यूपी- Sawan 2024: काशी के अलावा यहां भी विराजमान हैं बाबा विश्वनाथ, गंगा में बहकर आया था शिवलिंग – INA
उत्तर प्रदेश में कई प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनकी अलग अलग मान्यताएं है. श्रद्धालुओं की भीड़ इन मंदिरों में उमड़ती रहती है. वहीं कन्नौज जिले में एक ऐसा शिव मंदिर है जो कि बनारस के बाबा विश्वनाथ मंदिर का प्रतिबिंब माना जाता है. खास बात ये है कि इस शिव मंदिर का नाम भी बाबा विश्वनाथ मंदिर. बताया जाता है कि इसके पीछे काफी रोचक तथ्य है.
सैकड़ों साल पुराना यह शिव मंदिर अपने आप में बेहद अद्भुत है. मान्यता है कि हिमालय से मां गंगा की गोद में बहकर यह शिवलिंग कन्नौज आया था और जिन पुजारियों ने बनारस में भगवान शिव के शिवलिंग की स्थापना कराई थी उन्हीं पुजारियों ने कन्नौज में भी इस शिवलिंग की स्थापना की थी. पुजारी इस शिवलिंग को अपने साथ ले बनारस ले जाना चाहते थे लेकिन भगवान शिव का एक चमत्कार हुआ और पुजारी ने गंगा से निकाल कर शिवलिंग को जहां पर रख दिया वह वही स्थापित हो गया. लाख कोशिश के बाद यह शिवलिंग एक इंच भी हिला नहीं जिसके बाद पुजारी ने उसकी यहीं पर स्थापना कर दी.
400 साल से भी ज्यादा पुराना मंदिर
यह मंदिर कन्नौज के रेलवे स्टेशन से करीब 4 किलोमीटर की दूरी पर चौधरियां पुर गांव में स्थित है. बताया जाता है कि 400 साल से भी ज्यादा पुराना मंदिर है. मान्यता है कि जो भी लोग इस मंदिर में सच्चे मन से पूजा अर्चना करते हैं भगवान शिव उनकी मनोकामना जरूर पूरी होती है.मंदिर के पुजारी भोला ने बताया कि वह लंबे समय से मंदिर की सेवादारी कर रहे . उनका कहना है कि यह शिव मंदिर बनारस के बाबा विश्वनाथ मंदिर का दूसरा रूप है.
गंगा में बहकर आया था शिवलिंग
पुजारी ने बताया कि यह शिवलिंग गंगा में बहकर यहां पर आया था चूंकि उस समय गंगा की धारा यहां तक बहती थी. उसी दौरान बनारस के मुख्य पुजारी को एक सपना आया कि एक शिवलिंग गंगा में बहकर कन्नौज आया है इसकी स्थापना करनी है. इसके बाद भगवान शिव का आदेश समझकर बनारस के सभी प्रमुख पुजारी इस शिवलिंग की खोज में निकल पड़े.
जगह से नहीं हिला शिवलिंग
इस दौरान सभी लोग कन्नौज के चौधरियापुर क्षेत्र में पहुंचे जहां पर गंगा के किनारे यह शिवलिंग मिला. पुजारी ने बताया कि उस समय रात काफी हो गई थी जिस वजह से उन्होंने शिवलिंग को एक जगह पर रख दिया. वहीं सुबह जब वह शिवलिंग को उठाने लगे तो शिवलिंग अपनी जगह से नहीं हिला. पुजारी इस शिवलिंग को अपने साथ बनारस ले जाना चाह रहे थे क्योंकि यह शिवलिंग बिल्कुल बाबा विश्वनाथ के शिवलिंग के जैसा लग रहा था. लेकिन शिवलिंग नहीं हिला. जिसके बाद पुजारियों ने यह निश्चय किया कि यह भगवान शिव की ही महिमा है जो यहीं पर विराजमान होना चाहते हैं.
भक्तों की उमड़ती है भीड़
पुजारियों ने पूरे विधि विधान से इस शिवलिंग की पूजा की और इसकी स्थापना उसी जगह पर कर दी. तभी से ही इस मंदिर को बाबा विश्वनाथ नाम दे दिया गया. भारत में बाबा विश्वनाथ के नाम से यह दूसरा मंदिर है. पहला मंदिर बनारस में है और दूसरा मंदिर कन्नौज में है. सावन महीने में दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पर भगवान शिव को जलाभिषेक और दूध से अभिषेक करने आते हैं. वहीं कुछ श्रद्धालुओं का कहना है कि भगवान शिव हर उस श्रद्धालु की मनोकामना पूरी करते हैं जो सच्चे मन से यहां पूजा करता है.
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