देश – रोज का टारगेट 10 करोड़ का, 4 शहरों में डॉर्करूम, चीन-ताइवान तक जुड़े तार; सैफ हैदर के साइबर अड्डे की कहानी- #INA

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आज कल तो लोग जेल छोड़िए अपने घरों में कैद हो जा रहे हैं. ये कैद भी कोई आम कैद नहीं होती. मेंटल टॉर्चर, धमकी और उगाही सब कुछ इस कैद में रह रहे व्यक्ति से की जाती है. इस कैद में रहने के दौरान व्यक्ति भी कुछ समझ नहीं पाता है और अपना सबकुछ लुटा लेता है. इस कैद का नाम है ‘डिजिटल अरेस्ट’. इसमें व्यक्ति को पुलिस अरेस्ट नहीं करती, बल्कि साइबर ठग अरेस्ट करते हैं. वो भी अपनी शर्तों पर. शर्तें भी ऐसी-ऐसी होती हैं कि डिजिटल अरेस्ट हुआ व्यक्ति मानने को मजबूर हो जाता है.

दिल्ली पुलिस ने ऐसे ही एक डिजिटल अरेस्ट गैंग का खुलासा किया है. इस गैंग के सरगना का नाम सैफ हैदर है. सैफ हैदर चीन, ताइवान और इंडिया के लोगों के साथ मिलकर इस पूरे गैंग को दिल्ली में ऑपरेट कर रहा था. पुलिस को सैफ हैदर तक पहुंचाने में इसी के दोस्तों ने मदद की. दोनों दोस्तों का नाम लीलेश और जयेश है. जब लीलेश और जयेश को पुलिस ने गिरफ्तार किया तो सैफ हैदर के नाम का खुलासा हुआ. सैफ को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने उससे कड़ाई से पूछताछ की.

डिजिटल अरेस्ट गैंग में विदेशी भी

सैफ हैदर ने बताया कि उसकी गैंग में देशे के लोगों के साथ-साथ विदेशी भी थे. दो ताइवान नागरिग वांग चुन वेई और शेन वेई हाव बेंगलुरु में डॉर्करूम में इसको ऑपरेट कर रहे हैं. सैफ हैदर ने ये भी बताया कि इस गैंग के मुख्य सरगना ची संग उर्फ मॉर्क और चांग हाव यून हैं. ये दोनों इसी महीने 10 अक्टूबर को ताइवान से हॉन्गकॉन्ग की फ्लाइट से दिल्ली पहुंचे थे. ताज होटल में जैसे ही इन्होंने अपना लैपटॉप खोला, साइबर पुलिस ने दबोच लिया.

जब इन दोनों और सैफ हैदर को आमने-सामने बैठाकर पूछताछ की गई तो इन्होंने बताया कि देशभर में इन्होंने चार डॉर्करूम बना रखे थे. ये डॉर्क रूम वडोदरा, मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु में थे. जब कोई व्यक्ति डिजिटल अरेस्ट होता था तो उससे मोटी रकम वसूली जाती थी. ये रकम इंडिया में न रखकर मोबाइल नेट बैंकिंग की मदद से चीन, ताइवान और दुंबई भेज दिया जाता था. ये भी बता दें कि अभी तक पुलिस केवल आरोपियों को ही गिरफ्तार कर पाती थी. ऐसा पहली बार हुआ है, जब इनके डॉर्क रूम को पकड़ने में पुलिस को सफलता मिली है.

युवाओं को कैसे बनाते थे शिकार?

पूछताछ में इन्होंने बताया कि गुजरात के युवा हमारे टारगेट पर थे. इनको अपने जाल में फंसाने के लिए पहले मालदीव और वियतनाम में नौकरी देने का लालच देते थे. जब युवा इनके जाल में फंस जाते थे तो ये उन्हें मालदीव और वियतनाम न ले जाकर फिलीपींस से कंबोडिया ले जाते थे. वहां इनका पासपोर्ट छीन लिया जाता था और फिर जबरन कॉल सेंटर में नौकरी कराई जाती थी. वहां पर इन युवाओं को साइबर ठगी में ट्रेंड कर वापस पासपोर्ट देकर इंडिया भेज देते थे और अपने डॉर्करूम मुंबई, दिल्ली, वडोदरा या बेंगलुरु में नौकरी करवाते थे.

कैसे पकड़ में आया ये पूरा गैंग?

तीन दिन पहले गुजरात की अहमदाबाद पुलिस ने इस गैंग का खुलासा करते हुए 18 लोगों को गिरफ्तार किया था. पूछताछ में पता चला कि अब तक इन्होंने पांच हजार करोड़ की ठगी की है. ये पैसे इंडिया में भी नहीं हैं, बल्कि चीन और ताइवान में हैं. गिरफ्तार आरोपियों में चार ताइवानी नागरिक और बाकी अहमदाबाद के रहने वाले हैं. पुलिस ने बताया कि इस गैंग पर पूरे देशभर में साइबर ठगी के 450 केस दर्ज हैं.

इस गैंग के लोग अपने आप को कोई मामूली आदमी नहीं बताते थे. सीबीआई और साइबर क्राइम के अधिकारी बनकर फोन करते थे. इनके चारों डॉर्करूम से 761 सिमकार्ड, 120 मोबाइल, 96 चेकबुक, 92 डेबिट कार्ड और 42 बैंकपास बुक मिली हैं. खास बात यह है कि इस गैंग को प्रदितिन 10 करोड़ रुपए चीन, ताइवान और दुबई भेजने का टारगेट था. बीते दिनों एक बुजुर्ग को डिजिटल अरेस्ट करके इन ठगों ने करीब 80 लाख रुपए की ठगी की थी. जब पुलिस ने इस केस की जांच शुरू की तो पूरे गैंग का पर्दाफाश हो गया.

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