खबर मध्यप्रदेश – बुधनी में शिवराज सिंह चौहान से क्यों नहीं लड़ती कांग्रेस? इस बार भी दिया वाकओवर! – INA
मध्य प्रदेश एक बार फिर कांग्रेस ने शिवराज सिंह चौहान को वॉक ओवर दे दिया है? बुधनी सीट पर कांग्रेस की तरफ से राज कुमार पटेल को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद यह सवाल चर्चा में है. चर्चा की 3 वजहें भी है. पहली वजह राज कुमार पटेल की परफॉर्मेंस, दूसरी वजह पटेल का सियासी सफर और तीसरी वजह बुधनी में घटते जनाधार के बावजूद नए सिरे से नेतृत्व तैयार करने की कवायद न करना है.
बुधनी शिवराज सिंह चौहान का गढ़ माना जाता है और यहां से बीजेपी ने उनके करीबी रमा कांत भार्गव को मैदान में उतारा है.
कांग्रेस ने शिवराज को वॉक ओवर दे दिया?
1. 20 साल से चुनाव हार रहे राज कुमार पटेल- दिग्विजय सिंह के करीबी माने जाने वाले पूर्व मंत्री राज कुमार पटेल पिछले 20 साल से चुनाव हार रहे हैं. 2003 में बुधनी सीट पर उन्हें बीजेपी के राजेंद्र सिंह ने करीब 11 हजार वोटों से हराया. 2006 में मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवराज यहां से उतरे. इस चुनाव में भी राज कुमार पटेल हार गए.
2008, 2013, 2018 और 2023 में राजकुमार यहां से टिकट लेने की जुगत में रहे, लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया. 2023 में कमलनाथ ने उन्हें बुधनी की बजाय भोजपुर भेज दिया. यहां भी राजकुमार पटेल चुनाव हार गए.
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि लगातार 20 साल से कोई चुनाव नहीं जीतने वाले राज कुमार पटेल को बुधनी से कांग्रेस ने उम्मीदवार क्यों बनाया है? वो भी तब, जब पार्टी इस परंपरा पर आगे बढ़ रही है कि 2 से ज्यादा चुनाव हारने वाले को टिकट नहीं दिया जाएगा.
2. पर्चा न दाखिल करने को लेकर सस्पेंड हो चुके हैं- 2009 में विदिशा सीट से सुषमा स्वराज चुनाव मैदान में थी. कांग्रेस ने राज कुमार पटेल को उनके खिलाफ लड़ने के लिए भेजा, लेकिन राज कुमार पटेल पर्चा ही नहीं दाखिल कर पाए. चुनाव आयोग ने उस वक्त कहा था कि तय वक्त पर पटेल बी-फॉर्म जमा नहीं कर पाए.
इसके बाद पार्टी ने पटेल पर निलंबन की कार्रवाई की थी. पटेल उस वक्त कांग्रेस के महामंत्री थे. घटना की वजह से कांग्रेस की काफी भद्द पिटी थी. उस वक्त मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी रहे बीके हरिप्रसाद ने कहा था कि हमने इस मामले की जांच की है और कांग्रेस ने पटेल को बाहर करने का फैसला किया है.
हालांकि, 2014 में बड़े नेताओं की पहल और पैरवी की वजह से पटेल की कांग्रेस में घर वापसी हो गई.
3. बुधनी में हार के मार्जिन में लगातार बढ़ोतरी- बुधनी विधानसभा में 2006 में शिवराज सिंह चौहान 36 हजार वोटों से जीते थे. तब से अब तक 2018 को छोड़कर हर चुनाव में कांग्रेस की हार के मार्जिन में बढ़ोतरी देखी गई है. 2008 में 41 हजार वोटों से बुधनी में हार गई.
2013 में शिवराज सिंह चौहान कांग्रेस के महेंद्र चौहान से 84 हजार वोटों से जीते. 2018 में कांग्रेस ने अरुण यादव को मैदान में उतारा था. इस बार मार्जिन घटा और शिवराज 59 हजार वोट से जीत पाए. 2023 में शिवराज सिंह को 1 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत मिली.
दिलचस्प बात है कि 2013, 2018 और 2023 में कांग्रेस ने यहां स्थानीय के बजाय बाहरी चेहरे को मैदान में उतारा. वर्तमान में बुधनी में कांग्रेस के पास न तो मजबूत संगठन है और न ही स्थानीय स्तर पर कोई मजबूत नेता.
हालांकि, कांग्रेस का तर्क है कि किरार जाति के समीकरण को देखते हुए बुधनी में राज कुमार पटेल को टिकट दिया गया है. कांग्रेस प्रवक्ता नितिन दुबे के मुताबिक पटेल इस बार सभी रिकॉर्ड तोड़ देंगे.
बुधनी विधानसभा में किरार, ब्राह्मण और यादव ही राजनीतिक समीकरण तय करते हैं. इसके अलावा दलित और अन्य ओबीसी जातियों का भी यहां पर दबदबा है.
अब राज कुमार पटेल का सियासी सफर
राज कुमार पटेल ने छात्र राजनीति से अपने करियर की शुरुआत की थी. वे एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं. 1993 के चुनाव में वे बुधनी से विधायक चुने गए. उन्हें दिग्विजय कैबिनेट में शामिल किया गया. मंत्री बनने के बाद राज कुमार पटेल 1990 के दशक में किराड़ समुदाय के बड़े नेता बन गए.
राज कुमार पटेल के भाई देव पटेल भी बुधनी से विधायक रहे हैं. हालांकि, यह दौर शिवराज सिंह चौहान से पहले का था. राज कुमार पटेल की बहू विभा पटेल भोपाल की मेयर भी रही हैं. उन्हें महिला कांग्रेस की भी कमान मिल चुकी है.
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