खबर शहर , स्वतंत्रता के सिपाही: ठाकुर मोहन सिंह ने पहले देश की आजादी…फिर सेनानियों को हक दिलाने की आवाज करते रहे बुलंद – INA

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उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद के रहने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर मोहन सिंह ने काफी संघर्ष किया। वह देश को आजाद कराने के लिए ही नहीं, बल्कि आजादी मिलने के बाद स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को उनका हक दिलाने के लिए सिस्टम से संघर्ष करने में पीछे नहीं रहे। मई 1930 में कोलकाता के मछुआ बाजार में नमक बेचते हुए फिरंगियों ने गिरफ्तार कर लिया था। आखिर इस दौरान उन्हें जेल भेज दिया था।

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पौत्र विनय प्रताप सिंह ने बताया कि मूलरूप से नारखी क्षेत्र के गांव बरतरा निवासी ठाकुर मोहन सिंह देश को आजादी दिलाने को संघर्ष करते रहे। अपने पिता ठाकुर हीरा सिंह के दो बेटों में वह छोटे थे। 15 मार्च 1909 को जन्मे ठाकुर मोहन सिंह के सिर से माता-पिता का साया बचपन में उठ गया था। 


देश को फिरंगियों से आजाद कराने के लिए चल रहे संघर्ष के बीच युवा अवस्था में 1929 को कोलकाता चले गए थे। कांग्रेसियों के साथ मिलकर आंदोलन की रणनीति बनाते थे। 26 जनवरी 1930 से उन्होंने आंदोलन को . बढ़ाने का काम किया था। 
 


इस दौरान विरोध जुलूस जब धर्म तल्ला किले के मैदान में पहुंचा तो पुलिस कमिश्नर मिस्टर टेगर ने नेता सुभाषचंद्र बोस को तो गिरफ्तार करने का काम किया था। बाकी के बचे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर अंग्रेजी सेना ने घोड़े छुड़वाने का काम किया था।
 


घोड़ों की टॉप से कुचलकर काफी संख्या में स्वतंत्रता सेनानी घायल हो गए थे। इसके बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह चलाने का काम किया था। कोलकाता से 14 किलोमीटर दूर महेश बघान नामक स्थान पर तीन कैंप चल रहे थे। 
 


स्वामी परमोनंद ब्रह्मचारी के संचालन वाले कैंप में ठाकुर मोहन सिंह रहने लगे थे। ब्रिटिश सेना ने इस कैंप पर हमला किया था तो ठाकुर मोहन सिंह ने मोर्चा संभाल लिया था। 16 मई 1930 को मछुआ बाजार में ठाकुर मोहन सिंह नमक बिक्री करने गए थे। इस दौरान उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेजा था।
 


आठ मार्च 1932 को जनरल पोस्ट ऑफिस कोलकाता के सामने प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तारी देने के साथ ही 9 मार्च को छह माह जेल की सजा सुनाई गई थी। उन्हें सेंट्रल जेल में बंद रहना पड़ा। आजादी के लिए वे सतत संघर्षरत रहे। ठाकुर मोहन सिंह के पौत्र विनय प्रताप सिंह ने बताया कि 1961 में कोटला सहकारी संघ के अध्यक्ष, 1962 में कोटला ब्लॉक के प्रमुख चुने गए। 11 वर्ष बाद काफी संघर्ष के साथ दोबारा से ब्लॉक प्रमुख चुने गए थे।
 


मरणोपरांत जितना सम्मान मिलना चाहिए था वह नहीं मिला

ठाकुर मोहन सिंह के पौत्र विनय प्रताप सिंह ने कहा कि देश को आजादी मिलने के बाद भी बाबा जिले के अफसरों के समक्ष अपनी बात रखने में कभी नहीं हिचके। हर कोई उनके अक्खड़पन का कायल था। उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों का हक दिलाने की लडाई लड़ने का काम किया था। मरणोपरांत जितना सम्मान मिलना चाहिए वह नहीं मिला। परिवार के सदस्यों को भी कुछ राहत नहीं मिलती है।


Credit By Amar Ujala

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