यूपी – लोलार्क षष्ठी : संतान प्राप्ति की तीन डुबकी के लिए 30 घंटे का इंतजार, मध्यरात्रि के बाद से शुरू स्नान – INA

लोलार्क षष्ठी पर संतान प्राप्ति की कामना से 30 घंटों के इंतजार के बाद लोलार्क कुंड में स्नान आरंभ हो गया। एक दिन पहले से ही पूर्वांचल के जिलों से आए श्रद्धालु लोलार्क कुंड से पांच किलोमीटर के दायरे में लगाई गई बैरिकेडिंग में कतारबद्ध हो गए। रविवार की मध्यरात्रि के बाद से ही लोलार्क कुंड में स्नान का सिलसिला शुरू हो गया।

रविवार को लोलार्क कुंड की बैरिकेडिंग श्रद्धालुओं से भर गई थी। पांच किलोमीटर के दायरे में दूर-दराज से आए दंपती जगह-जगह कतार में लगकर स्नान के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। कोई एक दिन पहले से ही कतार में लगा हुआ था तो कोई दोपहर बाद पहुंचा। 

अस्सी और भदैनी के आसपास की गलियों में जगह-जगह लोग चूल्हा जलाकर प्रसाद तैयार करने में जुटे हुए थे। मंदिर के पुजारी भाद्रपद शुक्ल षष्ठी पर कुंड में पत्नी के साथ तीन डुबकी लगाने की मान्यता है। रविवार की मध्यरात्रि के बाद षष्ठी तिथि में स्नान आरंभ हो जाएगा। अधिकांश लोग उदया तिथि की मान्यता के अनुसार सूर्योदय के बाद कुंड में डुबकी लगाएंगे। लोलार्क कुंड में स्नान के लिए दंपती बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, बंगाल, नेपाल सहित आसपास के जिलों से काशी पहुंचे हैं।


50 फीट गहरा और 15 फीट चौड़ा है कुंड

लोलार्क कुंड एक खड़े कुएं से जुड़ा हुआ और उसमें उतरने के लिए तीन तरफ से सीढि़यां हैं। मान्यता है कि 50 फीट गहरे और 15 फीट चौड़े इस कुंड में लोलार्क षष्ठी पर स्नान से निसंतान दंपती की सूनी गोद भर जाती है। लोलार्क कुंड से जुड़ी मान्यताओं के कारण ही हर साल यहां स्नान करने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं। इस बार भी सवा लाख से डेढ़ लाख लोगों के आने की संभावना है। आस्था और विश्वास की डुबकी मात्र से सूनी गोद में किलकारी गूंजती है।

स्नान के बाद त्याग करते हैं एक फल या सब्जी

काशी के तीर्थ पुरोहित पं. कन्हैया तिवारी का कहना है कि मान्यता है लोलार्क षष्ठी के दिन कुंड में स्नान करने और लोलार्केश्वर महादेव की पूजा करने से संतान की प्राप्ति और शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। यही कारण है कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को संतान की कामना से दंपती लोलार्क कुंड में तीन बार डुबकी लगाकर स्नान करते हैं। 

कुंड में स्नान के बाद दंपती को एक फल का दान कुंड में करना चाहिए। दंपती अपने भीगे कपड़े भी छोड़ देते हैं। कुंड में स्नान के बाद दंपती को लोलार्केश्वर महादेव के दर्शन करने चाहिए। स्नान के दौरान दंपती जिस फल या सब्जी का दान कुंड में करते हैं, मनोकामना पूर्ति तक उसे उसका सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान सूर्य प्रसन्न होते हैं और स्नान करने वाली माताओं की मनोकामना पूरी होती है।


काशी के सभी तीर्थों का शीश है लोलार्क कुंड

देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी में भगवान सूर्य अपने द्वादश (12) स्वरूपों में विराजमान है। इन द्वादश आदित्यों की वार्षिक यात्रा और इनके समीपवर्ती कुंड स्नान-दान की महत्ता काशीखंड में विस्तार से वर्णित है। काशी में मास के प्रत्येक रविवार को कुंड स्नान-दान और दर्शन-पूजन व यात्रा स्थान का अपना अलग-अलग महात्म्य भी वर्णित है।

काशी खंड के श्लोक सर्वेषां काशितीर्थानां लोलार्कः प्रथमं शिरः, ततोंऽगान्यन्यतीर्थानि तज्जलप्लावितानिहि…। यानी लोलार्क काशी के समस्त तीर्थों में प्रथम शिरोदेश भाग है और दूसरे तीर्थ अन्य अंगों के समान हैं, क्योंकि सभी तीर्थ असि के जल से धोए गए हैं। तोर्थान्तराणि सर्वाणि भूमोवलयगान्यपि। असि सम्भेद तीर्थस्य कलां नार्हन्ति षोडशीम्।। 

सर्वेषामेव तोर्थानां स्नानाद्यल्लभ्यते फलम्। तत्फलं सम्यगाप्येत नरंर्गङ्गासिसंगमे।। लोलार्ककरनिष्टप्ता असि धार विखण्डिता:। काश्यां दक्षिणदिग्भागे न विशेयुर्महामलाः यानी भूमंडल के जितने ही दूसरे तीर्थ हैं, वे सब के सब इस असिसङ्गम तीर्थ के सोलह भाग में एक भाग के भी समान होने योग्य नहीं हैं और समग्र तीर्थों के स्नान करने से जो फल पाया जाता है। 

इस गंगा और असि के संगम स्थल में नहाने से वही फल पूर्णरूप से मनुष्यों को प्राप्त होता है। क्योंकि लोलार्क की किरणों से संतप्त और असि की धारा से बहुत ही खंडित होने से बड़े-बड़े पाप काशी में दक्षिण ओर से कभी प्रवेश नहीं कर सकते।


समस्त पापों से मुक्ति के साथ, पितृऋण से मिलती है मुक्ति
देवाधिदेव महादेव ने स्वकार्यवश श्रीसूर्यदेव को काशी भेजा, लेकिन आदित्य भगवान् का मन काशी के दर्शन में अत्यंत लोल हो गया था। इसी से वहां पर सूर्य का नाम लोलार्क पड़ गया। अगहन मास के किसी रविवार को सप्तमी या षष्ठी तिथि को लोलार्क की वार्षिकी यात्रा करके मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। 

लोगों के वर्ष भर के संचित समस्त पाप इस भानुषष्ठी पर्व में लोलार्क के दर्शन करने से ही खत्म हो जाते हैं। जो मनुष्य असि संगम पर स्नान कर पितरों का तर्पण और श्राद्ध करता है, वह पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है। सूर्यग्रहण के समय लोलार्क कुंड पर स्नान-दान करने से कुरुक्षेत्र का दस गुना फल प्राप्त होता है।


Credit By Amar Ujala

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