बढ़ते बाल विवाह पर सुप्रीम कोर्ट नें जताई नाराजगी, दिए दिशा निर्देश
रिपोर्ट अमरदीप नारायण प्रसाद
जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन अलायंस की सहयोगी संस्था जवाहर ज्योति बाल विकास केन्द्र के सचिव सुरेन्द्र कुमार नें बताया कि देश में बाल विवाह रुक नहीं रहे। सरकारी कोशिश तो जारी है बावजूद जागृति के अभाव में बच्चों के मानव अधिकारों का हनन किया जा रहा है। बाल विवाह से बच्चों के जीवन से कितना बड़ा खिलवाड़ किया जा रहा है इससे भारतीय समाज अंजान नहीं है फिर भी इस पर रोक के लिए पूरा समाज एकजुट नहीं हो पाया है। अब बाल विवाह के मामले में सुप्रीम कोर्ट नें भी दखल देकर सख्त टिप्पणी की है और सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ नें बाल विवाह के मामले में जरूरी दिशा निर्देश भी जारी किए हैं। बाल विवाह से तात्पर्य 18 वर्ष से कम आयु के बच्चे और किसी वयस्क या अन्य बच्चों के बीच किसी औपचारिक विवाह या अनौपचारिक मिलन से है। पिछले दशक में इस हानिकारक प्रथा में लगातार गिरावट के बावजूद बाल विवाह व्यापक रूप से फैला हुआ है, दुनिया भर में लगभग 5 में से एक लड़की की शादी हो जाती है। अपनें देश में हो रहे बाल विवाह के मुद्दे पर सर्वोच्च कोर्ट नें कड़ी नाराजगी जताई है। सर्वोच्च कोर्ट नें सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम को व्यक्तिगत कानूनों के जरिए बाधित नहीं किया जा सकता। साथ हीं कोर्ट नें कहा कि बच्चों से संबंधित विवाह और अपनीं पसंद या जीवन साथी चुनने की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
इससे उनके पसंद का जीवन साथी चुनने का विकल्प खत्म हो जाता है। देश में बाल विवाह की वृद्धि का आरोप लगाने वाली जनहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत नें बाल विवाह की रोकथाम पर कानून के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए कई दिशा निर्देश जारी किए। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पादरीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ नें देश में बाल विवाह रोकथाम कानून के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए ये दिशानिर्देश जारी किए हैं। सीजेआई चंद्रचूड़ नें कहा कि बाल विवाह रोकथाम कानून को पर्सनल लॉ के जरिए बाधित नहीं किया जा सकता है। कोर्ट के दिशानिर्देश में कहा गया है कि इस तरह के विवाह नाबालिगों की जीवन साथी चुनने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन हैं। प्राधिकारों को बाल विवाह की रोकथाम और नाबालिगों की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए तथा अपराधियों को अंतिम उपाय के रूप में दंडित करना चाहिए। पीठ नें यह भी कहा कि बाल विवाह रोकथाम कानून में कुछ खामियां हैं। बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 बाल विवाह को रोकने और समाज से उनके उन्मूलन को सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया था। इस अधिनियम नें 1929 के बाल विवाह निरोधक अधिनियम का स्थान लिया। पीठ नें कहा कि रणनीति अलग-अलग समुदायों के लिए अलग-अलग बनाई जानी चाहिए। कानून तभी सफल होगा जब बहू क्षेत्रीय समन्वय होगा। कानून प्रवर्तन अधिकारियों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की आवश्यकता है। हम इस बात पर जोर देते हैं कि समुदाय संचालित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।”
देश में बाल विवाह के खिलाफ कानून बनाए जाने के बावजूद
भारत में हर साल कारीब 15 लाख लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में होती है। दुनिया में सबसे ज्यादा बाल विवाह होने वाले देश में भारत का नाम सबसे ऊपर है। भारत में बाल विवाह की राष्ट्रीय औसत दर करीब 23.3 प्रतिशत हैं। 8 राज्यों में बाल विवाह की दर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। बिहार, झारखंड, राजस्थान और आंध्र प्रदेश में बाल विवाह का प्रचलन 60% से ज्यादा है। छत्तीसगढ़ में 12.1% बालिकाओं का बाल विवाह 18 साल से कम उम्र में होता है। समस्तीपुर और लखीसराय जिले में सबसे ज्यादा 56.60% बाल विवाह होता हैं। अभी हाल में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) नें भी यह उजागर किया है कि उनकी ओर से वर्ष 2023-24 में बाल विवाह की आशंका वाले 11 लाख से अधिक बच्चों की पहचान की और परिवार परामर्श, स्कूल पहुंचाने के प्रयासों और कानून प्रवर्तन के साथ समन्वय जैसे कदम उठाए गए हैं। आयोग की एक रिपोर्ट में बाल विवाह निषेध अधिकारियों (सीएमपीओ), जिला अधिकारियों और अन्य हितधारकों के सहयोग से बाल विवाह निषेध अधिनियम (पीसीएमए), 2006 के तहत् किए गए प्रयासों का उल्लेख किया गया है। यह रिपोर्ट स्कूल छोड़ने के जोखिम वाले बच्चों पर डेटा प्रस्तुत करती है, जो बाल विवाह में योगदान देने वाले एक प्रमुख कारक है। एनसीपीसीआर के मुताबिक पूरे भारत में 11.4 लाख से अधिक ऐसे बच्चों की पहचान की गई जिसके बाल विवाह का शिकार बनने की आशंका अधिक थी। उन्होंने कहा कि इन बच्चों को इस समस्या से बचाने के लिए पारिवारिक परामर्श, स्कूल से जोड़ने के प्रयासों पर कानून प्रवर्तन के साथ समन्वय के माध्यम से कई कदम उठाए जानें हैं।