देश – पत्नी की मौत, 4 दिव्यांग बेटियों का बोझ… मुफलिसी से हारा दिल्ली का परिवार और छोड़ दी दुनिया- #INA

मुफलिसी से हारा दिल्‍ली का परिवार और छोड़ दी दुनिया

‘बीच सड़क इक लाश पड़ी थी और ये लिक्खा था
भूक में ज़हरीली रोटी भी मीठी लगती है…’

बेकल उत्साही साहब ने क्या खूब शेर लिखा है… गरीबी या मजबूरियां… एक इंसान को किस हद तक लेकर जा सकती है इसकी कल्पना नहीं की जा सकती. अक्सर ये देखा जाता है कि गरीब इंसान के हिस्से मुफलिसी और मजबूरियों के अलावा कुछ नहीं आता. वो भीड़ में चलता है, थकता है, गिरता है फिर चलता है… शाम ढ़ले घर आता है और उसी छेदों वाली चादर को ओढ़कर किसी हसीन दुनिया का सपना संजोता है जो शायद सच नहीं होगा. अमूमन ये माना जाता है कि इंसान के जीवन से कुछ भी चला जाए… उसकी जीवन जीने की उम्मीद नहीं जानी चाहिए. जिस दिन उम्मीद चली गई उस दिन इंसान के अंदर कुछ नहीं बचता. राजधानी दिल्ली के एक परिवार के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. उनकी उम्मीद उनकी मां थी, जिस दिन मां ने दुनिया छोड़ी परिवार बिखर गया.

दिल्ली के वसंत कुज साउथ के रंगपुरी गांव में हीरा लाल नाम के एक शख्स ने अपनी चार बेटियों के साथ आत्महत्या कर ली. पुलिस के मुताबिक, पत्नी की मौत के बाद से बेटियों की जिम्मेदारी हीरा लाल के कंधों पर थी. बेटियां भी अपने पैरों पर नहीं थी. हीरा की चारों बेटियां दिव्यांग थीं. मां थी तो बेटियों की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा रखी थी, लेकिन मां के बाद पिता से ऐसा नहीं हो पाया. वो मजबूर हो गया और फिर उसने वो कदम उठाया जिसे जानकर हर किसी कि रुह कांप गई.

कमाने वाला एक और कंधे भर जिम्मेदारी

हीरा की चारों बेटियां, दिव्यांग होने के कारण कहीं भी जाने में असमर्थ थीं. बीते शुक्रवार को, घर के आसपास के लोगों ने हीरा लाल के घर से बदबू आने पर पुलिस को सूचना दी. पुलिस ने दरवाजा तोड़ा तो सभी के होश उड़ गए. घर में पांच लाशें सड़ रही थीं. हीरा और उसकी बेटियों ने जहरीला पदार्थ खाकर अपनी जान ले ली. पुलिस ने सूचना मिलने पर फ्लैट का ताला तोड़कर शवों को निकाला. मामले में डीसीपी रोहित मीना के मुताबिक, वसंत कुंज साउथ पुलिस ने शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज कर जांच शुरू कर दी है. इस परिवार में 18 साल की बेटी नीतू, 15 साल की निशि, 10 साल की नीरू और आठ साल की बेटी निधि थीं जिनकी मां की कैंसर से मौत हो गई थी. चारों बेटियां पिता के साथ रहती थीं.

बदबू आने पर खुला मौत का राज

वसंत कुंज के स्पाइनल इंजरी हॉस्पिटल में कारपेंटर के तौर पर काम करने वाले हीरा लाल पर बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी थी. शुक्रवार को हीरा लाल के फ्लैट से बदबू आनी शुरू हुई. इस पर सड़क के दूसरी तरफ के मकान के एक शख्स ने पुलिस को फोन कर बदबू आने की जानकारी दी. जब वसंत कुंज साउथ पुलिस फ्लैट पर पहुंची तो आसपास के लोगों ने बताया कि परिवार के लोग कई दिन से दिखाई नहीं दिए और उनके फ्लैट से बदबू आ रही है. इस पर पुलिस ने मकान मालिक और बाकी लोगों के साथ मिलकर दरवाजा तोड़ा तो अंदर से भीषण बदबू आने लगी. जब पुलिस कमरे के अंदर गई तो पहले कमरे के बेड पर हीरा लाल का शव पड़ा था. वहीं दूसरे कमरे में चारों बेटियों के शव बिस्तर पर पड़े थे.

जिन्दगी की आग पर रोटी सेकता था पिता

पूरे परिवार की एक साथ पड़ी लाशें देखकर हर किसी की रुह कांप गई. आसपास के लोगों में खुसुर-पुसुर शुरू हो गई और परिवार के गरीबी के चर्चे होने लगे. लोगों ने कहा कि पिता पर अपनी चारों बेटियों की जिम्मेदारी आ गई थी, वो काफी परेशान रहने लगा था. 46 साल के हीरालाल मूल रूप से बिहार के रहने वाले थे. आसपास के लोग बताते हैं कि हीरा पत्नी की मौत के बाद काफी टूट गया था. वो सुबह काम करने के लिए जाने से पहले चारों बेटियों के खाने-पीने की व्यवस्था करके जाता था. शाम को आता था तो पहले जिन्दगी की आग पर रोटी सेकता था, बच्चियों का पेट भरता था फिर पत्नी को याद कर रातें आसुओं में काट देता था. एक तरफ घर चलाने की जिम्मेदारी दूसरी तरफ चार दिव्यांग बेटियों का जिम्मा, धीरे-धीरे हीरालाल की हिम्मत जवाब देने लगी और वह परेशान रहने लगा. हालातों के आगे वो इतना मजबूर हो गया कि अपनी जिंदगी खत्म करने की बात सोचने लगा.

गरीबी से हारा एक पूरा परिवार

लेकिन कम्बख्त अकेले मौत भी ना आती… अकेले मौत को गले लगाता तो मुई दुनिया कहती कि देखो… कैसे बाप था… दिव्यांग बेटियों के बारे में ना सोचा, जान लेकर सारे बंधनों से खुद को तो आजाद कर लिया और दिव्यांग बेटियों को अपने सहारे छोड़ चला गया. ऐसे में एक पिता का कलेजा और फटता होगा. दिन रात इसी उधेड़ बुन में कटती होगी कि मैं मर गया तो इनका क्या होगा…. ये दुनिया तो बेटियों को नोच खाएगी. फिर क्या था… मजबूर पिता ने बाजार से सल्फास खरीदा… पहले बेटियों को दिया और फिर खुद खा लिया… ना किसी से कोई शिकायत की और ना ही अपना दर्द बताया. बेटियों ने भी पिता की तकलीफ के आगे घुटने टेक दिए और मौत को गले लगा लिया. हैरानी की बात भी ये कि जब बंद मकान में पांच लाशें सड़ने को आईं तो दुनिया को खबर हुई कि यहां कोई हीरा भी रहा करता है… बंद दरवाजों के पीछे घरों में कौन किस तकलीफ से गुजर रहा है इसको देखने और जानने की फुरसत किसे है… हर कोई एक रेस में भाग रहा है… बस फर्क इतना था कि हीरा लाल और उसका परिवार इस रेस में दौड़ नहीं पाया और जिन्दगी से हार गया.

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