खबर मध्यप्रदेश – नर्मदा के तट पर मिला मकसद, सीढ़ियों पर क्लास… बड़े-बड़ों पर भारी हैं पराग सर से पढ़ने वाले बच्चे! – INA
5 सितंबर को दुनिया टीचर्स डे के नाम से मनाती है. शिक्षकों को हमारे धर्मग्रंथों में काफी ऊंचा स्थान दिया गया है. पुरातन काल से ही बड़े-बड़े राजा-महाराजा अपने बच्चों को शिक्षकों के पास इसलिए गुरुकुल इसलिए ही भेजते थे ताकी वह वहां जाकर जीवन का सार जान सकें. समय बदला, दौर बदला और बदल गए शिक्षक और शिक्षा देने का तरीका. आज के दौर में शिक्षक भी हाईटेक हैं और उनका शिक्षा देने का तरीका, लेकिन एक चीज है जो आज भी नहीं बदली और वह है शिक्षा का अधिकार, जिसे हमारे संविधान में एक मौलिक अधिकार माना गया है. इस अधिकार के मुताबिक, समाज में शिक्षा का अधिकार हर एक बच्चे को है चाहें वो किसी भी बैकग्राउंड, कास्ट या रिलीजन से आता हो. मध्य प्रदेश के जबलपुर के एक टीचर भी बच्चों के इन मौलिक अधिकारों को उन्हें दिलाने में बड़ा सहयोग कर रहे हैं.
जबलपुर के पराग दीवान उन शिक्षकों में से हैं जिन्होंने ये साबित कर दिखाया कि शिक्षा के लिए इंग्लिश मीडियम स्कूल और महंगी-महंगी किताबें नहीं बल्कि समर्पण और लगन की जरूरत होती है. पराग ने ग्वारीघाट, जबलपुर में एक अनूठी पाठशाला की शुरुआत की और गरीब बच्चों को शिक्षा के तोहफे से नवाजा. पांच बच्चों से शुरू की गई इस पाठशाला में आज करीब 300 से ज्यादा बच्चे फ्री शिक्षा ग्रहण ले रहे हैं. पराग का कहना है कि आने वाले सालों में उनकी मां का सपना भी जल्द पूरा होने वाला है जिसमें सभी गरीब बच्चे शिक्षा ग्रहण कर पाएंगे. पराग के पढ़ाए हुए ये बच्चे, अच्छे-अच्छे अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में हजारों रुपये की फीस देकर पढ़ने वाले बच्चों को भी टक्कर देते हैं. पांच साल के फस्ट क्लास में पढ़ने वाले बच्चों के आगे 12वीं क्लास के बच्चे भी फेल हैं.
नर्मदा तट से मिला था मकसद
नर्मदा तट ग्वारीघाट में जहां जीवन संघर्ष और गरीबी से भरा हुआ है, पराग दीवान ने लगभग 8 साल पहले एक पाठशाला शुरू की. पराग बताते हैं कि वह अपनी मां के साथ अक्सर ग्वारीघाट आया करते थे जहां पर वो देखा करते थे कि बच्चे नशे का शिकार हो रहे हैं. तब उनकी मां ने इन बच्चों के लिए स्कूल खोलने की इच्छा जाहिर की थी. बताया जाता है कि इस क्षेत्र में भिक्षावृत्ति, दुकानों में काम और नारियल बीनने जैसे काम करने वाले गरीब परिवारों के बच्चों के लिए पराग ने अपनी सेवाएं देनी शुरू की. शुरुआत में, उन्होंने ग्वारीघाट की सीढ़ियों पर पढ़ाना शुरू किया. पहले दिन बच्चे कम आए, लेकिन पराग की मेहनत और समर्पण ने जल्द ही रंग दिखाया.
300 बच्चों की पाठशाला
अब इस पाठशाला में 300 बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. पराग ने सरकारी शिक्षा व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह उठाते हुए अपनी पाठशाला में एक नया दृष्टिकोण अपनाया है. वह बच्चों को न केवल सामान्य शिक्षा बल्कि विज्ञान और गणित जैसे जटिल विषयों के सिद्धांत भी सिखाते हैं. इस रोडसाइड स्कूल में पांच-पांच साल के कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे भी फर्राटेदार इंग्लिश बोलते हैं. उनके पढ़ाने का तरीका भी अनोखा है. वो बच्चों को प्रेरित करते हैं और उन्हें उदाहरण के साथ समझाते हैं. उनकी पाठशाला में बच्चे अब मैथ्य, अलजेब्रा और न्यूटन्स लॉ जैसे जटिल विषयों के साथ-साथ एस्ट्रोनॉमी जैसे सब्जेक्ट्स भी पढ़ते हैं.
बस एक ही सपना
ग्वारीघाट की पुरानी बसाहट में परिवारों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं होती. आमतौर पर पति-पत्नी दोनों काम करते हैं, जिससे बच्चों की परवरिश और शिक्षा पर पूरा ध्यान नहीं दिया जा सकता. पराग दीवान ने इस स्थिति को समझा और बच्चों को शिक्षा देने का बीड़ा उठाया. उन्होंने न केवल बच्चों को पढ़ाया, बल्कि उन्हें एक नई दिशा और उम्मीद दी. पराग का सपना है कि वह एक ऐसा स्कूल खोलें जहां गरीब बच्चों को उच्च गुणवत्ता की शिक्षा दी जाए. उनका उद्देश्य है कि ये बच्चे एक दिन यूपीएससी, कलेक्टर, एसपी, डॉक्टर, और इंजीनियर बनें. इसके साथ ही, वो कुछ बच्चों को शिक्षक भी बनाने का सपना भी देखते हैं जो छोटे बच्चों को पढ़ा सकें. उनका मानना है कि शिक्षा की सच्ची शक्ति बच्चों में ही है और वो इस सपने को पूरा करने के लिए समर्पित हैं.
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