खबर शहर , International Day of Sign Languages: मूक बधिरों को समर्पित सप्ताह, साइन लैंग्वेज को पहचान दिलाने की जद्दोजहद – INA

सितंबर महीने का आखिरी सप्ताह यानी 23 से 29 सितंबर देश के मूक बधिर लोगों को समर्पित होता है। अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस (International Day of Sign Languages) के रूप में यह सप्ताह मनाया जाता है। हालांकि यह दिवस मुख्य रूप से 23 सितंबर को मनाया जाता है।

यह तारीख इसलिए चुनी गई थी, क्योंकि सन 1951 में इसी दिन विश्व मूक बधिर संघ (World Federation of the Deaf) की स्थापना हुई थी। सप्ताह भर चलने वाले इस दिवस का उद्देश्य मूक बधिर समुदाय की सांकेतिक भाषा को प्रमोट करना और उनके अधिकारों को सम्मानित करना है। साथ ही इन लोगों की भाषा यानी साइन लैंग्वेज को सही पहचान दिलाने का भी होता है। 1620 में स्पेनिश बिशप जुआन पाब्लो बोनिट ने पहली बार सांकेतिक भाषा की पुस्तक लिखी थी।

प्रत्येक व्यक्ति संवाद करने में अपनी भाषा का प्रयोग करता है, जो उसके सुविधा अनुसार हो। चाहे वह अंग्रेजी माध्यम हो या हिंदी, मराठी, बंगला आदि। परंतु मूक बधिर बच्चे बोलने में असमर्थ होते हैं, इसलिए वह अपने विचारों को रखने और आपस में संवाद करने के लिए साइन लैंग्वेज यानि सांकेतिक भाषा का प्रयोग करते हैं। भगवान ने भले ही उनसे उनकी आवाज छीनी हो पर उनका दिमाग और हौसला उस कमी पर भारी पड़ता है।

इसे कहते हैं साइन लैंग्वेज

यह भाषा वह लोग प्रयोग करते हैं, जो बोल या सुन नहीं सकते। वह अपनी भावनाओं और शब्दों को इशारों में समझाते हैं। इन इशारों को समझने के लिए प्रोफेशनल लेवल पर कई संस्थानों में भी साइन लैंग्वेज कोर्स करवाए जाते हैं। ताकि वह . चल इसे प्रोफेशन भी बना सकें। मूक बधिर बच्चों के लिए यह बेहद आवश्यक है।

साइन लैंग्वेज मूक बधिर बच्चों के लिए रीढ़ की हड्डी की तरह होती है। आगरा में लगभग 350 बच्चे मूक बधिर हैं। यह बच्चे काफी टैलेंटेड होते हैं, अगर उनके बारे में सरकार सोचे और बेहतर योजनाएं निकाले तो यह काफी लाभदायक हो सकती है। कई बार इन बच्चों को कॉलेज और स्कूल में पढ़ाने के लिए टीचर नहीं होते, क्योंकि यह केवल साइन लैंग्वेज ही समझ सकते हैं। इसके चलते यह पढ़ नहीं पाते। सरकार को साइन लैंग्वेज को सामान्य पाठ्यक्रम में जोड़ना चाहिए।
-राघवेंद्र तिवारी, स्पेशल एजुकेटर


Credit By Amar Ujala

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