यूपी- पुराने बसपाइयों से उपचुनाव फतह की तैयारी, क्या फिर विनिंग फॉर्मूला बनेगा अखिलेश का 2024 वाला दांव? – INA

उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव की सियासी जंग जिस फॉर्मूले से अखिलेश यादव ने जीती थी, अब उसी तर्ज पर विधानसभा उपचुनाव लड़ने का दांव चला है. सपा ने एक तरफ अपने उम्मीदवारों के जरिए पीडीए यानि पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक का दांव चला है तो दूसरी तरफ पुराने बसपाइयों पर भरोसा जताया है. सपा के 6 में से 3 प्रत्याशी बसपा के बैकग्राउंड वाले हैं, जिनके जरिए उपचुनाव जीतने की बिसात बिछाई है.

अखिलेश यादव 2024 के लोकसभा चुनाव में नई ‘सोशल इंजीनियरिंग’ के जरिए बीजेपी को मात देने में सफल रहे थे. इसके लिए उन्होंने कांशीराम की प्रयोगशाला से निकले नेताओं पर दांव खेलकर न सिर्फ गैर-यादव ओबीसी समाज को बल्कि बसपा के दलित वोटबैंक को भी जोड़ा था. सपा के 37 सांसदों में से 17 सांसद ऐसे हैं, जिनका कभी न कभी ताल्लुक बसपा के साथ रहा है. वे बसपा के टिकट पर विधायक रहे या फिर सांसद रह चुके हैं. यही वजह है कि अखिलेश यादव ने उपचुनाव में पुराने बसपा नेताओं पर भरोसा जताया है.

उपचुनाव में 6 सीट पर उम्मीदवार उतारे

यूपी की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में से सपा ने छह सीट पर उम्मीदवार उतारे हैं. सपा ने करहल सीट से तेज प्रताप यादव, मिल्कीपुर से अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद, मझंवा से पूर्व सांसद रमेश बिंद की बेटी डा. ज्योति बिंद, फूलपुर से मुज्तबा सिद्दीकी, सीसामऊ से पूर्व विधायक इरफान सोलंकी की पत्नि नसीम सोलंकी और कटेहरी से लालजी वर्मा की पत्नि शोभावती वर्मा को प्रत्याशी बनाया है. मीरापुर, कुंदरकी, खैर और गाजियाबाद सीट पर सपा ने अपना कैंडिडेट घोषित नहीं की है.

लालजी वर्मा की पत्नी शोभावती वर्मा

सपा के छह में से तीन उम्मीदवारों का बैकग्राउंड किसी न किसी रूप में बसपा का रहा है. कटेहरी सीट से सपा ने शोभावती वर्मा को प्रत्याशी बनाया है, जो लोकसभा सांसद लालजी वर्मा की पत्नी है. लालजी वर्मा सपा से पहले बसपा में रहे हैं और मायावती के करीबी नेता माने जाते थे. लालजी वर्मा ने लोकदल से अपनी राजनीतिक पारी का आगाज किया, लेकिन 1996 में उन्होंने बसपा का दामन थाम लिया.

इसके बाद 26 साल तक बसपा में रहे. मायावती सरकार में मंत्री से लेकर बसपा के विपक्ष रहते हुए नेता प्रतिपक्ष जैसे अहम पदों पर रहे. 2022 के चुनाव से पहले उन्होंने बसपा छोड़कर सपा का दामन थाम लिया था. कटेहरी से पहले सपा के टिकट पर विधायक बने और उसके बाद सांसद चुने गए. अब उनकी पत्नि शोभावती वर्मा को सपा ने कटेहरी सीट से प्रत्याशी बनाया है.

रमेश बिंद की बेटी ज्योति बिंद पर दांव

मिर्जापुर की मझवां विधानसभा सीट से सपा ने पूर्व सांसद रमेश बिंद की बेटी डा. ज्योति बिंद को प्रत्याशी बनाया है. रमेश बिंद ने अपना राजनीतिक सफर बसपा से शुरू किया था. 2002 में पहली बार बसपा के टिकट पर विधायक चुने गए. इसके बाद 2007 और 2012 में बसपा प्रत्याशी के तौर पर रमेश बिंद विधायक बनने में कामयाब रहे. 2014 में उन्होंने मिर्जापुर लोकसभा सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन जीत नहीं सके. इसके बाद 2019 में बसपा छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया और भदोही से सांसद बने.

2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी छोड़कर सपा में शामिल हो गए और मिर्जापुर से चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके. अब सपा ने मझवां सीट पर उनकी बेटी को प्रत्याशी बनाया है. कांशीराम की प्रयोगशाला से निकले रमेश बिंद हार्डकोर दलित-ओबीसी की राजनीति करते रहे हैं. इसी जातीय समीकरण के सहारे लगातार तीन बार विधायक रहे और अब उनकी बेटी ज्योति बिंद को सपा ने उतारा है. मझवां सीट पर मल्लाह वोटर बड़ी संख्या में है और सपा ने उनकी बेटी को उतारकर दलित और मल्लाह समीकरण बनाने का दांव चला है.

मुज्तबा सिद्दीकी पर सपा का भरोसा

सपा ने फूलपुर विधानसभा सीट से पूर्व विधायक मुज्तबा सिद्दीकी को प्रत्याशी बनाया है. मुज्तबा का सियासी सफर ग्राम प्रधान से शुरू हुआ, लेकिन सियासी बुलंदी बसपा में रहते हुए मिली. बसपा के टिकट पर पहली बार मुज्तबा सिद्दीकी 2002 में सोरांव से विधायक चुने गए. इसके बाद 2007 में सोरांव सीट से दोबारा विधायक बने. 2012 में बसपा टिकट पर प्रतापपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए.
इसके बाद 2017 में प्रतापपुर से विधानसभा सीट से बसपा के टिकट पर लड़कर जीतने में कामयाब रहे, लेकिन 2022 के चुनाव से पहले सपा का दामन थाम लिया. सपा ने उन्हें प्रतापपुर के बजाय फूलपुर से प्रत्याशी बनाया था, लेकिन बीजेपी प्रत्याशी प्रवीण पटेल से हार गए.

फुलपुर विधानसभा सीट पर सपा 2012 में जीती थी, तब सईद अहमद विधायक चुने गए थे. इसके बाद 2017 और 2022 में बीजेपी के टिकट पर प्रवीण पटेल जीते थे. प्रवीण पटेल 2024 में फूलपुर से सांसद बने हैं, जिसके अब उपचुनाव हो रहे हैं. सपा यह सीट हर हाल में जीतना चाहती है, जिसके लिए मुज्तबा सिद्दीकी पर दांव खेला है ताकि मुस्लिम-यादव-दलित समीकरण के सहारे जीत दर्ज की जा सके.


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