 2008) मंजूरी दे दी। वित्तीय पात्रता में छूट प्रदान करने का मुख्य कारण वैश्विक आर्थिक मंदी और रियल एस्टेट क्षेत्र को पुनर्जीवित करना था। 2009 के बाद से आगे की छूट यूपी सरकार के आदेशों के मद्देनजर दी गई थी, जिन्हें बाद में बोर्ड ने स्वीकार किया था।”

सीएजी ने अथॉरिटी का तर्क खारिज किया

सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, “इस तथ्य के मद्देनजर जवाब स्वीकार्य नहीं है। एक तरफ नोएडा अथॉरिटी ने मंदी का हवाला देते हुए पात्रता मानदंड को कम रखा और दूसरी तरफ बड़े-बड़े आकार के भूखंडों की पेशकश की। जब बाजार में पैसा नहीं था तो इतने बड़े भूखंड बिल्डर कैसे खरीद रहे थे। इसके अलावा 2009 के शासनादेश में वित्तीय पात्रता को कम करने के संबंध में कोई अनुमति नहीं दी गई थी। इस तरह, शासनादेश में उल्लिखित राहत से परे छूट दी गई। सीईओ को योजनाओं की शर्तों को मंजूरी देने के लिए सीईओ को अधिकृत करके बोर्ड ने नोएडा और फ्लैट खरीदारों, दोनों के हितों को सुनिश्चित करने की अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया था। बड़े भूखंडों के लिए वित्तीय पात्रता मानदंड को कमजोर करने के परिणामस्वरूप कम वित्तीय क्षमता वाले बिल्डरों को बड़े भूखंड हासिल करने में सफलता मिली। यही वजह है, शहर में बड़ी संख्या में आवासीय परियोजनाएं पूरी नहीं हो सकीं। जिसके परिणामस्वरूप ऐसी अधूरी परियोजनाओं के घर खरीदारों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।”

कुल मिलाकर साफ है कि मोहिंदर सिंह और उनके मातहत अफसर खुलकर मनमानी कर रहे थे। हम आपको आगे बताएंगे कि किन-किन बिल्डरों ने कैसे-कैसे इस घोटाले का फायदा उठाया? कैसे कौड़ियों के भाव करोड़ों-अरबों की जमीन हड़पी गई? कानून को ठेंगा दिखाकर नोएडा डकैती डाली गई।

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सौजन्य से ट्रिक सिटी टुडे डॉट कॉम

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